व्रज – कार्तिक कृष्ण षष्ठी शनिवार, 15 अक्टूबर 2022
- बड़े उत्सवों के पहले उन उत्सवों के प्रतिनिधि के श्रृंगार धराये जाते हैं.
- ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि (आगम) के श्रृंगार भी कहे जाते हैं.
- इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली त्रयोदशी अर्थात धनतेरस को धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जायेगा जिसमें कत्थई आधारवस्त्र पर कला बत्तू के सुन्दर काम से सुसज्जित पिछवाई, हरी सलीदार ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है. लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की त्रयोदशी (धनतेरस) को भी धराये जायेंगे.
- इस श्रृंगार को धराये जाने का अलौकिक भाव भी जान लें. अन्नकूट के पूर्व अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं. जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. आज का श्रृंगार ललिताजी की ओर का है.
- यह श्रृंगार निश्चित है यद्यपि इस श्रृंगार को धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज कत्थई रंग के आधारवस्त्र के ऊपर सुनहरी के कशीदे (कला बत्तू) के ज़रदोज़ी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज हरे रंग की सलीदार ज़री की सूथन, पटका, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरे, मोती, पन्ना,माणक एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- त्रवल के स्थान पर टोडर धराये जाते हैं.
- कस्तूरी, कली आदि सब माला धरायी जाती हैं.
- श्रीमस्तक पर हरी सलीदार ज़री चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर माणक का पट्टीदार सिरपैंच, उसके ऊपर-नीचे मोती की लड़, नवरत्न की किलंगी, मोरपंख की चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- पीठिका के ऊपर जड तल (हीरे) का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (माणक व सोने के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- खेल के साज में पट हरा, गोटी शतरंज की आती है.
- सोने पीले खंड की आरसी श्रृंगार में व राजभोग में सोने के डांडी की दीखाई जाती है.
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: अपने-अपने टोल कहत बृजवासीयां
- राजभोग: आज कहाँ संभ्रम तिहारे
- आरती से शयन तक: गोद बैठे गोपाल कहत ब्रजराज सों
- मान: हरी बोलत चल गोकुल की नारी
- पोढवे: वे देखो बरत झरोखन
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर बीच का दुमाला ही रहता है और लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.
………………………
जय श्री कृष्ण
………………………
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
……………………….