उदयपुर (दिव्य शंखनाद)। मेवाड़ के 72वें एकलिंग दीवान महाराणा सज्जन सिंह जी की 163वीं जयंती महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से मनाई गई। महाराणा सज्जनसिंह का जन्म वि.सं.1916, आषाढ़ शुक्ल नवमीं (वर्ष 1859) को हुआ था। सिटी पेलेस म्यूजियम स्थित राय आंगन में उनके चित्र पर माल्यार्पण व पूजा-अर्चना कर मंत्रोच्चारण के साथ दीप प्रज्जवलित किया गया तथा आने वाले पर्यटकों के लिए उनकी ऐतिहासिक जानकारी प्रदर्शित की गई।
महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने बताया कि 15 वर्ष की आयु में 8 अक्टूबर 1874 को महाराणा सज्जन सिंह जी की गद्दीनशीनी सम्पन्न हुई। आरम्भ के तीन वर्षों में महाराणा ने रीजेंसी काउंसिल के साथ कार्य किया। महाराणा कई प्रशासनिक कार्यों से संतुष्ट नहीं होने पर मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्होंने राज्य के शासन-सुधार के कार्यों को अपने हाथों में ले लिया। महाराणा ने 10 मार्च 1877 को न्यायिक कार्य व्यवस्था में सुधार करते हुए ‘इजलास खास’ की एक कौंसिल का निर्माण किया। दिवा
महाराणा सज्जन सिंह जी ने जनकल्याण के लिए कई कार्य किये, जिनमें चिकित्सा सम्बंधी कार्य महत्वपूर्ण थे। राज्य में चिकित्सा से जुडे़ कार्यों का महाराणा ने खूब समर्थन भी किया। यही नहीं राज्य एवं जनकल्याण में महाराणा ने कौंसिल की स्थापना, सेटलमेंट आरम्भ करना, सीमा पर चुंगी की व्यवस्था करवाना, पुलिस की व्यवस्था करना, फौज व तोपखाने को मजबूत करना, देवस्थान-विभाग को उन्नत करना, इतिहास-लेखन के लिए विभाग की स्थापना करना, सज्जन मुद्राणालय की स्थापना करना, शिक्षा-प्रचार के लिए एज्युकेशन कमेटी का गठन आदि।
महाराणा सज्जन सिंह जी विद्वानों के विशेष आश्रय दाता थे। महाराणा अपने विद्या प्रेम के कारण भिन्न भिन्न विषयों के पंडितों एवं कवियों को मेवाड़ में आश्रय प्रदान करते और उनका बड़ा आदर-सत्कार करते थे, कविराज श्यामलदास, बारहठ किशनसिंह, स्वामी गणेशपुरी जैसे कई कवि महाराणा के दरबार में रहते थे। विद्वानों के संसर्ग से महाराणा स्वयं कविता लिखने लगे थे। महाराणा सज्जन सिंह द्वारा रचित कविताओं के दोहे, सोरठों आदि को बिजोलिया राव कृष्णसिंह की पुस्तक ‘रसिकविनोद’ में प्रकाशित भी किया गया। महाराणा द्वारा रचित ये कविताएं मुख्यतः भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित रही। महाराणा की धारणशक्ति प्रबल होने के कारण उन्हें सैकड़ों श्लोक, कवित्त, सवैये आदि कंठस्थ थे।