व्रज – पौष शुक्ल द्वादशी, मंगलवार 03 जनवरी 2023
विशेष – मार्गशीर्ष एवं पौष मास में जिस प्रकार सखड़ी के चार मंगलभोग होते हैं उसी प्रकार पांच द्वादशियों को पांच चौकी (दो द्वादशी मार्गशीर्ष की, दो द्वादशी पौष की एवं माघ शुक्ल चतुर्थी सहित) श्रीजी को अरोगायी जाती है.
- इन पाँचों चौकी में श्रीजी को प्रत्येक द्वादशी के दिन मंगला समय क्रमशः तवापूड़ी, खीरवड़ा, खरमंडा, मांडा एवं गुड़कल अरोगायी जाती है. यह सामग्री प्रभु श्रीकृष्ण के ननिहाल से अर्थात यशोदाजी के पीहर से आती है.
- श्रीजी में इस भाव से चौकी की सामग्री श्री नवनीतप्रियाजी के घर से सिद्ध हो कर आती है, अनसखड़ी में अरोगायी जाती है परन्तु सखड़ी में वितरित की जाती है.
- इन सामग्रियों को चौकी की सामग्री इसलिए कहा जाता है क्योंकि श्री ठाकुरजी को यह सामग्री एक विशिष्ट लकड़ी की चौकी पर रख कर अरोगायी जाती है. उस चौकी का उपयोग श्रीजी में वर्ष में तब-तब किया जाता है जब-जब श्री ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य आमंत्रित किये जायें.
- इन चौकी के अलावा यह चौकी श्री ठाकुरजी के मुंडन के दिवस अर्थात अक्षय-तृतीया को भी धरी जाती है.
- देश के बड़े शहर प्राचीन परम्पराओं से दूर हो चले हैं पर आज भी हमारे देश के छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में ऐसी मान्यता है कि अगर बालक को पहले ऊपर के दांत आये तो उसके मामा पर भार होता है. इस हेतु बालक के ननिहाल से काले (श्याम) वस्त्र एवं खाद्य सामग्री बालक के लिए आती है.
- यहाँ चौकी की सामग्रियों का एक यह भाव भी है. बालक श्रीकृष्ण को भी पहले ऊपर के दांत आये थे. अतः यशोदाजी के पीहर से श्री ठाकुरजी के लिए विशिष्ट सामग्रियां विभिन्न दिवसों पर आयी थी.
- यह तो हुई भावना की बात, बालक श्रीकृष्ण तो पृथ्वी से अपने मामा कंस के अत्याचारों का भार कम करने को ही अवतरित हुए थे जो कि उन्होंने किया भी. ऊपर के दांत आना तो एक लौकिक संकेत था कि प्रभु पृथ्वी को अत्याचारियों से मुक्ति दिलाने आ चुके हैं.
- मांडा के साथ प्रभु को कांतिवड़ा (उड़द की दाल के चाशनी में भीगे वड़ा) व चुगली अरोगायी जाती है.
- श्रीजी प्रभु को नियम से मांडा वर्षभर में केवल आज, मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा (घर के छप्पनभोग) और माघ कृष्ण द्वादशी (श्री विट्ठलनाथजी के घर के) के दिन ही अरोगाये जाते हैं. आज गोपी वल्लभ में तवा पुड़ी अरोगाई जाती है.
- आज रजाई गद्दल श्याम खीनखाब के आते हैं.
- चतुर्थ चौकी के वस्त्र श्रृंगार निश्चित हैं. आज प्रभु को श्याम खीनखाब के चाकदार वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर जड़ाव के ग्वाल-पगा के ऊपर सादी मोर चंद्रिका का विशिष्ट श्रृंगार धराया जाता है.
- सामान्यतया श्रीमस्तक पर मोरपंख की सादी चंद्रिका धरें तब कर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं और छोटा (कमर तक) अथवा मध्य का (घुटनों तक) श्रृंगार धराया जाता है.
- आज के श्रृंगार की विशिष्टता यह है कि वर्ष में केवल आज मोर-चंद्रिका के साथ मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं और वनमाला का (चरणारविन्द तक) श्रृंगार धराया जाता है.
- आज श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में तवापूड़ी अरोगायी जाती है.
- श्रीजी में पांचवी और अंतिम चौकी आगामी बसंत पंचमी के एक दिन पूर्व अर्थात माघ शुक्ल चतुर्थी को गुड़कल की अरोगायी जाएगी.
श्रीजी दर्शन :- - साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की खीनखाब की बड़े बूटा की पिछवाई धरायी जाती है जो कि लाल रंग की खीनखाब की किनारी के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- वस्त्र – आज श्रीजी को श्याम रंग की खीनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा लाल रंग का पटका एवं टकमां हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, मोती तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर हीरा एवं माणक का जड़ाऊ ग्वाल पगा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- त्रवल नहीं धराया जाता हैं.हीरा की बघ्घी धरायी जाती हैं.
- एक कली की माला धरायी जाती हैं.
- सफेद एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में विट्ठलेशजी के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
- पट काशी का व गोटी कूदती हुई बाघ-बकरी की आती है.
- आरसी शृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोने की दिखाई जाती हैं.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : जागे हो रेन तुम सब
राजभोग : चढ़ गोवर्धन शिखर
आरती : सुन मुरली की टेर
शयन : डगर चल गोवर्धन की
मान : चढ़ बड बिडर गई
पोढवे : लागत है अत शीत की निकी
……………………..
जय श्री कृष्ण
………………………