व्रज – पौष कृष्ण दशमी, रविवार, 18 दिसम्बर 2022
विशेष : – आज श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है.
- विशेष : मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.
- आज सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं.
- श्रीजी में लगभग सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार होता है. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं. यदि वो उपस्थित हों तो वही श्रृंगारी होते हैं.
- आज राजभोग में सखड़ी में विशेष रूप से सूरण प्रकार अरोगाये जाते हैं.
- आज दो समय की आरती थाली में की जाती हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज:
- साज सेवा में श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की, सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- यही पिछवाई जन्माष्टमी के दिन भी आती है.
- आज भी सभी साज जडाऊ आते हैं, गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट नहीं आती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- स्त्र सेवा में श्रीजी को आज सुन्दर केसरी साटन के वस्त्र, बिना किनारी का अडतू का सूथन, चाकदार वागा, चोली एवं मोजाजी धराये जाते हैं.
- पटका केसरी किनारी के फूल का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण
- श्रृंगार आभरण सेवा में श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक दो जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा एवं पन्ना जड़ित स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
- श्रीकंठ में त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं.
- पीठिका के ऊपर प्राचीन जड़ाव स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है.
- कस्तूरी, कली आदि सब माला धरायी जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि उत्सववत धराये जाते है.
- खेल के साज में पट उत्सव का गोटी जडाऊ आती है.
- आरसी चार झाड़ की व सोने की डांडी की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला से श्रृंगार : मूल पुरुष
- राजभोग: दीजे हो ग्वालन
- आरती: श्री लक्ष्मण वर ब्रह्मधाम
- शयन: यह धन धर्म ही ते पायो
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
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जय श्री कृष्ण
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