उदयपुर (दिव्य शंखनाद)। महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से आयोजित वार्षिक गाइड ओरिएंटेशन प्रोग्राम में आज मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के डॉ. पीयूष भादविया ने मेवाड़ की भोजन विरासत पर व्याख्यान देते हुए उपस्थित गाइड एवं स्टाफ, सभी को मेवाड़ी भोजन स्वाद की विभिन्न यादें ताजा करा दी। व्याख्यान में सिटी पेलेस म्यूज़ियम के 50 से अधिक गाइड्स ने भाग लिया।
डॉ. पीयूष ने बताया कि मेवाड़ में आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों को बताने व उनका जायका दिलाने के लिए इतने सारे व्यंजन है जिनका लोगों को नाम तक याद नहीं। हमें हमारे मेवाड़ी व्यंजनों के बारे आगे चलकर पर्यटकों को समझाना चाहिए।
डॉ. पीयूष भादविया ने ऐतिहासिक ग्रंथो में व्यंजनों के बारे में विस्तार से बताया जिनमें शाही भोजन, मंदिर के भोग-प्रसाद, शहरी एवं ग्रामीण भोजन विधियां, भोजन परोसने के तौर-तरीकों तथा भोजन के निमित अनेक व्यवस्थाओं पर गहनता से प्रकाश डाला। ग्रंथो में राजवल्लभ वास्तुशास्त्रम्, एकलिंग माहात्म्यम्, विश्ववल्लभ, अमरसार, राजप्रशस्ति, भीम विलास आदि पर व्याख्यान देते हुए भोजन निर्माण विधि से लेकर खेती-बाड़ी व पीने योग्य श्रेष्ठ पानी आदि पर कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्रस्तुत की।
मेवाड़ की विशेषता पर व्याख्यान देते हुए रजवाड़ी, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले नाना प्रकार के मक्का के व्यंजनों पर भी प्रकाश डाला जिनमें मक्के की रोटी, मक्के की राब, मक्के का जाजरिया, मक्के के पानीए, ढोकला, बाटी आदि पर पथ प्रदर्शकों से खूब चर्चा की साथ ही भोजन व स्वाभिमान से संबंधी देसी कहावतों पर भी चर्चा की जैसे: ’’मोटो खानों, मोटो पैरनों और छोटो वैइणे रैनो पर मेवाड़ छोड़ने कटैइ नी रैनो’’, ’’गेहूँ छोड़ मक्की खानी पर मेवाड़ छोड कटेइ नी जाणो’’ आदि। व्याख्यान के अंत में महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने डॉ. पीयूष भादविया का धन्यवाद करते हुए फाउण्डेशन की ओर से उपहार स्वरुप मेवाड़ की पुस्तकें आदि भेंट की।