व्रज – आश्विन शुक्ल चतुर्दशी शनिवार, 8 अक्टूबर 2022
रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं जिसके तहत आज महारास की सेवा का तृतीय अध्याय मुकुट का श्रृंगार है जिसमें लघुरास, रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- साज
- साज सेवा में आज शरद रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- खेल के साज में पट सफ़ेद व गोटी मोर की धराई जाती है.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को श्वेत रंग की जरी की लाल हांशिया से सुसज्जित सूथन, काछनी धराये जाते है.
- पीताम्बर श्वेत मलमल का धराया जाता है
- चोली स्याम सुतरु की धरायी जाती हैं.
- ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट टोपी एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- कस्तूरी, कली एवं कमल माला धरायी जाती हैं हांस, त्रवल हीरा के आते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- आरसी श्रृंगार में काँच के कलात्मक काम की बावा साहब वाली दिखाई जाती हैं.
- विशेष: श्री यमुनाजी के भाव से शयन में मंगला की भांति चूंदड़ी का उपरना धराया जाता है.
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत मुकुट, टोपी व सभी वस्त्र, आभरण बड़े कर मंगला के दर्शन की भांति-चोफुली चूंदड़ी का उपरना, हीरा मोती के छेड़ान के श्रृंगार एवं श्रीमस्तक पर गोल-पाग के ऊपर-सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं और शयन के दर्शन खुलते हैं.
- इस ऋतु में चूंदड़ी के वस्त्र आज अंतिम बार धराये जाते हैं.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: मंजुल करत कुंज देस राधा
- राजभोग: करत हरी निर्त नव रंग राधा रंग
- आरती: कृष्ण तरन तनया तीर
- शयन: सुन धुन मुरली बन बाजे
- मान: उठ चले बेग राधिका
- पोढवे: भयो हरी पोढ़न को समय
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
राजभोग दर्शन कीर्तन – (राग : सारांग)
करत हरि नृत्य नवरंग राधा संग,
लेत नवगति भेद, चरचरी तालके ।
परस्पर दरस रसमत्त भये तत्त थेई थेई,
गति लेत संगीत सुरसालके ॥ १ ॥
फरहरत बर्हिवर थरहरत उपहार,
भरहरत भ्रमर वर, विमल वनमालके ।
खसित सित कुसुम शिर, हँसत कुंतल मानों,
लसत कल झलमलत,स्वेद कण भालके ॥ २ ॥
अंग अंगन लटक मटक भृंगन भ्रोंह,
पटक पटताल कोमल चरण चालके ।
चमक चल कुंडलन दमक दशनावली,
विविध विद्युत भाव, लोचन विशालके ॥ ३ ॥
बजत अनुसार द्रिम द्रिम मृदंग निनाद,
झमक झंकार, कटि किंकिणि जालके ।
तरल ताटक तड़ित, नील नव जलद में,
यौं विराजत प्रिया, पास गोपालके ॥ ४ ॥
युवति जन यूथ अगणित, बदन चंद्रमा,
चंद्र भयौ मंद उद्योत तिहिं कालके ।
मुदित अनुराग वश, राग रागिणी,
तान गान गत गर्व, रंभादि सुर बालके ॥ ५ ॥
गगनचर सघन रास मगन बरषत फूल,
बार डारत रत्न जतन भर थालके ।
एक रसना गदाधर न वर्णत बनै,
चरित्र अद्भुत कुँवर गिरिधरन लालके ॥ ६ ॥
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जय श्री कृष्ण
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