व्रज – श्रावण कृष्ण प्रतिपदा, गुरुवार, 14 जुलाई 2022
हिंडोलना रोपण की बधाई आज से श्रीजी में श्रावण मास की सेवा प्रारंभ।
- इस वर्ष हिंडोलना रोपण आज श्रावण कृष्ण प्रतिपदा को शुभ मुहूर्त किया जायेगा
- कल प्रभु को उष्णकाल के अंतिम मोती के आभरण धराये गये
- आज से प्रभु को मंगला में उपरना धराया जायेगा, आज से ठाड़े वस्त्र धराये जायेंगे
सेवाक्रम:
- हिंडोलना रोपण का पर्वात्मक उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं
- पुष्टिमार्ग में ऊष्णकाल पूर्णतया विदा हो जाता है, प्रातःकाल प्रभु के शंखनाद के पश्चात सर्वप्रथम सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि सभी साज चांदी के बड़े (हटा) कर सोने के श्री ठाकुरजी के सम्मुख रखे जाते हैं
- केवल दो गुलाबदानी, माटी के झारीजी का पड़घा एवं त्रस्टीजी चांदी के रहते हैं, चंदन बरनी पर श्वेत के स्थान पर लाल वस्त्र चढ़ाया जाता है, पंखा, चंदवा लाल मखमल के और टेरा आदि साज रंगीन साजे जाते हैं
- चारों समय (मंगला, राजभोग संध्या व शयन) आरती थाली में की जाती है, आज से आरती के दो खंड सजाये जाते हैं, झारीजी में दिनभर यमुनाजल भरा जाता है
- मंगल भोग के पश्चात ठाकुरजी को चन्दन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) आदि से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है
भोग विशेष:
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चारोली (चिरोंजी) के लड्डू एवं केशरी बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी का भोग अरोगाया जाता है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं
- संध्या-आरती समय हिंडोलना रोपण के पश्चात उत्सव भोग में विशेष रूप से खस्ता शक्करपारा, छुट्टी बूंदी, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी (रबड़ी), जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, घी में तला हुआ चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं
- ऊष्णकाल की समाप्ति और श्रावण मास के आरम्भ के साथ आज से लिचोई-आमरस बंद हो जाता है एवं चूरमा-बाटी, मानभोग अथवा सीरा (हलवा – गेहूं के आटे और मूंग की दाल का) अरोगना प्रारंभ हो जाता है
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है
- आज से चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट नहीं की जाती
- सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव सोने के रखे जाते हैं, मात्र दो गुलाबदानी, माटी के झारीजी का पड़धा एवं त्रस्टीजी चांदी के रहते हैं. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सुनहरी लप्पा का पिछोड़ा धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं, आज की सेवा ललिताजी एवं चन्द्रावली जी के भाव से होने के कारण लाल अनुराग के रंग के वस्त्र धराये जाते हैं
- श्री स्वामिनीजी के भाव से पीले ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं
- श्रृंगार
- श्रृंगार सेवा में प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है
- उत्सव के हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं
- नीचे पदक, ऊपर हीरा, पन्ना, मानक मोती के हार, माला, दुलड़ा धराये जाते हैं
- कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती है
- श्रीमस्तक पर लाल (हरी बाहर की खिडकी की) छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं
- रंग-बिरंगी पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं
- पट उत्सव का, गोटी सोने की जाली की पधराई जाती है
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत:
- मंगला: आयी जू श्याम जलद घटा
- राजभोग: सावन दुल्हे आयो
- हिंडोरना: श्री गोविन्द स्वामी के चार पद
- झूलन आयी ब्रजनार
- राधे मोहन झुलत
- तेसोई वृन्दावन तेसीये
- रंग मच्यो सिंहद्वार
- शयन: सो सावन आयो
- मान: तू चल नन्द नंदन बन बोली
- पोढवे: तुम पोढो हो सेज बनाऊं
- विशेष: आज से श्रावण कृष्ण 7 तक प्रतिदिन बाल लीला के पद। राजभोग में मल्हार व सांझ को हिंडोरा के पद गाये जाते है।
श्रीजी में हिंडोलना की भावना:
- आज से भाद्रपद कृष्ण द्वितीया अर्थात आगामी 32 दिवस तक प्रतिदिन प्रभु संध्या-आरती में हिंडोलने में झूलते हैं. चार यूथाधिपतिओं के भाव से आठ-आठ दिन कर कुल 32 दिवस ठाकुरजी हिंडोलना में विराजित हो झूलते हैं
- व्रज में चार स्थानों (नंदालय में, निकुंज में, श्री गिरिराजजी के ऊपर एवं श्री यमुना पुलिन के ऊपर) में हिंडोलना होते हैं. प्रथम 16 दिवस श्री ठाकुरजी और अगले 16 दिवस श्री स्वामिनीजी के भाव से हिंडोलना झुलाया जाता है
- इन दिनों प्रतिदिन नित्य नवीन रंग के साज धराये जाते हैं. सोने के जडाऊ पंखा, बंटा आदि आते हैं
- प्रथम दिन श्रवण नक्षत्र में श्रीजी की डोलतिबारी में रजत हिंडोलना रोपण किया जाता है और हिन्दू शास्त्रोक्त विधि अनुसार हिंडोला का अधिवासन किया जाता है
- चांदी को शुभ माना गया है अतः डोलतिबारी में पहले दिन चांदी का हिंडोलना रोपित किया जाता है जिसके ऊपर ही विभिन्न मनोरथों में फूल-पान, फल-फूल आदि की कलात्मक सज्जा की जाती है. हिंडोलना के नीचे आसन बिछाया जाता है एवं उत्थापन के पश्चात शंख, झालर एवं घंटानाद के साथ श्री ठाकुर जी हिंडोलने में विराजित होते हैं
- नाथद्वारा के श्रीजी मंदिर में हिंडोलने में श्री मदनमोहनजी एवं श्री बालकृष्णलालजी झूलते हैं
- श्री मदनमोहनजी को अन्य दिनों में वेणुजी नहीं धरायी जाती क्योंकि वेणुजी द्वारा कामदेव भी मोहित हो सकते हैं परन्तु हिंडोलना के 32 दिवसों में सबके मन को मोहने के भाव से श्री मदनमोहनजी को हिंडोलने में वेणुजी धरायी जाती है
- श्री मदनमोहनजी किशोर भाव से एवं श्री बालकृष्णलालजी बाल भाव से हिंडोलने में झूलते हैं. श्री बालकृष्णलालजी को प्रतिदिन हिंडोलना में नहीं झुलाया जाता है
- हिंडोलना की लीला किशोर भाव की लीला है. हिंडोलना में कोई भी स्वरुप झूले परन्तु किशोर भाव की लीला होने से श्री गोकुलचन्द्रमाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री मदनमोहनजी एवं श्री गोवर्धननाथजी इन चार किशोर भाव के स्वरूपों को संबोधित करते कीर्तन ही गाये जाते हैं
- विश्व के अन्य सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों की तुलना में नाथद्वारा में श्रीजी के हिंडोलने की कुछ अंतर हैं जो कि श्रीजी के हिंडोलने को विशिष्टता प्रदान करती हैं
- अन्य मंदिरों में ठाकुर जी हिंडोलने में सिंहासन के ऊपर बिराजते हैं जबकि श्रीजी में प्रभु श्री मदनमोहन जी चौकी पर बिराजते हैं. इसका कारण यह है कि अन्य सभी मंदिरों में ठाकुरजी नंदालय की भावना से यशोदा की गोद में बिराज कर झूलते हैं परन्तु श्री गोवर्धनधरण प्रभु श्रीनाथजी निकुंजनायक और गौलोकनाथ हैं जिनको चारों ओर से व्रजललनाएं झूलाती और दर्शन करती हैं इस भाव से श्री मदनमोहनजी चौकी पर बिराजित होकर झूलते हैं
- नाथद्वारा में श्री मदनमोहनजी भोग समय हिंडोलना में विराजित हो कर झूलते हैं जबकि अन्य सभी मंदिरों में ठाकुरजी को संध्या-आरती पश्चात हिंडोलना में झुलाया जाता है
- इसका कारण यह है कि अन्य सभी मंदिरों में ठाकुर जी गाय चराकर घर पधारते हैं फिर उनको धैया (दूध) आरोगा कर व्रजरानी यशोदाजी अपनी गोद में बिठा उन्हें झूलाती हैं परन्तु यहाँ किशोर भाव से श्री ठाकुरजी व्रज के कुंज-निकुंज में हिंडोलना झूल कर ही घर पधारते हैं तत्पश्चात धैया (दूध) अरोगते हैं अतः श्री मदनमोहनजी को भोग समय हिंडोलना में झुलाया जाता है और झूल कर भीतर पधारने के पश्चात धैया (दूध) अरोगायी जाती है
श्रीजी की कीर्तन सेवा में आज हिंडोलना अधिवासन के समय निम्न पद का गान किया जाता है
कीर्तन : (राग : धनाश्री)
रोप्यो हिंडोरों नंदगृह मुहूरत शुभ घरी देख l
विश्वकर्मा रचि पचि गढ़यो सुहातक रत्न विशेष ll
हिन्डोरनाहो रोप्यो नंद अवास, हिन्डोरनाहो मणिमय भूमि सुवास l
हिन्डोरनाहो विश्वकर्मा सूत्रधार, हिन्डोरनाहो कंचन खंभ सुढार ll
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
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जय श्री कृष्ण
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