व्रज – कार्तिक कृष्ण द्वितीया मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022
विशेष : आज अधकि (मनोरथी) का छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)
आज श्रीजी में श्रीजी में वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
श्रीजी में घर के छप्पनभोग और अदकी के छप्पनभोग में कुछ अंतर होते हैं –
- नियम (घर) के छप्पनभोग की सामग्रियां उत्सव से पंद्रह दिवस पूर्व अर्थात मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है परन्तु अदकी के छप्पनभोग की सामग्रियां मनोरथ से आठ दिवस पूर्व ही सिद्ध होना प्रारंभ होती है.
- नियम (घर) के छप्पनभोग ही वास्तविक छप्पनभोग होता है क्योंकि अदकी का छप्पनभोग वास्तव में छप्पनभोग ना होकर एक मनोरथ ही है जिसमें विविध प्रकार की सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती है.
- नियम (घर) का छप्पनभोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन प्रातः लगभग 11 बजे खुल जाते हैं जबकि अदकी का छप्पनभोग मनोरथ राजभोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन दोपहर लगभग 12 बजे खुलते हैं.
- नियम (घर) के छप्पनभोग में श्रीजी के अतिरिक्त किसी स्वरुप को आमंत्रित नहीं किया जाता जबकि अदकी के छप्पनभोग मनोरथ में श्री तिलकायत की आज्ञानुसार श्री नवनीतप्रियाजी में राजभोग अपेक्षाकृत कुछ जल्दी होते हैं और
लालन अपने घर राजभोग अरोग कर श्रीजी में पधारते हैं व श्रीजी की गोदी में विराजित हो छप्पनभोग अरोगते हैं. - नियम (घर) का छप्पनभोग उत्सव विविधता प्रधान है अर्थात इसमें कई अद्भुत सामग्रियां ऐसी होती है जो कि वर्ष में केवल इसी दिन अरोगायी जाती हैं परन्तु अदकी के छप्पनभोग मनोरथ संख्या प्रधान है अर्थात इसमें सामान्य मनोरथों में अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अधिक मात्रा (351)में अरोगायी जाती हैं.
- उत्सव रुपी वृहद मनोरथ होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.
मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के पणा (मुरब्बा) का भोग अरोगाया जाता है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात ) अरोगाये जाते हैं.
छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते हैं.
- साज
- साज सेवा में आज श्रीजी में श्याम रंग के हांशिया वाली श्याम आधार वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. जिसमें गायों व बछड़ो का चित्रांकन किया गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे श्रीजी गायों के मध्य विराजित हों.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को लाल ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. पीला पटका.
- ठाड़े वस्त्र पीले दरियाई रेशमी वस्त्र के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण फिरोजा के धराये जाते हैं.
- श्री मस्तक पर लाल टिपारा का साज तुर्री, पेच, मोर चन्द्रिका एवं दोहरा कतरा ले साथ बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में फिरोजा के कुंडल धराये जाते हैं.
- कली कस्तूरी वैजन्ती माला माला धराई जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, फिरोजा के वेणुजी एवं दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट लाल का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.
- आरसी उत्सववत की दिखाई जाती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : गोद बैठे गोपाल कहत
- राजभोग : मदन गोपाल गोवर्धनधारी
- आरती : बोल लिए सब ग्वाल
- शयन : जयत जयत श्रीगोवर्धन उद्धरनधीरे
- मान : रूप रस पुंज बरनो
- पोढवे : रुच रुच सेज सजाई
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर टिपारा ही रहता है और लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.
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जय श्री कृष्ण
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