व्रज – श्रावण शुक्ल पंचमी, मंगलवार, 02 अगस्त 2022
आज की विशेषता: आज नागपंचमी है. भारत देश के विभिन्न हिस्सों में नागपंचमी कई अलग-अलग दिनों पर मनाई जाती है. देश के कुछ भागों में नाग-पंचमी श्रावण कृष्ण पंचमी को भी मनायी जाती है
- श्रीजी में आज का उत्सव श्री गिरिराजजी के भाव से मनाया जाता है. पूर्ण प्राकट्य से पूर्व प्रभु श्रीजी श्री गिरीराजजी की कन्दरा में विराजित थे
- विक्रम संवत 1465 की श्रावण शुक्ल पंचमी के दिवस श्रीजी को दूध अरोगाने गये व्रजवासियों को श्रीजी की उर्ध्व भुजा के दर्शन हुए थे
- तब से सभी व्रजवासी उनके दर्शन कर दही, दूध आदि भोग रख उनकी आराधना करने लगे. आगामी 70 वर्षों तक व्रजवासियों ने इसी प्रकार प्रभु की उर्ध्वभुजा का पूजन किया
- इसके पश्चात विक्रम संवत 1535 की चैत्र कृष्ण एकादशी को प्रभु का मुखारविंद प्रकट हुआ
- श्री महाप्रभुजी ने विक्रम संवत 1549 में प्रभु को श्री गिरिराजजी की कन्दरा से बाहर पधराया एवं प्रभु की सेवा का कार्य अपने हाथ में लिया. तब तक सर्व व्रजवासी ही प्रभु को दूध, दही एवं मक्खन आदि का भोग रखते थे
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दही की पाटिया के लड्डू एवं पाटिया (गेहूं की सेवई) की खीर आरोगायी जाती है, सेव की खीर आज के अतिरिक्त केवल कुंडवारा मनोरथ में अथवा अन्नकूट उत्सव पर आरोगायी जाती है
श्रीजी दर्शन:
- साज
- आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की एक ओर आन्योर ग्राम एवं दूसरी ओर जतीपुरा ग्राम, दोनों ग्रामों से व्रजवासी श्रीजी की उर्ध्व भुजा के दर्शन करने जा रहे हैं ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है
- गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है, खेल के साज पधराये जाते है
- गादी, तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है, स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल लगी हुई होती है
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, एक अन्य चांदी के पडघाजी पर माटी के कुंजा में शीतल सुगंधित जल भरा होता है
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में आज पट लाल और गोटी चांदी की बाघ बकरी वाली पधरायी जाती है
- वस्त्र
- श्रीजी को नियम से कोयली रंग की मलमल का सुनहरी पठानी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है व श्रीमस्तक पर पाग के ऊपर नागफणी का कतरा धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सजे होते हैं
- श्रृंगार
- प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व-आभरण धराये जाते हैं
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर कोयली रंग की सुनहरी बाहर की खिड़की वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी लूम तुर्री डाँख का जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते
- श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थाग वाली दो मालाजी धरायी जाती हैं, श्रीकंठ में कली की मालाजी धरायी जाती हैं
- त्रवल नहीं धराए जाते हे बध्धी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं
- अनोसर में श्रीमस्तक पर धरायी पाग के ऊपर की सुनहरी खिड़की बड़ी कर के धरायी जाती है
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है
- आरसी नित्यवत दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत:
- मंगला: बोले माई गोवेर्धन पर मूरवा
- राजभोग: देखो अद्भुत अवगत की गत
- हिंडोरा:
- झुलत है राधा सुंदर, झुलत लाल गोवर्धनधारी
- गृह-गृह ते आई व्रज सुंदर, झुलत रंग हिंडोरे सुंदर
- शयन: माई री झुलत रंग हिंडोरे
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी श्याम मोती के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं, व श्री नवनीतप्रियाजी में श्याम मोती के हिंडोलना के दर्शन होंगे.
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जय श्री कृष्ण
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