व्रज – पौष कृष्ण प्रतिपदा, शुक्रवार, 09 दिसंबर 2022
विशेष: आज पौष कृष्ण प्रतिपदा है और आज वर्तमान तिलकायत श्री राकेशजी महाराज के बड़े भाई नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री राजीवजी (श्रीदाऊबावा) का उत्सव है.
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरियों को हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज दिनभर सभी समय श्री गुसांईजी की बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.
- चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
- गद्दल रजाई बड़े बूटा के खिनखाब धराये जाते है.
- राजभोग में कांच के टुकड़ा का बंगला आता है.
- श्रीजी को नियम के लाल साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर किरीट मुकुट धराया जाता है.
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशर-युक्त चंद्रकला, दूधघर में सिद्ध केसर-युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में छःभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज श्रीजी में केसरी रंग की साटन की सुनहरी ज़री के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में एक ओर आरती करते श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री एवं दूसरी ओर हाथ जोड़ कर प्रभु के दर्शन करते श्री दाऊबावा का कलाबत्तू का चित्रांकन किया हुआ है. राजभोग में सूखे मेवों का बंगला आता है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल रंग की साटन का रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, चाकदार वागा, चोली व लाल मलमल का पटका धराये जाते हैं.
- टंकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते है.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं जिसके चारों ओर पुष्प-लताओं का चित्रांकन किया हुआ है.
- इस प्रकार के ठाड़े वस्त्र वर्षभर में केवल आज के दिन ही धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा में आज प्रभु को वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- तीन हार पाटन वाले विशेष धराये जाते हैं.
- त्रवल नहीं धराये जाते परन्तु टोडर धराया जाता है.
- आज श्रीकंठ में बघनखा भी धराया जाता है.
- श्रीमस्तक पर छिलमां हीरा का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
- पीठिका के ऊपर स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है.
- कली, कस्तूरी व नीलकमल की माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी तथा दो वेत्रजी (हीरा व स्वर्ण के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि उत्सववत धराये जाते है.
- आरसी श्रृंगार में लाल मख़मल की और राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.
- खेल के साज में पट व गोटी उत्सव की आती हैं.
- सायंकालीन सेवा में परिवर्तन:
- शीत से बचाव के लिए संध्या-आरती दर्शन के पश्चात भीतर की सोहनी कर सभी द्वार बंद कर दिए जाते हैं. डोल-तिबारी, मणिकोठा आदि विभिन्न स्थानों पर अंगीठी रखी जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: पौष कृष्ण नौमी जब आयी
- राजभोग: पौष निर्दोष सुख को
- आरती: जन्म लियो शुभ लग्न विचार
- शयन: सुभग सहेली सब मिल
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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