व्रज – आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा, बुधवार, 15 जून 2022
आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री का गादी उत्सव है
- विक्रम संवत १९३२ में आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा के दिन आप तिलकायत की गादी पर आसीन हुए थे. आपने प्रभु सुखार्थ कई भव्य मनोरथों का आयोजन किया और नाथद्वारा की उत्तरोत्तर प्रगति के क्षेत्र में कई कार्य किये अतः आपका युग नाथद्वारा के लिए स्वर्णयुग कहा जाता है.
- सेवाक्रम : गादी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- झारीजी में सभी समय यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.
- -आज का श्रृंगार निश्चित है. आज प्रभु को गुलाबी रंग की परधनी, श्रीमस्तक पर पाग एवं हीरा के आभरण धराये जाते हैं.
- आज से कीर्तनों में सूहा, बिलावल एवं सायंकाल सोरठ राग भी गाये जाते हैं.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को विशेष रूप से आमरस की तवापूड़ी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में आमरस-भात अरोगाये जाते हैं. प्रभु को नियम से आमरस की तवापूड़ी वर्ष में केवल आज के दिन ही अरोगायी जाती है.
- आज से सायंकाल भोग दर्शन के समय श्रीजी के सम्मुख मणिकोठा में पुष्पों पत्तियों से सुसज्जित फुलवारी धरी जाती है.
श्रीनाथजी दर्शन:
- साज:
- श्रीजी में आज श्री गिरिराजजी की कन्दरा की निकुंज एवं श्री स्वामिनीजी आदि के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई सजाई जाती है
- गादी, तकिया, चरणचौकी, दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है
- दो पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में आज पट उष्णकाल का और गोटी हक़ीक की पधरायी जाती है
- वस्त्र:
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल की परधनी धरायी जाती है. परधनी रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होती है
- श्रृंगार:
- प्रभु को आज छोटा कमर तक का ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया गया है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की ऊपर छोर व नीचे लटकन वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की रुपहली किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में हीरा की बघ्घी आती है व त्रवल नहीं धराये जाते
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- वहीं हीरे की एक सुन्दर माला हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं कटि पर एक वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है
- आरसी उत्सववत की दिखाई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला : ललन पिया रस भरे आवत
- राजभोग : गायन सो रति गोकुल सो रति
- आरती : ललित ब्रज देश गिरिराज राजे
- शयन : धन धन हो हरिदास राई
- मान : आज सुहावनी रात
- पोढवे : पोढ़े हरी राधिका के गेह
- कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है, जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
- भोग दर्शन में प्रभु सुखार्थ श्रीजी के सम्मुख शीतल जल के चांदी के फव्वारे चलाये जायेंगे एवं राजभोग उपरान्त हर घन्टे भीतर व संध्या आरती दर्शन उपरान्त डोल-तिबारी में भी शीतल जल का छिड़काव किया जाता है
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जय श्री कृष्ण
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