व्रज : वैशाख शुक्ल तृतीया (प्रथम) मंगलवार, 03 मई 2022
आज के श्रृंगार नियम के श्रृंगार है
- आज का दिन अति विशिष्ट है. आज अक्षय तृतीया है और श्रीमद्भागवत के अनुसार आज से त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था
- अक्षय-तृतीया ऐसी तिथी है जिसका क्षय नहीं होता इसीलिए इसे अक्षय-तृतीया कहा जाता है. इसी कारण ऐसी मान्यता है कि आज के दिन किये पुण्य का क्षय नहीं होता अतः आज के दिन शीतल वस्तुओं (हाथ का पंखा, खरबूजा, सतुवा का लड्डू) सहित जल-कुम्भ (जल की छोटी मटकी) का दान अत्यंत फलदायी है
- उड़ीसा के पुरी में भगवान् श्री जगन्नाथजी में आज से चन्दन यात्रा प्रारंभ होती है. आज से कई दिन प्रभु को प्रतिदिन चन्दन का लेप किया जाता है जिससे प्रभु को शीतलता मिले
- आज के दिन बालक श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार भी हुआ था
- आज के दिन ही विक्रमाब्द 1556 में गिरिराज पर्वत पर पूरणमल क्षत्रिय के द्वारा श्रीजी हेतु नए मंदिर का निर्माण प्रारंभ हुआ
- विक्रमाब्द 1576 में उक्त मंदिर का निर्माण पूर्ण होने पर भी आज के दिन ही श्री महाप्रभुजी ने श्रीजी को पाट पर विराजित किया था
- इसके अतिरिक्त आज के ही दिन प्रभुचरण श्रीगुसाईंजी का दूसरा विवाह हुआ था
- सेवाक्रम विशेष :
- प्रातः शंखनाद कर श्वेत केसर की किनारी के चंदवा आदि बांधे जाते हैं. सिंहासन, चरणचौकी, पडघा आदि सर्व-साज स्वर्ण के बड़े कर चांदी के साजे जाते हैं. गेंद, चौगान, दिवला आदि चांदी के आते हैं
- आज विशिष्ट उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं
- सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. आज से प्रतिदिन आरती चार बत्ती की आती है जिसमें आज सभी समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है
- मंगला पश्चात प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. आज से झारीजी, बंटाजी, वेणुजी, वेत्रजी आदि सभी चांदी के धरे जाते हैं
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से कूर (घी में सेके गये कसार) के चाशनी चढ़े गुंजा व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है
श्रीनाथजी दर्शन:
- साज:
- आज श्वेत आधार वस्त्र पर केसर की किनार वाली पिछवाई सजाई जाती है
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है
- जडाऊ स्वर्ण के एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं
- वस्त्र:
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज श्वेत मलमल का केसर की किनार वाला पिछोड़ा धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र चंदनिया (चंदन के) डोरिया के धराये जाते हैं
- श्रृंगार:
- आज श्रीजी को मध्य का (घुटने तक) उष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मोती, हीरा एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं
- नीचे उष्ण काल के मोती के पदक ऊपर मोती की माला धरायी जाती हैं. कली एवं सात बालकन की माला धरायीं जाती हैं
- श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे धराये जाते है. जिसके के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में हीरा के कुंडल धराये जाते हैं.
- पीठिका के ऊपर मोती का चौखटा धराया जाता है
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ भी हरे मीना की धराई जाती है
- आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी वाली दिखाई जाती है
- खेल के साज में पट ऊष्णकाल का और गोटी मोती की पधराये जाते है
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला: रतन जटित कनक थार
- राजभोग: अक्षय तृतीया अक्षय
- राजभोग-2 : देख सखी गोविन्द के चन्दन
- आरती : पिछोरा खासा को कटी
- शयन: मेरे गृह चन्दन अति कोमल
- पोढवे: रंग महल गोविन्द पोढ़े
विशेष सेवा दर्शन :
- आज ग्वाल के दर्शन नहीं खोले जाते और दो राजभोग दर्शन खुलते हैं.
- पहले राजभोग में नित्य-नियम के भोग के साथ अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, दहीभात आदि अरोगाये जाते हैं.
- भोग सरे उपरान्त हस्तनिर्मित खस के पंखा, श्वेत माटी के करवा, कुंजा व चन्दन बरनी का अधिवासन होता है और दर्शन खोले जाते हैं.
- आज से प्रभु को चन्दन धराया जाता है. चन्दन को घिस के मलमल के वस्त्र में लेकर जल निचोड लिया जाता है एवं इसमें केशर, बरास, इत्र (खस अथवा गुलाब), गुलाबजल आदि मिलाकर इसकी गोलियां बनायी जाती है.
- खुले दर्शन के मध्य प्रभु को चंदन समर्पित किया जाता है. पहली गोली प्रभु के वक्षस्थल पर, दूसरी गोली, दायें श्रीहस्त में, तीसरी बायें श्रीहस्त पर, चौथी दायें श्रीचरण पर और पांचवी गोली बायें श्रीचरण पर धरी जाती है.
- इसके पश्चात दो नये हस्तनिर्मित ख़स के हाथ-पंखा को जल छिड़ककर प्रभु को कुछ देर पंखा झलकर गादी के पीछे तकिया की दोनों ओर रखे जाते हैं.
- पहले राजभोग दर्शन खुलते हैं परन्तु इस दर्शन में आरती नहीं की जाती है.
दर्शन उपरांत दूसरे राजभोग में उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को खरबूजा (शक्कर टेंटी) के छिले हुए बीज के लड्डू, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार), विविध प्रकार के फल, उत्तमोत्तम रत्नागिरी आम की डबरिया, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं. सखड़ी में बड़े टूक, पाटिया, दहीभात, घोला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाती हैं. - दुसरे राजभोग दर्शन में आरती होती है. राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) में पान के बीड़ा धरे जाते हैं.
- आज प्रभु के मुंडन का दिन भी है और इस कारण आज के उत्सव में ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य भी आमंत्रित किये जाते हैं और इसीलिए आज श्री यशोदाजी के पीहर की लकड़ी की विशिष्ट चौकी का प्रयोग भोग धरने में किया जाता है.
- आज से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को क्रमशः जल में भीगी (अजवायन युक्त) चने की दाल, भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं. यद्यपि यह सामग्री रथयात्रा के पश्चात भी जन्माष्टमी तक अरोगायी जाती है परन्तु इसके स्वरुप में कुछ परिवर्तन होता है.
- आज से जन्माष्टमी तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को शीतल (जल में बूरा, गुलाबजल, इलायची, बरास आदि मिलाकर सिद्ध किया गया पेय) अरोगाया जाता है.
- चंदन की गोलियां संध्या-आरती पश्चात श्रृंगार बड़ा हो तब बड़ी की (हटाई) जाती है.
- शयन समय शैयाजी के ऊपर छींट की गादी एवं उसके ऊपर श्वेत मलमल की चादर रखी जाती है. शैयाजी का यह क्रम आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक रहता है.
अक्षय-तृतीया से प्रभु सुखार्थ होने वाले परिवर्तन
पुष्टिमार्ग वास्तव में विलक्षण रीति नियमों का मार्ग है. ऋतुओं के परिवर्तन के समय प्रभु के सुख का पूरा ख्याल रखा जाता है.
उदाहरणार्थ बसंतपंचमी से शीत विदा होना आरंभ होती है तो विविध उत्सवों जैसे पाटोत्सव, डोलोत्सव, चैत्री नववर्ष, रामनवमी और श्री महाप्रभुजी के उत्सव तक हर रीतियों में क्रमानुसार परिवर्तन होकर धीरे-धीरे शीत विदा होती है और इसी के मध्य श्ने श्ने डोलोत्सव से ऊष्णकाल क्रमानुसार आरम्भ हो जाता है.
ऊष्णकाल में उत्तरोत्तर वृद्धि होने के साथ ही प्रभु के सुख में भी उसी क्रम में वृद्धि होती रहती है जिससे श्री ठाकुरजी को ऊष्ण का अनुभव न हो.
प्रभु सुखार्थ इतनी सूक्ष्मता से सेवाक्रम का निर्धारण निस्संदेह अद्भुत है.
आज से पुष्टिमार्ग में भी चन्दन यात्रा का आरम्भ होता है. आज से उष्णकाल एक सोपान और बढ़ जाता है अतः आज से प्रभु को चन्दन धराया जाता है.
यद्यपि आज से प्रभु को प्रतिदिन चंदन धराया जाता है परन्तु अक्षय-तृतीया के चन्दन की एक विशेषता है कि आज धराये चंदन में मलयगिरी पर्वत की प्राचीन चन्दन की लकड़ी का चन्दन भी मिश्रित होता है और इसमें केशर की मात्रा विशेष होती है.
प्रभु को चंदन धराने का भाव यह है कि प्रभु-भक्त अपनी विरहभावना (विरहाग्नि) निवेदन करते हैं एवं चंदन आदि शीतल सामग्रियां अंगीकार करा प्रभु के दर्शन कर अपने हृदय में शीतलता अनुभव करते हैं.
साज परिवर्तन : - टेरा, चंदुआ आदि बदल कर श्वेत आते हैं. सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी, वेणुजी, वैत्रजी आदि सभी चांदी के साजे जाते हैं.
- आज से ठाकुरजी की सेवा में श्वेत माटी के करवा, कुंजा, चन्दन बरनी नित्य में आते हैं.
- पिछोड़ा, आड़बंद, परधनी, धोती-उपरना और मल्लकाछ आदि ऊष्णकालीन वस्त्र ही धराये जाते हैं.
- रंगों में भी प्रभु को श्वेत, अरगजाई, गुलाबी, चंपाई, चंदनिया आदि हल्के शीतल रंगों के वस्त्र ही धराये जायेंगे. ज्येष्ठाभिषेक (स्नानयात्रा) के पश्चात गहरे रंग पुनः धराये जा सकते हैं.
- आज से मोती, छीप, चंदन व पुष्प आदि के श्रृंगार धराये जा सकते हैं.
- भीतर के द्वारों पर खस के परदा बांधे जाते हैं जिन पर प्रभु सुखार्थ जल का छिडकाव किया जाता है.
……………………..
जय श्री कृष्ण
………………………
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
……………………….