व्रज – वैशाख कृष्ण द्वादशी, बुधवार, 27 अप्रैल 2022
परचारगी का आज नियम का श्रृंगार है
- सेवाक्रम:
- आज से मंगला दर्शन में पीठिका के ऊपर धरायी जाने वाली दत्तु नहीं धरायी जाती है
- आज प्रातः मंगला से श्रृंगार तक श्री द्वारकेशजी महाराज कृत ‘मूल पुरुष’ गायी जाती है एवं सारे दिन प्रत्येक समां में बधाई एवं श्रीवल्लभ की बाल-लीला के कीर्तन गाये जाते हैं
- घेरदार, चाकदार और खुलेबंद के वागा भी आज से नहीं धराये जायेंगे
- आज से प्रभु को मलमल के उष्णकाल के वस्त्र पिछोड़ा, परदनी, धोती-पटका, मल्लकाछ आदि ही धराये जायेंगे
- आज दो समय की आरती थाली में की जाती है
- झारीजी सभी समय यमुनाजल की आती है
- आज पिछवाई के अलावा सभी वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं
- केवल कल के खुलेबन्द के वागा के स्थान पर पिछोड़ा धराया जाता है
- लेकिन यदि ऋतु में ठंडक हो तो आज खुलेबन्द भी धराये जा सकते हैं इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं
- श्रीजी में अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन बाद उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार होता है
श्रीजी दर्शन:
- साज:
- आज श्रीजी में एक ओर अग्नि-कुंड में से श्री महाप्रभुजी के प्राकट्य और दूसरी ओर श्री गिरिराजजी की कन्दरा में से श्रीजी के प्राकट्य के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है
- एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं
- वस्त्र:
- आज श्रीजी को केसरी मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. वस्त्र रुपहली किनारी से सुसज्जित होते हैं परन्तु किनारी बाहर दृश्य नहीं होती अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है
- ठाड़े वस्त्र श्वेत मलमल के धराये जाते हैं
- श्रृंगार:
- आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर केसरी की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- बायीं ओर उत्सव की मोती की चोटी (शिखा) भी धरायी जाती है
- आज बाजूबंद व पोची माणक की धरायी जाती हैं
- चैत्री गुलाबों एवं अन्य पुष्पों से निर्मित जाली वाला अत्यंत सुन्दर वन-चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में नुपुर व बिच्छियाँ भी माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं
- पट एवं गोटी जड़ाऊ की आती है
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला: मूल पुरुष
- राजभोग: दीजे हो ग्वाल नन्द बधाई
- आरती: श्री लक्ष्मणवर ब्रह्मधाम
- शयन: आंनद बधावनो
- पोढवे: धन राधा रानी जसुमत गृह आवत गोपीजन
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि- मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
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जय श्री कृष्ण
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