अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव व श्रमण संघ स्थापना दिवस मनाया
राजसमन्द (दिव्य शंखनाद)। तप आत्मशुद्धि का उत्कृष्ट सोपान है। तपस्या न केवल तन के विकार दूर करती है।
बल्कि मन के संताप और क्लेश भी नष्ट करती है वे लोग धन्य हैं, जो वर्ष भर काया को कंचन किए रहते हैं यह विचार श्रमण संघीय सलाहकार दिनेश मुनि ने अक्षय तृतीया पारणोत्सव के अवसर पर व्यक्त किए।
गुजरात राज्य के बड़ौदा शहर के वरणामा स्थित “श्री पार्श्व पद्मावती जैन तीर्थ” में आयोजित अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव व 71 वें श्रमण संघ स्थापना दिवस पर बोलते हुए दिनेश मुनि ने कहा कि वर्तमान में जैन दर्शन की तुलना कोई भी नहीं कर सकता है। आज का दिन दान, तप, शीलता और भावना का है। धर्मावलंबियों को चाहिए कि वे अपने जीवन में अहिंसा व संयम को अपनाए।
डॉ. पुष्पेंद्र मुनि ने कहा कि भौतिकतावादी व सांसारिक सुखों का समाज के लिए त्याग करना ही जैन धर्म की सबसे बड़ी विशेषता है। उन्होंने बताया कि तीर्थंकर भ ऋषभदेव का कठोर 13 महीने की सुदीर्घ तपचर्या के बाद वैशाख शुक्ल तृतीया को हस्तिनापुर में श्रेयांस कुमार के करकमलों से उनका पारणा इक्षुरस से संपन्न हुआ था, इसी परंपरा को अक्षुण्ण रखते हुए जैन धर्मावलंबी आज के दिन इक्षुरस का सेवन करते हैं।
डॉ. दीपेंद्र मुनि ने तप शब्द की व्याख्या करते हुए बताया कि जीवन में कठिन तप के बिना सफलता नहीं मिलती। तप का सीधा सा अर्थ है-तपना। ठीक वैसे ही जैसे सोना आग में तप कर कुंदन बनता है।
इस अवसर पर विगत सात वर्षों से उपवास से वर्षीतप की विशिष्ट तपस्या डॉ. दीपेंद्र मुनि व एकासन से तपस्या कर रहे डॉ पुष्पेंद्र मुनि के पारणोत्सव का लाभ गुरुभक्त श्री राजेंद्र वनिता ओरडिया व श्री माँगीलाल मधु भोगर ने प्राप्त किया।