व्रज – कार्तिक शुक्ल अष्टमी, मंगलवार, 01 नवंबर 2022
विशेष: आज अति आनंद का दिवस है. भावना यह है कि प्रभु प्रातः जल्दी उठकर सुगन्धित पदार्थों से अभ्यंग कर, श्रृंगार धारण कर खिड़क में पधारते हैं, गायों का श्रृंगार करते हैं, उनको खूब खेलाते हैं.
श्रीजी का सेवाक्रम
- महोत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं
आज मंगला दर्शन का समय प्रातः 4.45 बजे खोले जाते हैं.
- मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- श्रीजी को नियम के लाल सलीदार ज़री की सूथन, फूलक शाही श्वेत ज़री की चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ज़री की कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धरायी जाती है.
- श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं.
- ये सामग्रियां कल अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दीवला व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव आदि अरोगाये जाते हैं.
- भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.
- आरती समय अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर गेहूँ के पाटिया के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.
- आज राजभोग आरती के पश्चात पूज्य श्री तिलकायत अन्नकूट महोत्सव के लिए चांवल पधराने जाते हैं. उनके साथ चिरंजीवी श्री विशालबावा, श्रीजी के मुखियाजी व अन्य सेवक श्रीजी के ख़ासा भण्डार में जा कर टोकरियों में भर कर चांवल भीतर की परिक्रमा में स्थित अन्नकूट की रसोई में जाकर पधराते हैं.
- तदुपरांत नगरवासी व अन्य वैष्णव भी अपने चांवल अन्नकूट की रसोई में अर्पित करते हैं. आज सायं से अन्नकूट की चांवल की सेवा प्रारंभ होती है.
- आज श्रीजी में राजभोग दर्शन पश्चात कोई दर्शन बाहर नहीं खोले जाते.
- श्री नवनीत प्रियाजी कान जगाई करने के लिए सांय 5 बजे गोवर्धन पूजा चौक पधारेंगे जहां गौमाता गौशाला से गोवर्धन पूजा चौक पधारेंगी. कान जगाई के पश्चात श्री नवनीत प्रियाजी के हटड़ी के दर्शन सांय 6:30 बजे खुलेंगे
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज श्रीजी में नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज (द्वितीय) कृत जड़ाव की, श्याम आधारवस्त्र पर कूंडों में वृक्षावली एवं पुष्प लताओं के मोती के सुन्दर ज़रदोशी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है
- गादी, तकिया जडाऊ एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल ज़री का सूथन व फूलक शाही श्वेत ज़री के रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं
- ठाड़े वस्त्र अमरसी अर्थात गहरे केसरी रंग के धराये जाते हैं
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करे तो श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का तीन जोड़ी (माणक, हीरा-माणक व पन्ना) का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- मिलवा – हीरे, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर फूलकशाही श्वेत ज़री की जडाव की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तथा पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर माणक की चोटीजी अर्थात शिखाजी धरायी जाती है.
- पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.
- श्रीकंठ में बघनखा धराया जाता है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- आरसी जड़ाऊ की दिखाई जाती हैं.
- खेल के साज में पट व गोटी उत्सववत राखी जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: गोकुल गोधन पूज ही गिरधर नन्द लाल
- राजभोग: गुर के गूंजा पुवा
- आरती: खेली बहो खेली
- कान जगाई:
- आलापचारी
- कान जगावन चलेरी कन्हाई
- दीपदान दे श्याम मनोहर
- खिलावत शोभा भारी गाय
- हटरी:
- आयी ब्रज बधु मन हरण
- देखो इन दीपन की सुन्दराई
- आज दीपत दिव्य दीपमालिका
- आज अमावस दीप मालिका
- और भी हटरी के पद
- आज शयन भोग, शयन, मान व पोढवे के पद नहीं होते है.
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यह दिवारी वरस दिवारी, तुमको नित्य नित्य आवो ।
नंदराय और जसोदारानी, अति सुख पूजही पावो ।।१।।
पहले न्हाय तिलक गोरोचन,देव पितर पूजवो ।
श्रीविट्ठलगिरिधरन संग ले गोधन पूजन आवो ।।२।।
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जय श्री कृष्ण
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