व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी, मंगलवार, 15 नवम्बर 2022
विशेष: आज वर्तमान पूज्य तिलकायत गौस्वामी श्री राकेशजी महाराजश्री के पितृचरण एवं नाथद्वारा सहित पुष्टि सृष्टी के लाडले कहलाने वाले नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज श्री का प्राकट्योत्सव है. आज की सेवा श्री रसालिकाजी एवं श्री ललिताजी के भाव से होती है
श्रीजी का सेवाक्रम:
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी हल्दी से मांडी जाती हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में होती है.
- आज से मंगला भोग में श्रीजी को गेहूं के आटे (चून) का सीरा का डबरा डोलोत्सव तक प्रतिदिन नियम से अरोगाया जाता है.
- उत्सव की बधाई के रूप में बाललीला के पद गाये जाते हैं.
- सामान्यतया सभी बड़े उत्सवों पर प्रभु को भारी श्रृंगार धराया जाता है परन्तु आपश्री का भाव था कि भारी आभरण से प्रभु को श्रम होगा अतः आपश्री ने आपके जन्मदिवस पर प्रभु को हल्का श्रृंगार धरा कर लाड़ लडाये.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को केशरयुक्त जलेबी के टूक, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व चार फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव व छःभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं.
- सामान्यतया उत्सवों पर पांचभात ही अरोगाये जाते हैं. छठे भात के रूप में (नारंगी भात) शीतकाल में कुछेक विशेष दिनों में ही अरोगाये जाते हैं.
- श्रृंगार से राजभोग के भोग आवे तब तक पलना के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- आज श्रीजी में केसरी साटन की सलमा-सितारा के भरतकाम वाली पिछवाई साजी जाती है जिसमें नन्द-यशोदा प्रभु को पलना झुला रहे हैं और पलने के ऊपर मोती का तोरण शोभित है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज पतंगी रंग की साटन का रुपहली ज़री की किनारी वाला सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं.
- पीला मलमल का रुपहली ज़री की किनारी वाला कटि-पटका धराया जाता है.
- मोजाजी भी पीले मलमल के धराये जाते है.
- मेघश्याम रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर पीले मलमल की छोरवाली (ऊपर-नीचे छोर) गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच की जगह हीरा का शीशफूल उस पर हीरा की दो तुर्री, घुंडी की लूम एवं चमक की गोल-चन्द्रिका धरायी जाती हैं.
- अलक धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में हीरा की बद्दी व एक पाटन वाला हार धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में द्वादशी वाले वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि धराये जाते है.
- खेल के साज में पट उत्सव का, गोटी कांच की आती है.
- आरसी श्रृंगार में लाल मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की दिखाई जाती है.
- सायंकालीन सेवा में परिवर्तन:
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: देहो ब्रजनाथ आंगी
- राजभोग: श्री वल्लभनंदन रूप सरूप, नेक चिते अब चलेरी लालन ले जू गए
- आरती: बधाई जन्माष्टमी की, आज तो गोकुल गाम कैसो रह्यो
- शयन: बाल लीला केपद, कनक कुसुम अति श्रवण
- मान: तेरे सुहाग की महिमा मोपे
- पोढवे: लागत है अत शीत की निकी
नाथद्वारा के युगपुरुष नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री संक्षिप्त जीवन परिचय
मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी विक्रम संवत १९८४ में तिलकायत श्री दामोदरलाल जी महाराजश्री के यहाँ आपका जन्म हुआ एवं विक्रम संवत १९८८ में श्रीजी मंदिर के रतनचौक में आपका मुंडन हुआ. विक्रम संवत १९९० में आपके तातजी श्री गोवर्धनलालजी महाराज का लीलाप्रवेश हुआ एवं इसके दो वर्ष बाद ही आपके पिता श्री दामोदरलालजी महाराजश्री का भी लीलाप्रवेश हो गया.
इस प्रकार आप केवल ८ वर्ष की अल्पायु में ही पिता की छत्रछाया खो बैठे. कई बदनीयत लोगों ने नाथद्वारा को नष्ट-भ्रष्ट करने का प्रयत्न किया. विक्रम संवत १९९५ में आपका उपनयन संस्कार हुआ एवं आप तिलकायत पद पर आसीन हुए.
यहाँ से नाथद्वारा के शुभ दिन प्रारंभ हुए. जब से आप तिलकायत के रूप में गादी पर विराजे तब से आपने अनेक धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में विशिष्ट कार्य किये जिससे नाथद्वारा की कायापलट हुई. श्रीजी के सुखार्थ अनेक मनोरथ किये. सोने का बंगला, नाव का मनोरथ, छप्पनभोग, सोने का हिंडोलना, सांझी का मनोरथ, सप्त-स्वरूपोत्सव आदि कई मनोरथों के अलावा आपने कई मूल्यवान सुन्दर पिछवाईयां, आभूषण, बंगले, हिंडोलने आदि श्रीजी की सेवा में भेंट किये.
विक्रम संवत २००२ में आपका शुभलग्न तृतीय गृह बलभद्र लालाजी की पुत्री रसिकप्रियाजी के साथ नाथद्वारा में हुआ. आप तिलकायत पद पर विराजे तब से आपने अनेक राजनितिक संकटों का सामना किया. तत्कालीन सरकार में आपके विरोधियों की कुदृष्टि के चलते आपको अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा परन्तु ८-१० वर्षों की मुश्किलों के बाद अन्तोत्गत्वा आप माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विजयी होकर श्री गोवर्धनधरण प्रभु की सेवा के सर्वाधिकार पुनः प्राप्त कर नाथद्वारा पधारे. कई तत्कालीन विरोधी नेताओं को अपनी सफलता का चमत्कार बताया.
श्री गोवर्धनधरण प्रभु एवं श्री नवनीतप्रियाजी की सेवा सुदृढ़ रीती से चलती रहे, प्रभु के सुख और वैभव में निरंतर वृद्धि होती रहे एवं सेवा में कोई प्रतिबन्ध ना आवे इस हेतु आपने दूरदर्शिता दिखाते हुए अपने सभी अधिकार सुरक्षित रखते हुए नाथद्वारा मंदिरमंडल की स्थापना की जिसके आप स्वयं अध्यक्ष बने. नाथद्वारा नगर एवं नगरवासियों के विकास के लिए आपने अथक प्रयत्न किये. वाचनालय, पुस्तकालय, पाठशालाएँ, विद्यालय, कन्याशाला, बैंक, पब्लिक पार्क, धर्मशालाएं एवं दुकानों आदि का निर्माण कराया. विद्या-विभाग प्रेस की उन्नति के लिए शुद्धाद्वैत विद्यापीठ की स्थापना की.
श्रीनाथ पंचांग एवं टिप्पणी प्रकाशित करवाई जिससे आज भी सभी वैष्णव लाभान्वित हो रहे हैं.
आपके यहाँ दो पुत्र एवं एक बेटी जी का जन्म हुआ. प्रथम कुमार नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री दाऊजी (राजीव जी) का जन्म विक्रम संवत २००५ में पौष कृष्ण प्रतिपदा को हुआ. द्वितीय कुमार तिलाकायत श्री इन्द्रदमन जी (राकेश जी) का जन्म फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को हुआ. आपकी पुत्री नीरा बेटीजी का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को हुआ. ऐसे नाथद्वारा के युगपुरुष नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री के जन्मोत्सव की सभी वैष्णवों को अनेकानेक बधाईयाँ
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जय श्री कृष्ण
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