व्रज – कार्तिक कृष्ण छठ-2 रविवार, 16 अक्टूबर 2022
आगम (प्रतिनिधि) का श्रृंगार – बड़े उत्सवों के पहले उनके श्रृंगार के प्रतिनिधि के श्रृंगार धराये जाते हैं. ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि के श्रृंगार कहे जाते हैं.
- इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली चतुर्दशी अर्थात रूप-चौदस या नरक चतुर्दशी को धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जाता है जिसमें हल्के चंपाई आधारवस्त्र पर सुरमा-सितारा के भरतकाम (भीम पक्षी के पंख की) से सुसज्जित पिछवाई, सुनहरी ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है जिसका विस्तृत विवरण नीचे दिया है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज हल्के चंपाई रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोशी के काम वाली एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज सुनहरी (फुलकसाई) ज़री का सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं.
- पटका रुपहली ज़री का
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज वनमाला का अर्थात चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण मिलवा – हीरे की प्रधानता के, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सुनहरी फुलकसाई ज़री के चीरा अर्थात ज़री की पाग के ऊपर हीरा-पन्ना का सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- लूम व झोरा हीरा के आते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरे के चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
- हांस, त्रवल आदि सर्व श्रृंगार, कस्तूरी व कली की माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व सोने के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट उत्सव का व गोटी जडाऊ चौपड़ की आती है.
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े कर शयन समय छोटे छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर चीरा पर नवरत्न की किलंगी और मोती की लूम धरायी जाती है.
- श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: बोल लिए सब ग्वाल कहत
- राजभोग: हमारो देव गोवर्धन पर्वत
- आरती: आज कहाँ संभ्रम तिहारे
- शयन: बाजत नन्द आवास बधाई
- मान: लालन मनायो न माने
- पोढवे:वे देखो बरत झरोखन दीपक
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर बीच का दुमाला ही रहता है और लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.
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राजभोग दर्शन कीर्तन (राग : सारंग)
हमारो देव गोवर्धन पर्वत गोधन जहाँ सुखारो l
मघवाको बलि भाग न दीजे सुनिये मतो हमारो ll 1 ll
बडरे बैठ बिचार मतो कर पर्वतको बलि दीजे l
नंदरायको कुंवर लाडिलो कान्ह कहे सोई कीजे ll 2 ll
पावक पवन चंद जल सूरज वर्तत आज्ञा लीने l
या ईश्वर को कियो होत है कहा इंद्र के दीने ll 3 ll
जाके आसपास सब व्रजकुल सुखी रहे पशुपारे l
जोरो शकट अछूते लेले भलो मतो को टारे ll 4 ll
माखन दूध दह्यो घृत घृतपक लेजु चले व्रजवासी l
अद्भुत रूप धरे बलि भुगतत पर्वत सदा निवासी ll 5 ll
मिट्यो भाग सुरपति जब जान्यो मेघ दीये मुकराई l
‘मेहा’ प्रभु गिरि कर धर राख्यो नंदसुवन सुखदाई ll 6 ll
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जय श्री कृष्ण
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