सीबीए में विद्यार्थियों से चर्चा के दौरान रूबरू हुए मुनि अतुल
नाथद्वारा (दिव्य शंखनाद)। युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती शासन श्री मुनि रविंद्र कुमार जी एवं मुनि श्री अतुल कुमार जी के सानिध्य में द क्रिएटिव ब्रेन एकेडमी सीनियर सैकण्डरी स्कूल में प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित हुआ।
कार्यक्रम की शुरूआत मंगलाचरण अणुव्रत गीत के द्वारा की गयी। मंगला चरण के पश्चात् सीबीए के निदेशक शिवहरि शर्मा व प्रशासिका शीतल गुर्जर द्वारा मुनिद्वय तथा तेरापंथ समाज से आये श्रावक समाज का स्वागत किया गया। कार्यक्रम की अगली कडी में सीबीए की छात्रा निष्का जैन ने जैन धर्म की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए जैन अवधारणा से सभी को रूबरू करवाया।
सीबीए के निदेशक शिवहरि शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि जैन धर्म को करीब ने जाना जाए तो व्यक्तित्व में कई सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते है। साथ ही उन्होंने जैन समाज द्वारा बालक-बालिकाओं हेतु आयोजित की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों की भी प्रशंसा की एवं उन्हें नई पीढी हेतु अत्यन्त आवश्यक बताया। इसी प्रकार उन्होंने अपने छात्र जीवन की कुछ यादों को ताजा करते हुए दर्शनशास्त्र के विभिन्न पहलुओं के बारे में संक्षिप्त चर्चा करते हुए जैन धर्म के सूक्ष्म अवलोकन, प्रत्येक जीव के प्रति दया भावना, सहनशीलता इत्यादि के बारे में छात्र-छात्रओं को सम्बोधित किया।
मुनि श्री अतुल कुमार जी ने बालक बालिकाओं को मोटिवेट करते हुए कहा वैसे कहते हैं जितनी बड़ी सफलता, उतना बड़ा संघर्ष। आपके संघर्ष ही आपको अंदर से स्ट्रांग बनाते हैं। अगर आप अपनी लाइफ में कोई स्ट्रगल नहीं करते हो तो प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकते हो। तब आप अपनी जिंदगी में आगे नहीं बढ़ सकते हो। यह बात दिमाग में फिट कर लीजिए अगर आपने स्ट्रगल करना नहीं छोड़ा तो एक ना एक दिन आप सक्सेस जरूर पाओगे और वो कहते हैं ना कि बिस्तर पर सोए हुए रहने से और सिर्फ सोचते रहने से आपको सफलता नहीं मिल सकती। आपको बिस्तर से उठकर पसीना बहाने के लिए तैयार होना होगा, संघर्ष करना होगा। तभी सफलता संभव है, तभी आप अपनी जिंदगी में जो चाहे हासिल कर सकते हो। जो मुस्कुरा रहा है उसे दर्द ने पाला होगा, जो चल रहा है उसके पांव में छाला होगा। बिना संघर्ष के कोई चमक नहीं सकता, जो जलेगा उसी दीपक में उजाला होगा। संघर्ष ही जीवन है।
सूरज की तरह चमकना है तो सूरज की तरह तपना सीखो। संघर्ष ही तो जीवन की आत्मा है। जितना कठिन संघर्ष होगा उतनी शानदार जीत होगी। स्वर्ण में स्वर्णिम आभा तभी आती है जब वो आग में तपने ,गलने और हथौड़े से पिटने जैसे संघर्षों से गुजरता है। कोयले का टुकड़ा हीरा तभी बनता है जब वे उच्च ताप और उच्च ताप की मुश्किल परिस्थितियों से गुजरता है। इसी तरह हमारी जिंदगी में कोई संघर्ष ही ना हो ,चुनौतियां ही ना हो तो हम खोखले की रह जाएंगे। कार्यक्रम के अंत में संस्था के निदेशक शिवहरि शर्मा व प्रशासिका शीतल गुर्जर ने मुनिजन के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए तेरापंथ समाज से आए श्रावक समाज का स्कूल की तरफ से अभिनंदन एवं धन्यवाद ज्ञापित किया।