व्रज – पौष कृष्ण पंचमी, मंगलवार, 13 दिसंबर 2022
विशेष: आज श्री गुसांईजी के उत्सव की नौबत की बधाई बैठती है. उत्सव का आगम का श्रृंगार धराया जाता है. सभी बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का आगम का श्रृंगार धराया जाता है.
- सरल भाषा आगम शब्द का अर्थ उत्सव के आगमन के आभास से है या यूं कहा जा सकता है कि श्रीगुसांईजी के उत्सव के आगमन का आभास जागृत करने के लिए आगम का श्रृंगार धराया जाता है.
- आज के क्रम के वस्त्र, आभरण पौष कृष्ण नवमी के दिन भी धराये जायेंगे.
- जन्माष्टमी के उत्सव के चार श्रृंगार धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी एवं श्री गुसांईजी के उत्सव के तीन श्रृंगार (एक आगम का, दूसरा उत्सव के दिन एवं तीसरा उत्सव के अगले दिन का परचारगी श्रृंगार) ही धराये जाते हैं.
- इसका कारण यह है कि जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपतियों (स्वामिनीजी) के भाव से धराये जाते हैं परन्तु श्री महाप्रभुजी स्वयं स्वामिनीजी के एवं श्रीगुसांईजी श्रीचन्द्रावलीजी के स्वरुप हैं अतः आप स्वयं श्रृंगारकर्ता हों और स्वयं की ओर का श्रृंगार कैसे करें इस भाव से इन दोनों उत्सवों का एक-एक श्रृंगार कम हो जाता है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की जन्माष्टमी वाली, सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज सुन्दर केसरी ज़री का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं टकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. सभी वस्त्र बिना किनारी के होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- पटका केसरी फूल वाला धराया जाता हैं.
- गद्दल, रजाई केसरी खिनखाब के धराये जाते है.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा में श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी के भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में त्रवल, टोडर दोनों, कस्तूरी, कली आदि सब, एक हालरा व बघनखा धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- पीठिका के ऊपर जड़ाव स्वर्ण का उस्ताजी वाला चौखटा धराया जाता है.
- श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (हीरा व पन्ना के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया आदि उत्सव वत धराये जाते है.
- खेल के साज में पट काशी का, गोटी जड़ाऊ आती है.
- आरसी राजभोग में सोने की एवं श्रृंगार में पीले खंड की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: प्रेंख पर्यंक शयनं
- राजभोग: पौष निर्दोष सुख लक्षण
- आरती: श्री वल्लभ मधुराकृत मेरे
- शयन: सुभग सहेली सब मिल आओ
- मान: कह्तर सब रेन गयी
- पोढ़वे: रच रच सेज बनाई
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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