व्रज – चैत्र शुक्ल पूर्णिमा
मंगलवार, 27 अप्रैल 2021
विशेष : आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा की रास की छः मास की
रात्रि आज पूर्ण होने से आज रासोत्सव मनाया जाता है.
कुछ पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में आज शरद उत्सव मनाया जाता है और शरद पूर्णिमा को
अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अरोगायी जाती है यद्यपि श्रीजी में ऐसा सेवाक्रम नहीं होता है.
श्रीजी में आज रास की चार सखी के भाव के चित्रांकन की पिछवाई आती है. नियम का रास के
भाव का मुकुट और गुलाबी काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार
धराया जाता है. अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण
देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा
तक मुकुट नहीं धराया जाता. जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है.
काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव
श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. जिस दिन मुकुट धराया
जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी
अरोगायी जाती है.
श्रीजी दर्शन :
साज : आज श्रीजी में रास करती चार गोपियों के चित्रांकन की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. जडाऊ स्वर्ण के एक पडघा पर
बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
वस्त्र : श्रीजी को आज गुलाबी मलमल का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं श्याम मलमल की
चोली धरायी जाती हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद
जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.
श्रृंगार : श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. कंठहार,
बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर हीरा का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति
कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज
गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली
दो मालाजी धरायी जाती हैं.. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के हीराजड़ित वेणुजी एवं दो वेत्रजी
(लहरिया व सोने के) धराये जाते हैं. प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई
जाती है. पट गुलाबी व गोटी नाचते मोर की आती है. आरसी उत्सव वत दिखाई जाती है.
संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण, मुकुट व टोपी बड़े किये जाते हैं व श्रीमस्तक
पर गुलाबी गोल-पाग धरायी जाती है. श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : मोद विनोद आज घर नन्द
राजभोग : ऐसी बंसी बाजी
नटवर नट निर्तत है
आरती : बन्यो मोर मुकुट नटवर वपु
शयन : निर्तत रास रंग रसिक रास में
मान : माननी मनायो न मानत
पोढवे : पोढ़े हरि राधिका के गेह
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं
शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग
आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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