व्रज – पौष कृष्ण सप्तमी, गुरूवार, 15 दिसंबर 2022
विशेष: आज श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र गोविन्दरायजी के प्रथम पुत्र कल्याणरायजी का जन्मोत्सव है. आप श्री गुसांईजी के सबसे ज्येष्ठ पौत्र थे एवं उनके जीवित रहते ही आपका जन्म विक्रम संवत १६३५ में गोकुल में हुआ था.
- श्री गोविन्दरायजी आज के दिन श्रीजी का श्रृंगार कर रहे थे तब आपका जन्म हुआ. स्वयं श्रीजी ने बधाई मांगते हुए कहा – “गोविन्द घर भये कल्याण…बधाई दे.” इसी कारण आपके पुत्र का नाम कल्याणरायजी पड़ा.
- पिंडरू पड़ा इस लिए आपको सेवा तुरंत छोड़नी पड़ी. श्रीजी ने पुनः आज्ञा की – “मोंको पहले बधाई दे. श्रृंगार कर के चल्यो जाएगो.” तब आपने तुरंत हाथ में से अंगूठी निकल कर प्रभु को भेंट की.
- श्री कल्याणरायजी को पक्षियों से विशेष प्रेम था अतः आज श्रीजी में पिछवाई एवं वस्त्र आदि पक्षियों के भरतकाम वाले धराये जाते हैं एवं वैष्णव जगत में आपको ‘पंछी वाले कल्याणराय जी’ के नाम से भी जाना जाता है.
- आपकी बाल्यावस्था का एक प्रसंग है कि एक बार श्री महाप्रभुजी के भाई केशवपुरी जी गोकुल पधारे एवं श्री गुसांईजी को कहा – “आपके बालकों (पुत्रों अथवा पौत्रों) में से एक बालक मेरी गादी के उत्तराधिकार हेतु दत्तक रूप में देवें.”
- तब श्री गुसांईजी कुछ ना बोले परन्तु आपके सभी सात पुत्र एक दूसरे की ओर देखने लगे और अंत में सभी की दृष्टि श्री कल्याणरायजी की ओर गयी तब आपको आभास हुआ कि मैं इन सबसे छोटा हूँ तो संभवतया दादाजी श्री गुसांईजी मुझे केशवपुरीजी को दे देंगे अतः चिंतातुर आपने अपना भाव ढाढ़ी के एक पद द्वारा प्रदर्शित किया – “हों व्रज मांगनो जु, व्रज तज अनत न जाऊं.” अर्थात वे व्रज छोड़ के कहीं अन्यत्र नहीं जाना चाहते.
उस दिन गाया गया ढाढ़ी का पद आज श्रीजी में भोग-आरती के समय गाया जाता है. - श्री गुसांईजी ने आपको अभय प्रदान किया और इस प्रकार उनके कोई बालक केशवपुरीजी के साथ नहीं गये.
- कोई बालक केशवपुरीजी के साथ नहीं जाने से उन्होंने ग़ुस्से में आकर तीन श्राप दिये.
(१) तुम्हारे ऊपर हमेशा क़र्ज़ रहेगा
(२) परदेश में ज़्यादा रहना होगा
(३) बेटी को घर में रहना होगा
ये श्राप तीसरे लालजी श्रीबालकृष्णजी ने स्वीकार किये और इनका समाधान इस प्रकार निकाला की हमेशा देना रहेगा तो चित्त प्रभु की सेवा में रहेगा विविध प्रदेशों में घुमना रहेगा तो देवी जीवों का उद्धार होवेगा बेटीजी घर में रहेगी तो सेवा में मदद रहेगी. - आप उच्चकोटि के साहित्यकार एवं कवि थे एवं आपने नयी कल्पनाशीतलता से युक्त अनेक उत्कृष्ट पदों की रचना की जो कि नित्य नियम व विभिन्न उत्सवों में आज भी गाये जाते हैं.
- आपके पुत्र श्री हरिराय महाप्रभु हुए.
- आपके यहाँ द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी विराजित थे जिनकी सेवा, श्रृंगार, कीर्तन, भोग, साज आदि में आपने बहुत वृद्धि की.
- श्री गोवर्धनधरण प्रभु को भी आपने विविध मनोरथों के द्वारा खूब रिझाया.
- आज द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर (मंदिर) से श्रीजी व श्री नवनीत प्रियाजी के भोग हेतु घेरा (जलेबी) की सामग्री सिद्ध हो कर आती है.
- आज से पौष कृष्ण द्वादशी तक प्रतिदिन श्रीजी को मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. इसका विशिष्ट कारण यह है कि मयूर भी निष्काम वियोगी भक्त का स्वरुप है.
- श्री गुसांईजी को छः माह तक श्रीजी के विप्र-योग का अनुभव हुआ था अतः आपके उत्सव को बीच में रख कर छः दिवस तक प्रतिदिन मोरपंख की चन्द्रिका श्रीजी को धरायी जाती है.
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कुल्हे बड़ीं कर लाल कुल्हे धराये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज गहरे गुलाबी (रानी) रंग की, तोते, चिड़िया, मयूर आदि विभिन्न पक्षियों के भरतकाम से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें रुपहली ज़री की किनारी का हांशिया बना है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल खीनख़ाब की बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल रंग की साटन का रुपहली ज़री के पक्षियों के भरतकाम एवं किनारी से सुसज्जित सूथन, चाकदार वागा, चोली एवं मोजाजी धराये जाते हैं.
- खीनखाब के ठाड़े वस्त्र मेघश्याम छापा के धराये जाते हैं.
- पटका लाल मलमल का धराया जाता हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण की सेवा में आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरा एवं सोने के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर मीना के पक्षी की मीनाकारी वाली कुल्हे के ऊपर पान, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- मीना की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी आदि सबकी माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में मीना के पक्षी के वेणुजी (एक सोना का) एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया आदि उत्सव वत धराये जाते है.
- खेल के साज में पट लाल गोटी मीना के पक्षी की धरायी जाते हैं.
- आरसी श्रृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा आज दिन भर बधाई गाई जाती है जिनमे कल्याण नाम आता हो. तथा आप की बनाई ढाडी का पद “हो व्रज मागनो जू व्रज तज अनत न जाऊ।” आज श्रीजी में भोग-आरती के समय गाया जाता है. बधाई आदि भी गाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: मंगल रूप निधान सांवरो
- राजभोग: जे श्री वल्लभ राज कुंवर
- आरती: श्री वल्लभ मंगल रूप निधान
- शयन: आज धन्य भाग हमारे प्रगटे श्री विट्ठलनाथ
- मान: श्री वल्लभ नंदन रूप अनूप
- पोढ़वे: रंग महल सुखदाई पोढ़े
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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