व्रज – आश्विन कृष्ण द्वादशी, गुरुवार, 22 सितम्बर 2022
आज श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र गोपीनाथजी का उत्सव है.
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज मंगला व श्रृंगार में दान के, राजभोग में श्री गोपीनाथजी की बधाई के और संध्या को सांझी के कीर्तन गाये जाते हैं.
- श्रीजी को दान की हांडियों के अतिरिक्त गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.
- साज
- साज सेवा में आज श्रीजी में हल्के आसमानी रंगी की छापा वाली तथा लाल एवं रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया, चरणचौकी, दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है.
- इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया व स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- खेल के साज में आज लाल और गोटी श्याम मीना की पधरायी जाती है.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज मध्य का अर्थात घुटने तक का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण सोने में पन्ना के जडाऊ के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज कस्तूरी कली मालाए, श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी जिनमे एक-एक स्वर्ण के होते है धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है.
- आरसी श्रृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: गोरस बेचन को चली
- राजभोग: केसर की धोती पहरे
- आरती: अहो विधना तोपे अचरा पसार
- शयन: लाल हों पायन लागूं तेरे
- मान: नवल कुञ्ज नवल मृगनैनी
- पोढवे: पोढ़े हरी राधिका के समग
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- सांझी दर्शन में आज संध्या आरती पश्चात श्रीनाथजी मंदिर के कमल चौक स्थित हाथीपोल की दहलीज पर वृन्दावन, बैठक और रास स्थल, कालियदमन, श्री यमुनाजी आदि के भाव की सांझी मांडी जाती है.
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जय श्री कृष्ण
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