उदयपुर (दिव्य शंखनाद)। महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से मेवाड़ के 63 वें श्रीएकलिंग दीवान महाराणा प्रताप सिंह जी द्वितीय की 298 वीं तथा मेवाड़ के 69 वें श्रीएकलिंग दीवान महाराणा सरदार सिंह जी की 224 वीं जयंती मनाई गई। महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय का जन्म विक्रम संवत् 1781 को भाद्रपद कृष्ण की तीज तथा महाराणा सरदार सिंह का जन्म विक्रम संवत् 1855 को भाद्रपद कृष्ण की तीज को ही हुआ था। सिटी पेलेस संग्रहालय स्थित राय आंगन में दोनों महाराणाओं के चित्रों पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्जवलित किया गया। देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए दोनों महाराणाओं के कार्यकाल की ऐतिहासिक जानकारियां प्रदर्शित की गई।
इस अवसर पर फाउण्डेशन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह ने बताया कि मेवाड के महाराणा जगत सिंह जी के पश्चात् महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय विक्रम संवत् 1808 आषाढ़ कृष्ण की सप्तमी को मेवाड़ की गद्दी पर बिराजे उनका तीन वर्ष के लगभग ही शासनकाल रहा। महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय को अपनी प्रजा से बहुत प्रेम था इस कारण गद्दी पर बैठने के पश्चात् उन्होंने अपनी प्रजा की अवस्था सुधारने के प्रयत्न आरम्भ किए जो थोड़े ही समय में स्थितियां सुधरने लगी थी। किन्तु मात्र 29 वर्ष की आयु में ही इन महाराणा का वैकुंठवास हो गया।
महाराणा जवान सिंह जी के कोई पुत्र न होने के कारण उनके पश्चात् मेवाड़ के सरदारों ने सलाह कर बागोर के महाराज शिवदान सिंह के ज्येष्ठ पुत्र सरदार सिंह को विक्रम संवत् 1895 भाद्रपद शुक्ल 15 को मेवाड़ के 69 वें श्रीएकलिंग दीवान बनाकर मेवाड़ की गद्दी पर बिठाया । धर्म कर्म में अभिरुचि के कारण महाराणा ने अपने पिता महाराणा जवान सिंह जी के श्राद्ध करने के लिए गया जी की यात्रा की महाराणा पुष्कर, राजगढ़, भरतपुर, मथुरा, प्रयाग, काशी आदि की यात्रा में दान-पुण्य करते हुए गया जी पहुँचे। उन्होंने वहां पहुँच विधिपूर्वक अपने पिता का श्राद्ध कर दान – पुण्य किये महाराणा ने 1 फरवरी, ई.1840 को यात्रा हेतु उदयपुर से प्रस्थान किया और 16 नवम्बर ई.1840 को उदयपुर लौट आए। इन महाराणा के भी कोई पुत्र न होने के कारण उन्होंने अपने छोटे भाई स्वरूप सिंह गोद ले अपना उत्तराधिकारी बनाया था।