व्रज – श्रावण शुक्ल चतुर्दशी, गुरुवार, 11 अगस्त 2022
आज की विशेषता: विशेषता: श्री गुसांईजी के प्रपौत्र अर्थात उनके प्रथम पुत्र गिरधरजी के द्वितीय पुत्र दामोदरजी के पुत्र प्रथम तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१६५७) (टिपारा वाले विट्ठलेशजी) का आज प्राकट्योत्सव है.
- आपका धराया टिपारा का अद्भुत श्रृंगार श्रीजी को सुहाता था एवं आपश्री श्रीजी के प्रिय थे अतः आप को ‘टिपारा वाले विट्ठलेशजी’ भी कहा जाता है
- श्रीजी ने स्वयं आज्ञा कर गृह के मुखिया के रूप में तिलक कर आपको प्रथम तिलकायत के रूप में नियुक्त किया एवं उन्हें वर्ष के 360 दिनों में 60 दिवस के श्रृंगार करने की आज्ञा भी प्रदान की
- ये वे श्रृंगार हैं जो वर्ष में सभी बड़े उत्सवों पर धराये जाते हैं और ‘घर के श्रृंगार’ कहे जाते हैं और इन पर तिलकायत महाराज का विशेष अधिकार होता है.
- आप ने ही श्रीजी को दूधघर की विविध प्रकार सामग्रियां अरोगाने का क्रम प्रारंभ किया.
- तिलकायत के रूप में पदासीन होने के पश्चात आपने श्रीजी के कई मनोरथ किये, अपने चमत्कारों से तत्कालीन मुग़ल बादशाह जहाँगीर को भी प्रभावित किया एवं उनके पास से गोकुल एवं गोपालपुर (जतिपुरा) में जमीनें प्राप्त कर बड़ी-बड़ी गौशालाओं का निर्माण करवाया
- आपके काल से ही श्रीजी में तिलकायत परम्परा का प्रारंभ हुआ जो कि आज भी जारी है. आपके नित्यलीला में प्रवेश के पश्चात आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री लालगिरिधर जी तिलकायत के रूप में पदासीन हुए
सेवाक्रम:
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. आज दिन भर सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है.
- आज श्रीजी को नियम का पीले रंग का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर सुनहरी घेरा का श्रृंगार धराया जाता है.
- श्रावण शुक्ल एकादशी से श्रावण शुक्ल पूर्णिमा तक प्रतिदिन श्रृंगार समय मिश्री की गोल-डली का भोग अरोगाया जाता है.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है
- गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है
- पीठिका व पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी हरी मखमल वाली होती है
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- चांदी के पडघा के ऊपर माटी के कुंजे में शीतल सुगन्धित जल भरा होता है
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में पट पिला एवं गोटी स्याम मीना की आती हैं
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज पीले रंग का रूपहरी पठानी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं
- श्रृंगार
- प्रभु को आज आज मध्य का अर्थात घुटने तक का श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण उत्सव के माणक एवं जड़ाव स्वर्ण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर पिले रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में माणक के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- श्रीकंठ में कली की मालाजी धराई जाती हैं.
- हास,त्रवल नहीं धराए जाते हैं. बघ्घी धरायी जाती हैं
- पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी मालाजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
- रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है
- आरसी उत्सववत दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत:
- मंगला: तुम ब्रज रानी के लाला
- राजभोग: नन्द के दधी कादो आँगन
- हिंडोरा:
- झुलत है ब्रजनाथ हिंडोरे, श्री विट्ठलराय लाल गिरधारी
- ओल्हर आई हो घन घटा, नटवर सुरंग हिंडोरे
- शयन: हेरी हेरी रे मैया
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी डोल तिवारी में चांदी के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं.
- श्री नवनीतप्रियाजी भी चांदी के ही हिंडोलने में विराजित होकर झूलते है.
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जय श्री कृष्ण
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