व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया, गुरुवार, 10 नवम्बर 2022
आज का श्रृंगार ऐच्छिक है: ऐच्छिक श्रृंगार उन दिनों में धराया जाता है जिन दिनों के लिए श्रीजी की सेवा प्रणालिका में कोई श्रृंगार निर्धारित नहीं होता है. इसकी प्रक्रिया के तहत प्रभु श्री गोवर्धनधरण की प्रेरणा सर्वोपरि है जिसके तहत मौसम के अनुसार तत सुख की भावना से पूज्य तिलकायत श्री की आज्ञा के अनुसार मुखियाजी के द्वारा श्रृंगार धराया जाता है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज चीरहरण के भाव की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोशी के काम वाली (शीतकाल की) एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज हरे रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित चोली, चाकदार वागा व सूथन धराये जाते हैं.
- पटका हरे रंग का मलमल का धराया जाता हैं.
- ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज छेड़ान का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण गुलाबी मीना व स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच तथा पगा चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक
- थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में वस्त्रों के जैसे ही मोजाजी के साथ पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट फ़िरोज़ी व गोटी चाँदी की बाघ बकरी के आते है.
- आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
- सायंकालीन सेवा में परिवर्तन:
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: हरी जस गावत चली ब्रजनार
- राजभोग: चल री सखी नन्दगाँव जाय बसिये
- आरती: गोवर्धन गिर चढ़ टेरी गांग बुलाई
- शयन: तेरे री बदन कमल पर
- मान: मान नी मान मेरो कह्यो
- पोढवे: रंग महल सुखदाई पोढ़े
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जय श्री कृष्ण
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