व्रज – आश्विन शुक्ल नवमी, मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022
नवम विलास की भावना: आज नव विलास के तहत नवम विलास है. नवम विलास का लीला स्थल बंशीवट है.
- आज नव विलास के तहत नवम विलास है. नवम विलास का लीला स्थल बंशीवट है.
- आज के मनोरथ की मुख्य सखी श्री लाडिलीजी ने नवधा भक्तों को बुलाया है.
- सामग्री पूवा, खोवा, मिठाई मेवा आदि नवधा भांति की होती है. यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई, पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.
- श्रीजी को आज गोपीवल्लभ में मोहनथाल(डेढ़ बड़ी) आरोगाया जाता हैं.
- आज नवविलास का अंतिम दिन है और समाप्ति पर नवम विलास में श्री लाडिलीजी की सेवा बंशीवट विहार एवं प्रिया-प्रियतम की रसलीला का वर्णन है.
- साज
- साज सेवा में आज लाल छाप्पा की पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पानघर की सेवा के तहत बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- प्रभु के सम्मुख चांदी की त्रस्टीजी धरे जाते हैं जो कि दिन के अनोसर में ही धरे जाते हैं.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- पट लाल व गोटी छोटी सोना की आती है.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को लाल रंग के छापा के सुनहरी एवं रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज मध्य का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.
- आज पन्ना की चार माला धराई जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ विविध पुष्पों की एक एवं दूसरी गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- आरसी श्रृंगार में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.
- मंगला: आरसी श्रृंगार में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.
- राजभोग: तेसोई तरुण तनया तीर
- आरती: सुन मुरली की टेर
- शयन: नेक सुनाओ मोहन मुरली
- मान: आज अजन दियो राधिका नैन
- पोढवे: पोढ़ीये लाल लाडिली संग
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
नवम विलास कियौ जू लडैती, नवधा भक्त बुलाये ।
अपने अपने सिंगार सबै सज, बहु उपहार लिवाये ।। १ ।।
सब स्यामा जुर चलीं रंगभीनी, ज्यों करिणी घनघोरें ।
ज्यों सरिता जल कूल छांडिकें, उठत प्रवाह हिलोरें ।। २ ।।
बंसीवट संकेत सघन बन, कामकला दरसाये ।
मोहन मूरति वेणुमुकुट मणि, कुंडल तिमिर नसाये ।। ३ ।।
काछनी कटि तट पीत पिछौरी, पग नूपुर झनकार करें ।
कंकण वलय हार मणि मुक्ता, तीनग्राम स्वर भेद भरें ।। ४ ।।
सब सखियन अवलोक स्याम छबि, अपनौ सर्वसु वारें ।
कुंजद्वार बैठे पियप्यारी, अद्भुतरूप निहारें ।। ५ ।।
पूआ खोवा मिठाई मेवा, नवधा भोजन आनें ।
तहाँ सतकार कियौ पुरुषोत्तम, अपनों जन्मफल मानें ।। ६ ।।
भोग सराय अचबाय बीरा धर, निरांजन उतारे ।
जयजय शब्द होत तिहुँपुरमें, गुरुजन लाज निवारे ।। ७ ।।
सघनकुंज रसपुंज अलि गुंजत, कुसुमन सेज सँवारी ।
रतिरण सुभट जुरे पिय प्यारी, कामवेदना टारी ।। ८ ।।
नवरस रास बिलास हुलास, ब्रजयुवतिन मिल कीने ।
श्रीवल्लभ चरण कमल कृपातें, रसिक दास रस पीने ।। ९ ।।
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राजभोग दर्शन कीर्तन (राग : नट बिलावल)
आन और आन कहत भेचक रहत व्रजनारी नर l
कटु तिकत आम्ल मधुर खारे सलोने प्रकार खटरसको प्रीतसों आरोगत सुन्दरवर ll 1 ll
गिरिराज बरन बरन शिला जु सहस्त्रन मोदक ठोर ठोर बेसन गुंजा बाबरन l
‘राजाराम’के प्रभु को अचवावन कारन इन्द्र झारी भर लायो जलधर ll 2 ll
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जय श्री कृष्ण
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