व्रज – पौष कृष्ण नवमी, शनिवार, 17 दिसम्बर 2022
विशेष: आज समग्र पुष्टिमार्ग के लिए बहुत विशिष्ट दिन है. इस उत्सव को प्रत्येक वैष्णव को हर्षोल्लास के साथ श्रीजी को विशेष लाड लड़ाते हुए मनाना चाहिए. क्योंकि प्रभु श्रीनाथजी की राग, भोग व श्रृंगार आधारित अष्टयाम सेवा को अद्भुत प्राकृतिक भाव-भावना के अनुरूप नियमबद्ध करने वाले श्री विट्ठलनाथजी (श्री गुसांईजी) का आज प्राकट्योत्सव है. जिसे जलेबी उत्सव के रूप में भी जाना जाता है.
- आप सभी वैष्णवों को पुष्टिमार्ग के अति विराट व्यक्तित्व श्री विट्ठलनाथजी गुसांईजी के प्राकट्योत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई
श्रीजी का सेवाक्रम:
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीजों को पूजन कर हल्दी से मांडी जाती हैं. आज देहलीज बड़ी मांडी जाती है.
- आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं. वही भीतर सिलमा सितारों की वन्दनमाल भी बाँधी जाती है.
- आज मन्दिर के प्रत्येक द्वार के ऊपर रंगोली भी मांडी जाती है. हल्दी को गला कर द्वार के ऊपर लीपी जाती है एवं सूखने के पश्चात उसके ऊपर गुलाल, अबीर एवं कुंकुम आदि से कलात्मक रूप से कमल, पुष्प-लता, स्वास्तिक, चरण-चिन्ह आदि का चित्रांकन किया जाता है और अक्षत छांटते हैं.
- निजमन्दिर के सभी साज जडाऊ आते हैं.
- गादी व खंड आदि पर मखमल का साज आता है.
- गेंद, चौगान, दीवला आदि सभी सोने के आते हैं.
- सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.
- चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में की जाती है.
- दिनभर बधाई, पलना एवं ढाढ़ी के कीर्तन गाये जाते हैं.
- श्री गुसांईजी का यह उत्सव श्रीजी ने स्वयं आनंद से मनाया है एवं कुंभनदासजी व रामदासजी को आज्ञा कर जलेबी टूक की सामग्री मांग कर अरोगी है.
इसी कारण आज श्रीजी को मंगला भोग से शयन भोग तक प्रत्येक भोग में विशेष रूप से जलेबी टूक की सामग्री अरोगायी जाती है और आज के उत्सव को जलेबी उत्सव भी कहा जाता है. - श्रीजी को नियम से केवल जलेबी टूक ही अरोगाये जाते हैं अर्थात गोल जलेबी के घेरा की सामग्री कभी नहीं अरोगायी जाती.
- आज समग्र पुष्टि सृष्टि अपने सेव्य स्वरूपों को यथाशक्ति जलेबी की सामग्री सिद्धकर अरोगाती है.
- मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, उबटन एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- आज निज मन्दिर में विराजित श्री महाप्रभुजी के पादुकाजी का भी अभ्यंग व श्रृंगार किया जाता है.
- भारी श्रृंगार व बहुत अधिक मात्रा में जलेबी के भोग के कारण ही आज सेवाक्रम जल्दी प्रारंभ किया जाता है.
- श्रृंगार दर्शन में श्रीजी के मुख्य पंड्याजी प्रभु के सम्मुख वर्षफल पढ़ते हैं.
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केशरयुक्त पेठा, मीठी सेव व पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं.
- प्रभु को 25 पान के बीड़ा सिकोरी में अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग समय उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को केशरयुक्त जलेबी टूक, दूधघर में सिद्ध मावे के मेवायुक्त पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी का डबरा, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.
- इसी प्रकार श्रीजी के निज मंदिर में विराजित श्री महाप्रभुजी की गादी को भी एक थाल में यही सब सामग्रियां भोग रखी जाती हैं.
- राजभोग समय प्रभु को बड़ी आरसी (उस्ताजी वाली) दिखायी जाती है, तिलक किया जाता है, थाली में चून (आटे) का बड़ा दीपक बनाकर आरती की जाती है एवं राई-लोन-न्यौछावर किये जाते हैं.
- प्रतिदिन श्रीजी को राजभोग के अनोसर में तथा शयन के पश्चात अनोसर भोग में शाकघर में सिद्ध सौभाग्य सूंठ की सामग्री अरोगायी जाती है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की, सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई सजाई जाती है.
- यही पिछवाई जन्माष्टमी पर आती है.
- लाल मखमल के गादी, खंड आदि व जड़ाव के तकिया धरे जाते हैं (गादी एवं तकिया पर सफेद खोल नहीं चढ़ायी जाती).
- चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज सुन्दर केसरी साटन के वस्त्र जिसमे बिना किनारी का सूथन, चोली, अडतू किये चाकदार वागा एवं टंकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा में श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक तीन जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
- सर्व साज, वस्त्र, श्रृंगार आदि जन्माष्टमी की भांति ही होते हैं.
- श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा एवं पन्ना जड़ित स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं.
- दो हालरा व बघनखा भी धराये जाते हैं.
- हीरा की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है.
- पीठिका के ऊपर प्राचीन जड़ाव स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है.
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि मिलवा उत्सववत धराये जाते है.
- खेल के साज में पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ की आती हैं.
- आरसी जड़ाऊ एवं सोना की डाँडी की दिखाई जाती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- महात्मय : प्रातः समें श्रीवल्लभ सुत
- जगावे में : यह भयो पाछलो प्रहर
- मंगला : आज बड़ो दरबार देखो नन्द
- अभ्यंग में : जन्माष्टमी की बधाई गवे
- राजभोग : सुनोरी आज नवल बधायो है
टोडी की बधाई के चार पद गुसाईंजी के
आज बधाई को दिन निको
वल्लभ नंदन रूप अनूप - आरती : यह धन धर्म ही सो पायो
- शयन : सुभग सहेली मिली आवो
- पोढवे : तिहारो घर सुवस वसो
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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