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श्रीनाथजी में आज रथयात्रा उत्सव, बधाई

Divyashankhnaad by Divyashankhnaad
01/07/2022
in नाथद्वारा, श्रीनाथजी दर्शन
0
श्रीनाथजी में आज रथयात्रा उत्सव, बधाई
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व्रज – आषाढ़ शुक्ल द्वितीया, शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

आज का श्रृंगार नियम का है

  • श्रीजी में आज रथयात्रा है, पुष्टिमार्ग में यह रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से तृतीया तक में जिस दिन सूर्योदय के समय पुष्य नक्षत्र हो उस दिन होती है
  • 1 जुलाई, 2022 को सूर्योदय से पुष्य नक्षत्र प्रारम्भ हो कर दोपहर 2 बजकर 33 मिनिट तक रहेगा अतः प्रभु रथ में आषाढ़ शुक्ल द्वितीया 1 जुलाई को विराजित होंगे
  • ऊष्णकाल पूर्ण हो चुका है और वर्षा ऋतु प्रारंभ होने को है अतः अब सेवाक्रम में कुछ परिवर्तन होंगे. मंगला से सभी दर्शनों के कीर्तनों में राग मल्हार गाया जाता है. इसके अतिरिक्त आज से प्रतिदिन मंगला में आड़बंद के स्थान पर उपरना धराया जायेगा
  • आज से श्रीजी को पुनः ठाड़े वस्त्र धरने प्रारंभ हो जायेंगे यद्यपि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक कुछ मुख्य दिनों को ही ठाड़े वस्त्र धराये जायेंगे, तदुपरांत प्रतिदिन प्रभु को ठाडे वस्त्र धराये जायेंगे
  • शीतल जल के फव्वारे, खस के पर्दे, जल का छिड़काव, प्रभु के सम्मुख जल में रजत खिलौनों का थाल, मणिकोठा में पुष्पों पत्तियों से सुसज्जित फुलवारी आदि ऊष्णकाल के धोतक साज आज से पूर्ण हो जायेंगे
  • रथयात्रा के दिन ही मध्याह्न समय श्री महाप्रभुजी ने गंगाजी की मध्यधारा में सदेह प्रवेश कर आसुरव्यामोह लीला कर नित्यलीला में प्रवेश किया था

सेवाक्रम:

  • रथयात्रा का पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं
  • सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है
  • आज सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं. गेंद, चौगान, दिवाला आदि सभी चांदी के आते हैं
  • माटी के कुंजों में शीतल सुगन्धित जल भरकर कलात्मक रूप से वस्त्र में लपेटकर प्रभु के सम्मुख चांदी के पड़घा के ऊपर रखे जाते हैं. चांदी के त्रस्टीजी धरे जाते हैं
  • मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है
  • श्री महाप्रभुजी ने वि.सं.1587 मि. आषाढ़ शु.2, रविवार को रथयात्रा उत्सव के दिन मध्यान्ह में हनुमान घाट काशी में सुर सरिता गंगाजी के प्रवाह में प्रवेश कर आसुरव्यामोह लीला कर नित्यलीला में प्रवेश किया था किया अतः आज के दिन श्रीजी को श्वेत वस्त्र धराये जाते हैं, पर्वरुपी उत्सव के कारण कुल्हे जोड़ का श्रृंगार धराया जाता है
  • आज से आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक प्रतिदिन राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख चांदी का रथ रखा जाता है

भोग सेवा:

  • श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कूर (कसार) के गुंजा और दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है
  • श्रीजी को उत्सव भोग भी गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में ही धरे जाते हैं
  • उत्सव भोग में विशेष रूप से आम, जामुन, अंकूरी (अंकुरित मूंग) के बड़े थाल, शीतल के दो हांडा, खरबूजा के बीज-चिरोंजी के लड्डू, खस्ता शक्करपारा, छुट्टी बूंदी, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, तले हुए बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फलफूल आदि अरोगाये जाते हैं
  • राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, मीठी सेव, श्रीखण्ड-भात, दहीभात और केसरी पेठा अरोगाया जाता है
  • आज प्रभु को उष्णकाल की विशिष्ट सामग्री ‘सतुवा’ अंतिम बार अरोगाये जाते हैं
  • यह सामग्री अनसखड़ी में लड्डू के रूप में व सखड़ी में घोले हुए सतुवा के रूप में अरोगायी जाती है और उष्णकाल में विशिष्ट लाभप्रद होती है. कल से प्रभु को मगद के लड्डू पुनः अरोगाये जाने आरंभ हो जायेंगे
  • आज भोग-आरती में प्रभु को छुंकमां अंकूरी (अंकुरित मूंग) अरोगायी जाती है. यह विदित ही है कि अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को बारी-बारी से जल में भीगी चने की दाल (अजवायन युक्त), भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं
  • आज से जन्माष्टमी तक इस क्रम में कुछ परिवर्तन होगा। आज से श्रीजी को यही सामग्री तीन दिन छुकमां व अगले तीन दिन कच्ची अरोगायी जाएगी

श्रीनाथजी दर्शन:

  • साज:
    • श्रीजी में आज सफेद मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस के ‘धोरे-वाली’ वाली पिछवाई धरायी जाती है
    • गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है
    • आज सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं
    • गेंद, चौगान, दिवाला आदि सभी चांदी के आते हैं
    • माटी के कुंजों में शीतल सुगन्धित जल भरकर कलात्मक रूप से वस्त्र में लपेटकर प्रभु के सम्मुख चांदी के पड़घा के ऊपर रखे जाते हैं
    • दो पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है,
    • सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
    • खेल के साज में आज पट उष्णकल का और गोटी मोती की आती है
    • श्रीजी के सम्मुख चांदी का रथ रखा जाता है
  • वस्त्र:
    • श्रीजी को आज सफेद मलमल पर सुनहरी ज़री के धोरा वाला पिछोड़ा धराया जाता है, चंदनिया रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं
  • श्रृंगार:
    • श्री ठाकुरजी को आज वनमाला (चरणारविन्द) से दो अंगुल ऊंचा ऊष्णकालीन भारी श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हीरा के मिलमा धराये जाते हैं
    • श्रीमस्तक पर श्वेत कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं
    • आज हांस, चोटी, पायल आदि नहीं धराये जाते. श्रीकंठ में कली, वल्लभी आदि सभी माला, नीचे पदक, ऊपर माला, हार आदि सब धराये जाते हैं
    • सफेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. पीठिका के ऊपर मोती का चौखटा धराया जाता है
    • श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी तथा दो वेत्रजी (हीरा व मोती के) धराये जाते हैं
    • श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ हरे एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
    • श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं कटि पर एक वेत्रजी धराये जाते हैं
    • आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है

श्रीजी की राग सेवा के तहत आज

  • मंगला: कुंवर चलो जू आगे गहबर वन
  • राजभोग: गोवर्धन पर्वत ऊपर
  • आरती: गाय सब गोवर्धन ते आई
  • शयन: सुन्दर बदन री सुख सदन
  • मान: तेरो मन गिरधर बिन न रहेगो
  • पोढवे: पोढ़ीये लाल लाडिली संग
  • कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है
  • श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है, जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
  • नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है

मनोरथात्मकरथे रथात्मात्मन् हरे मम l
श्रीकृष्णस्योपवेशार्थमधिवासं कुरु प्रभो ll

भावार्थ: हे प्रभु, मेरे मनोरथात्मक हृदयरुपी रथ में प्रभु श्रीकृष्ण के बिराजवे की योग्यता करने के लिये अधिवास करें अथवा मेरे इस हृदयरुपी रथ में हे हरि (सर्वदुःख हर्ता) अधिवास (अधिकवास) करेंl
हे कृष्ण, आपके लिये ही मनोरथात्मक रथ की भावना की है अतः आप इस रथ में बिराजकर मेरे भी मनोरथ पूर्ण करें जिस प्रकार आपने गोपीजनों के मनोरथ पूर्ण किये हैंl
हे प्रभु, आप बलरामजी एवं सुभद्रा बहन सहित मेरे हृदयरुपी रथ में आरूढ़ होकर मुझे भक्तिदान द्वारा इस संसार-सागर से उबारें अथवा भक्तिदान द्वारा संसार-सागर से मेरी रक्षा करेंl

……………………..
जय श्री कृष्ण
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https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD

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