व्रज – कार्तिक कृष्ण सप्तमी सोमवार 17 अक्टूबर 2022
विशेष: दीपावली पूर्व का अभ्यंग एवं अभ्यंग का श्रृंगार
- दीपोत्सव के पूर्व के नियत श्रृंगारों के मध्य इस पखवाड़े में एक बार अभ्यंग अवश्य होता है. इसका दिन नियत नहीं परन्तु होता अवश्य है.
- इसी भाव से आज मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को – चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जायेगा.
- अभ्यंग के साथ घेरदार वस्त्र का श्रृंगार भी धराया जाता है .इसमें लाल सलीदार ज़री के घेरदार वस्त्र, चोली, सूथन, पटका व श्रीमस्तक पर चीरा (ज़री की पाग) धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र श्याम धराये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज श्याम रंग के आधारवस्त्र के ऊपर झाड़ फ़ानुस एवं सेवा करती सखियों की सुनहरी कशीदे के ज़रदोशी के काम वाली तथा पुष्पों के सज्जा के कशीदे के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री के एवं सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज छोटा कमर तक का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण पन्ना एवं सोने के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल सलीदार ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम तथा चमकनी गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में आज पट लाल व गोटी मीना की आती है.
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक पर धराये श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं और शयन दर्शन खुलते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: गोकुल को कुल देवता
- राजभोग: गोधन पूजे गोधन आवे
- आरती: बुझत राय लाल अपने
- शयन: ये ही है कुल देव हमारो
- मान: चढ़ बढ़ बिडर गई
- पोढवे: रुचिर रुचिर तर सेज बनाई
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर बीच का दुमाला ही रहता है और लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.
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राजभोग दर्शन कीर्तन (राग : सारंग)
गोधन पूजें गोधन गावें ।
गोधनके सेवक संतत हम गोधनहीकों माथो नावें ।।१।।
गोधन मात पिता गुरु गोधन गोधन देव जाहि नित्य ध्यावें ।
गोधन कामधेनु कल्पतरु गोधनपें मागें सोईपावें ।।२।।
गोधन खिरक खोर गिरि गव्हर रखवारो घरवन जहां छावें ।
परमानंद भांवतो गोधन गोधनहीकों हमहूं पुनभावें ।।३।।
जय श्री कृष्ण
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