व्रज – भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, शुक्रवार, 19 अगस्त 2022
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की श्रृंगार भावना एवं सेवाक्रम:
- आज का उत्सव महा-महोत्सव कहलाता है
- महा-महोत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को हल्दी से मांडा जाता हैं. आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं
- आज बड़ी देहरी मांडी जाती है. द्वार के कोनों पर हल्दी एवं कुंकुम से कमल, स्वास्तिक, पलना, लताएँ आदि चित्रकारी की जाती है
- दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) आरती थाली में की जाती है
- श्रीजी में प्रातः 4 बजे शंखनाद होते हैं और 4.45 मंगला दर्शन खुलते हैं. खुले दर्शनों में ही मंगला आरती के उपरांत टेरा लेकर प्रभु का उपरना बड़ा कर दिया जाता है और तिलकायतश्री, श्री विशालबावा अथवा मुखियाजी (इस बार श्री विशालबावा) कुंकुम से तिलक कर प्रभु को पंचामृत स्नान करते हैं
- पंचामृत स्नान में प्रभु को क्रमशः दूध, दही, घृत (घी), शहद और बूरा (पकी हुई शक्कर का चूरा) का उपयोग किया जाता है
- पंचामृत स्नान के समय प्रभु के दर्शनों का वैष्णव तथा स्थानीय निवासी वर्षभर आतुरता से इन्तजार करते है. प्रभु की छटा अलौकिक दिखायी पड़ती है और ऐसे दर्शन वर्ष में और कभी नहीं होते है
- पंचामृत स्नान के पश्चात् प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है
- रात्रि को प्रभु जन्म उपरांत तो श्री बालकृष्णलालजी के स्वरुप को पंचामृत होता है
- पंचामृत को दर्शन के पश्चात् श्रीजी के पातलघर से सभी वैष्णवों को वितरित किया जाता है जिसे प्रभु प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं
- श्रृंगार काफी देर से लगभग 10 बजे खुलते हैं
- श्रृंगार दर्शन में श्रीजी को तिलक एवं अक्षत किया जाता है, भेंट रखी जाती है. इस दौरान शंख, झालर, धंटा आदि बजाये जाते हैं. प्रभु के सम्मुख हल्दी से चौक पुराया जाता है. राई, लोन से प्रभु की नज़र उतारी जाती है
- श्रीजी के मुख्य पंड्याजी वर्षपत्र पढ़ते हैं
- आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त चन्द्रकला एवं केशरी बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी, चार प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं
- राजभोग में दाख का रायता, सखड़ी भोग में मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात ये पांचभात आरोगाये जाते हैं
- केवल आज के दिन श्री की लम्बी आयु के भाव से तिल गुड़ युक्त दूध प्रभु को अरोगाया जाता है
- राजभोग दर्शन दोपहर लगभग 2.15 को खुलते हैं
- राजभोग अनोसर पश्चात उत्थापन सायंकाल लगभग 7.15 बजे खुलते हैं
- संध्या आरती में जयंती के फलाहार के रूप में मलाई की बासोंदी और खोवा और फीका में घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा आरोगाया जाता है
- संध्या-आरती दर्शन लगभग रात्रि 8.15 बजे खुलते हैं और लगभग रात्रि 9.00 बजे से जागरण के दर्शन होते हैं जो कि रात्रि लगभग 11.45 तक खुले रहते हैं
- तदुपरांत रात्रि 12 बजे भीतर शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है
- प्रभु सम्मुख विराजित श्री बालकृष्णलालजी पंचामृत स्नान होता है
- महाभोग धरा जाता है जिसमें पंजीरी के लड्डू, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरिया घेवर, केशरिया चन्द्रकला, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल आदि अरोगाये जाते हैं
- प्रभु जन्म के समय नाथद्वारा नगर के रिसाला चौक में प्रभु को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इस अद्भुत परंपरा के साक्षी बनने के लिये प्रतिवर्ष वहां हजारों की संख्या में नगरवासी व पर्यटक एकत्र होते हैं. लेकिन कोरोना महामारी के चलते इस बार ऐसा नहीं होगा हालाँकि तोपों से सलामी अवश्य दी जायेगी
श्रीजी दर्शन:
- साज
- आज साज सेवा में लाल रंग की मलमल की सुनहरी ज़री के हांशिया (बड़े लप्पा वाली किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- चोखटा प्राचीन जडाऊ धराया जाता है
- गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल वाले जडाऊ पधराये जाते है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को केसरी रंग की जामदानी के रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित चाकदार वागा, पटका एवं चोली धरायी जाती है
- सूथन लाल रंग का धराया है
- लाल रंग का पीताम्बर चौखटे के ऊपर धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं
- श्रृंगार
- आज प्रभु श्रीनाथजी को अतिभारी तिहरा श्रृंगार धराया जाता है.
- प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी से भारी श्रृंगार धराया जाता है
- उत्सव के तीन जोड़ी के नवरत्नों (हीरा-पन्ना, माणक, मोती) के आभरण धराये जाते हैं
- हांस, त्रवल, बघनखा आदि धराये जाते हैं
- वैजयंतीमाला धरायी जाती है
- श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर जमाव का शीशफूल धराया जाता है
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है
- पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है
- प्रभु के मुखारविंद पर केशर से कपोलपत्र किये जाते हैं
- पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्वर्ण जड़ाव के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है
- श्री चरणों में पैंजनिया, नुपुर, बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है
- खेल के साज में पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं
- आरसी श्रृंगार में जड़ाऊ स्वर्ण की व राजभोग में उस्ताजी की बड़ी दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: नैन भर देखो नन्द कुमार
- तिलक में: आज बधाई को दिन नीको
- राजभोग: ऐ री ऐ आज नन्दराय के आनंद
- आरती: यह धन धर्म ही ते पायो
- शयन: चलो मेरे लाडिले हो
- जागरण: पद्म धर्यो, मोहन नन्दराय, वन्दे धरण,
- भादो की रात, महानिस भादो, जन्म लियो शुभ
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
आप सभी को पुनः खूब-खूब बधाई।
……………………
जय श्री कृष्ण
………………………
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
……………………….