व्रज – श्रावण कृष्ण अष्टमी, गुरुवार 21 जुलाई 2022
आज की विशेषता: आज से जन्माष्टमी की बधाई प्रारंभ
- आज से ठीक एक मास पश्चात भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी होगी अतः आज उत्सव से एक माह पूर्व जन्माष्टमी के उत्सव की बधाई बैठती है
- प्रतिनिधि के श्रृंगार का अर्थ उत्सव के आगमन के आभास से है अथवा यूं कहा जा सकता है कि प्रभु के प्राकट्य की शुभ घड़ी निकट ही है अतः बालक श्रीकृष्ण के स्वागत की तैयारी प्रारंभ कर लीजिये
- जन्माष्टमी-नंदमहोत्सव की बधाई एक माह पूर्व बैठती है इसके विविध भाव इस प्रकार है
- यह उत्सव महामहोत्सव होने के कारण यशोदाजी एवं रोहिणीजी के भाव से 15-15 दिन बधाई बैठती है
- इसी प्रकार श्री महाप्रभुजी (श्री स्वामिनीजी) एवं श्री गुसाईंजी (श्री चन्द्रावलीजी) के भाव से 15-15 दिन की बधाई बैठती है
- एक अन्य भाव में वात्सल्य एवं मधुर भाव से बधाई बैठती है
- इसमें भी चार यूथाधिपतियों के भाव से चार बधाई बैठती है. विभिन्न प्रकार के वाधों द्वारा अगले एक मास की (आज से) झांझ की बधाई श्री यमुनाजी के भाव से, बारह दिन की (पवित्रा द्वादशी से) नौबत की बधाई श्री चन्द्रावलीजी के भाव से, आठ दिन की (रक्षाबंधन से) मांदल की बधाई श्री स्वामिनीजी के भाव से एवं इसी प्रकार आठ दिन की (रक्षाबंधन से) गीत गाने वाली गोपीजनों की बधाई कुमारिकाजी भाव से होती है
- आज से श्रीजी में बालभाव के कीर्तन गाये जाते हैं और बालभाव के श्रृंगार धराये जाते है
सेवाक्रम:
- पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं
- कंदराजी पर उस्ताजी का चौखटा आता हैं
- आज मंगला में केसरिया उपरना धराया जाता हैं
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी सोने के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित, उत्सव की कमल के काम वाली बड़े लप्पा वाली पिछवाई सजाई जाती है
- गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है
- खेल के साज पधराये जाते है
- गादी, तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है, स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल लगी हुई होती है
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, एक अन्य चांदी के पडघाजी पर माटी के कुंजा में शीतल सुगंधित जल भरा होता है
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में आज पट उत्सव का और गोटी जडाऊ स्वर्ण की छोटी पधरायी जाती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज केसरी मलमल का रुपहली किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है
- हीरे, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के तीन जोड़ी के आभरण धराये जाते हैं. नीचे पदक व ऊपर हार, माला आदि धराये जाते हैं. त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं. एक हालरा, बघनखा भी धराया जाता है.
- श्रीमस्तक पर रुपहली किनारी से सुसज्जित केसरी मलमल की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- उत्सव की हीरा की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- कली, कस्तूरी आदि सब माला धरायी जाती है
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं कटि पर दो वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है
- आरसी श्रृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की वाली दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत:
- मंगला: आज गृह नन्द महर के बधाई
- राजभोग: धन्य यशोदा भाग्य तिहारो
- हिंडोरा: झूलन आयी ब्रजनार, राधे मोहन झुलत,
- तेसोई वृन्दावन तेसीये, रंग मच्यो सिंहद्वार
- शयन: झुलत तेरे नैन हिंडोरे
- मान: तू चल नन्द नंदन बन बोली
- पोढवे: तुम पोढो हो सेज बनाऊं
- विशेष: श्रावण कृष्ण 7 तक प्रतिदिन बाल लीला के पद। राजभोग में मल्हार व सांझ को हिंडोरा के पद गाये जाते है
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी सोने के हिंडोलने में झूलते हैं, उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं, आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं
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जय श्री कृष्ण
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