व्रज – कार्तिक कृष्ण दशमी गुरुवार, 20 अक्टूबर 2022
विशेष:
पुष्टि प्रणालिका के आधार पर जहाँ निधि स्वरुप विराजित हों उन सभी मंदिरों में मंदिर के द्वार (नक्कार खाने) के ऊपर नौबत नगाड़े बजाये जाते हैं एवं रात्रि को रौशनी की जाती है.
- विगत कल से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं.
- आज निज मंदिर में फूल-पत्ती की बाड़ी आती हैं
- आज की सेवा चम्पकलताजी के भाव की है आज का श्रृंगार निश्चित है जिसमें श्याम ज़री के चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं श्रीमस्तक पर श्याम चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर नागफणी का कतरा धराया जाता है.
- तकिया पर लाल मखमल कि खोल आती है.
- आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी (सूखे मेवों से भरा लड्डू के आकार का खस्ता ठोड़) अरोगायी जाती है.
- कल से पुष्टिमार्ग में गोवर्धन-लीला प्रारंभ हो गयी है.
- प्रभु श्रीकृष्ण ने सात दिन तक गोवर्धन पर्वत धारण किया था इस भाव से विगत कल से सात दिन तक विशेषतया गोवर्धन-पूजन के पद गायन होता है.
- कीर्तनों में राजभोग समय गोवर्धन-पूजा के पद गाये जाते हैं.
- भोग-आरती में गौ-क्रीड़ा के पद एवं शयन में रौशनी, दीपदान एवं हटड़ी के पद गाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में श्रीजी में आज गेरू (कत्थई) रंग की धरती पर वृक्ष, पुष्प, पत्तियों आदि के सिलमा सितारों की ज़रदोशी के अद्भुत काम वाली एवं ज़रदोशी के ही काम वाले हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी-तकिया के ऊपर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज श्याम सलीदार ज़री की सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं.
- सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं
- श्रृंगार
- प्रभु को आज छोटा कमर तक का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरे एवं मोती के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर श्याम सलीदार ज़री का चीरा (श्याम ज़री की पाग) के ऊपर किलंगी वाला सिरपैंच, डाख (ज़री के काम) का जमाव का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल की दो जोड़ी धराये जाते हैं.
- नीचे चार हीरा की जुगावली, ऊपर सात मोती की माला व हार धराये जाते हैं.
- हीरा की बग्घी व कंठी धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (श्री विट्ठलेशरायजी के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- पट प्रतिनिधि का व गोटी श्याम मीना की आती है.प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृंगार संध्या-आरती उपरांत बड़े कर शयन समय हल्के श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम तुर्रा धराये जाते हैं.
- शयन समय मणिकोठा व डोल तिबारी में हांडी में रौशनी की जाती है वहीँ निज मन्दिर में कांच मृदंग में रौशनी की जाती है.
- कल से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.
- इसके अतिरिक्त कल से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: गोकुल गोधन पूज ही गिरधर
- राजभोग: चलेरी गोपाल गोवेर्धन
- आरती: गाय खिलायो चाहे गिरधर
- शयन: सरस लीला 51 – 54
- शयन पीछे: हटरी के पद
- पोढवे: रुचिर रुचिर सेज बनाई
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर बीच का दुमाला ही रहता है और लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.
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राजभोग दर्शन कीर्तन (राग : सारंग)
गोवर्धन पूजन चलेरी गोपाल l
मत्त गयंद देख जिय लज्जित निरख मंदगति चाल ll 1 ll
व्रज नारिन पकवान बहुत कर भर भर लीने थाल l
अंग सुगंध पहर पट भूषण गावत गीत रसाल ll 2 ll
बाजे अनेक वेणु रवसो मिलि चलत विविध सुर ताल l
ध्वजा पताका छत्र चमर धर करत कुलाहल ग्वाल ll 3 ll
बालक वृंद चंहुदिश सोहत मानो कमल अलिमाल l
‘कुंभनदास’ प्रभु त्रिभुवन मोहन गोवर्धनधर लाल ll 4 ll
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जय श्री कृष्ण
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