व्रज – वैशाख शुक्ल पूर्णिमा, शुक्रवार, 05 मई 2023
विशेष :- आज से प्रभु को वस्त्र में परधनी धरायी जानी प्रारंभ हो जाती है और आज ऊष्णकाल का सबसे छोटा (हल्का) श्रृंगार धराया जाता है..
- इसमें विशेष यह है कि आज प्रथम दिन और परधनी धरने के अंतिम दिन अर्थात आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी को यही वस्त्र श्रृंगार धराये जाते हैं.
- आज और उस दिन अंतर केवल यही होगा कि अतिरिक्त में उस दिन प्रभु को तत्कालीन नवीन (वर्षा) ऋतु के आगमन पर व्रज के सभी द्वादश (बारह) वनों एवं चौबीस उपवनों में नवपल्लवित विभिन्न पुष्पों, पत्रों और वनौषधियों से निर्मित वनमाला अपने श्री अंग पर एवं इन्हीं पुष्पों-वनौषधियों से निर्मित गोवर्धन माला पीठिका के ऊपर धारण करते हैं.
- श्रीजी को आज से तीन दिन बाद से अर्थात आगामी ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया से कली के श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जायेंगे जो कि आगामी आषाढ़ शुक्ल एकादशी तक धराये जाते हैं. इसमें सामान्यतया प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं. इनमें कुछ श्रृंगार नियत हैं यद्यपि कुछ मनोरथी के द्वारा आयोजित होते हैं.
- इसके अतिरिक्त इसी दिन से खस के बंगला और मोगरे की कली और पुष्पों के बंगला के मनोरथ भी प्रारंभ हो जाते हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज श्वेत रंग की मलमल की बिना किनारी की पिछवाई सजाई जाती है.
- गादी, तकिया तथा चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है
- दो पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- चांदी के पडघा के ऊपर माटी के कुंजे में शीतल सुगन्धित जल भरा जाता है.
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल गोल छोर वाली बिना किनारी की परधनी धरायी जाती है.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मोती के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की छोर वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, श्वेत खंडेला (श्वेत मोरपंख के दोहरे कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं कटि पर दो एक मोती के वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ भी हरे मीना के धराये जाते हैं.
- खेल के साज में आज पट उष्णकाल का और गोटी छोटी हकीक की पधराये जाते है.
- आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : बल बल पाऊं धरिये जू
- राजभोग : सोहत लाल के परधानी झीनी
- आरती : आवरी बावरी उजरी वाग में
- शयन : सुन्दर जमुना तीर री
- पोढवे : दोऊ करत भावती बतियाँ
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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