व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा, गुरुवार, 08 दिसंबर 2022
विशेष: नियम (घर) का छप्पन भोग, आज श्रीजी में नियम (घर) का छप्पनभोग है. बलदेवजी (दाऊजी) का उत्सव भी मनाया जाता है.
- छप्पन भोग परिश्रम का उद्यापन है. सामान्य भाषा में कहे तो सही दिशा में किये गए परिश्रम के फलस्वरुप छप्पन भोग की भांति छप्पर फाड़ सफलता प्राप्त होती है ऐसा इस उत्सव के माध्यम से श्रीजी की अद्भुत सेवा परम्परा का न केवल पुष्टि सृष्टि को बल्कि समस्त संसार को सन्देश है. चाहे यह व्रज की गोप-कन्याओं ने श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने की मनोकामना के लिए व्रत, पूजा, अर्चना का परिश्रम हो. या फिर वृषभानजी द्वारा नन्दकुमार श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का परिश्रम हो. या प्रभु द्वारा सात दिनों के अपनी अंगुली पर गोवर्धन को उठाने का परिश्रम हो. अथवा श्रीजी द्वारा अन्नकूट पर सभी स्वरूपों की आवभगत का परिश्रम हो. या श्री गोकुलनाथजी द्वारा बल्देवजी के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने का परिश्रम हो. सन्देश स्पष्ट है परिश्रम निष्फल नहीं हो सकता है, निश्चित ही छप्पन भोग जितना फल अवश्य प्रदान करता है. आप सभी को यह सन्देश देनेवाले छप्पन भोग उत्सव की बधाई.
- एक बार श्रीनाथजी ने श्री गुसाईंजी सु कीनी के बावा में तो भुको रह जात हु ये सातो आरोग जात है तब आप श्री ने गुप्त रूप सु बिना अन्य स्वरूपण कु जताऐ सातो स्वरूप के भाव की विविध सामग्री(या छप्पन भोग में अनेकानेक प्रकार की सामगी,सखड़ी और अनसखड़ी में आरोगे)सिद्ध कराय आरोगायी यादिन श्रीजी में नगाड़े गोवर्धन पूजा चोक में नीचे बजे याको तात्पर्य है कि नगार खाने में ऊपर बजे तो सब स्वरूपण को खबर पड़ जाय जासु नीचे बजे ये प्रमाण है और प्रभु आप अकेले पुरो छप्पन भोग आरोगे.
- नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोकुलनाथजी ने श्रीजी में मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को छप्पनभोग प्रतिवर्ष होवे प्रणालिका में ऐसा नियम बनाया.
- तब से श्रीजी प्रभु को प्रतिवर्ष नियम का छप्पनभोग अंगीकृत किया जाता है वहीँ श्री
- नियम (घर) के छप्पनभोग की सामग्रियां उत्सव से पंद्रह दिवस पूर्व अर्थात मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा से सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है.
- नियम (घर) के छप्पनभोग ही वास्तविक छप्पनभोग होता है क्योंकि अदकी का छप्पनभोग वास्तव में छप्पनभोग ना होकर एक बड़ा मनोरथ ही है जिसमें विविध प्रकार की सामग्रियां अधिक मात्रा में अरोगायी जाती है.
- नियम (घर) का छप्पनभोग गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगाया जाता है अतः इसके दर्शन प्रातः लगभग 11 बजे खुल जाते हैं.
- नियम (घर) का छप्पनभोग उत्सव विविधता प्रधान है अर्थात इसमें कई अद्भुत सामग्रियां ऐसी होती है जो कि वर्ष में केवल इसी दिन अरोगायी जाती हैं.
- श्रीजी का सेवाक्रम –
- श्रीजी में आज के दिन प्रातः 3.30 बजे शंखनाद होते हैं.
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से मांडी जाती हैं.
- आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- सभी समय यमुनाजल की झारीजी भरी जाती है.
- चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में होती है.
- गादी तकिया आदि पर सफेदी नहीं आती.
- तकिया पर मेघश्याम मखमल के व गदल रजाई पीले खीनखाब के आते हैं.
- गेंद, चौगान और दिवाला सोने के आते हैं.
- मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला एवं फुलेल से उबटन व अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- आज श्रीजी को नियम के तमामी जिसे सुनहरी ज़री भी कहते है उसके चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा के ऊपर रुपहली ज़री के गौकर्ण एवं सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा धराया जाता है.
- श्रृंगार व ग्वाल के दर्शन नहीं होते है.
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
- गोपीवल्लभ भोग में ही छप्पनभोग के सखड़ी भोग निजमंदिर व आधे मणिकोठा में धरे जाते हैं.
- अनसखड़ी भोग मणिकोठा, डोल-तिबारी व रतनचौक में साजे जाते हैं.
- धुप, दीप, शंखोदक होते हैं व तुलसी समर्पित की जाती है. भोग सरे उपरांत राजभोग धरे जाते हैं, नित्य का सेवाक्रम होता है और छप्पनभोग के दर्शन लगभग 11 बजे खुल जाते हैं.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं.
- राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख 25 बीड़ा की सिकोरी अदकी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.
- आज नियम का छप्पनभोग प्रभु अकेले ही अरोगते हैं अर्थात श्री नवनीतप्रियाजी अथवा कोई अन्य स्वरुप आज श्रीजी में आमंत्रित नहीं होते. यहाँ तक कि अन्य स्वरूपों को पता ना चले इस भाव से आज नक्कार खाने में नगाड़े भी नीचे गौवर्धन पूजा के चौक में बजाये जाते हैं.
- श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु डला (विविध प्रकार के 56 सामग्रियों का एक छाब) भेजा जाता है.
- भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज श्याम रंग की मखमल के ऊपर रुपहरी ज़री से गायों के भरतकाम वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल खीनख़ाब की बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज प्रभु को सुनहरी (तमामी) ज़री का सूथन, चाकदार वागा व चोली धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- पटका व मोजाजी रुपहली ज़री के धराये जाते है.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा में आज प्रभु को वनमाला का चरणारविन्द तक उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर हीरा का किलंगी वाला सिरपैंच, रुपहली ज़री के गौकर्ण, सुनहरी ज़री का त्रिखुना घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- उत्सव की हीरा की चोटीजी बायीं ओर धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी आदि सबकी माला धरायी जाती है.
- हीरा का प्राचीन जड़ाव का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (हीरा व पन्ना के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया आदि उत्सव वत धराये जाते है.
- पट उत्सव का व गोटी सोने की कूदती हुए बाघ बकरी की आती है.
- आरसी ग्वाल में चार झाड़ की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: सुनोरी आज नवल बधायो है
- अभ्यंग : महात्मय के 6 पद गाये जाते है
- आरसी दिखावे : सुभग श्रृंगार निरखी
- छप्पन आवे : श्रीवृषभान सदन भोजन को (असावरी),
- बैठी गोप कुंवर की पांत
- कहत प्यारी राधिका
- यशोदा एक बोल जो पाऊं
- छप्पन आते में : दस पदों का गान किया जाता है
- (ये सभी पद छडीदारजी की कोठरी के आगे होतें है)
- भोग आरोगें तब तक गोवर्धन पूजा चौक में नगारा बजें
- राजभोग: जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती
- आरती: हों चरणात पत्र कीं
- शयन: प्रकट ह्वे मारग रीत
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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