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श्रीनाथजी में आज गंगा दसमी का उत्सव दर्शन, बधाई

Divyashankhnaad by Divyashankhnaad
30/05/2023
in नाथद्वारा, श्रीनाथजी दर्शन
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श्रीनाथजी में आज गंगा दसमी का उत्सव दर्शन, बधाई
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व्रज – ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, मंगलवार, 30 मई 2023

विशेष :- गंगादशमी, नि.ली.गो. तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज का गादी उत्सव

  • आज ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को ही गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था एवं सभी दस इन्द्रियों के ऊपर अधिपत्य प्राप्त कर उनकी प्रभु मिलन की आकांक्षा श्री यमुनाजी द्वारा पूर्ण हुई अतः आज के दिन को गंगा दशहरा भी कहा जाता है.
  • श्री यमुनाजी ने कृपा कर अपनी बहन गंगा का प्रभु के साथ शुभ मिलन कराया एवं जल-विहार के निमित गंगाजी ने भी प्रभु मिलन का आनंद लिया था. श्री यमुनाजी पृथ्वी के जीवों पर कृपा कर गंगाजी से मिले हैं. गंगाजी के स्नान एवं पान से भी जीवमात्र का उद्धार हो जाता है.
  • गंगाजी और श्री यमुनाजी के भाव से आज सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में जल भरा जाता है और प्रभु जल-विहार करते हैं. कुछ पुष्टिमार्गीय हवेलियों में आज के दिन नौका-विहार के मनोरथ भी होते हैं.
  • आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज श्री का गादी उत्सव भी है.

सेवाक्रम :–

  • गंगादशमी व गादी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
  • सभी समय झारीजी यमुनाजल से भरी जाती है. चार में से दो समय की आरती थाली में की जाती है.
  • दो उत्सव होने के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ भोग में दो नवीन प्रकार की सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.
  • आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
  • राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में दहीभात, सतुवा, केसरयुक्त पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है.
  • राजभोग समय गंगादशमी के उत्सव भोग रखे जाते हैं जिसमें केशर युक्त सुंवाली (गेहूं के आटा की कड़क खरखरी), खस्ता मठड़ी, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी, विविध प्रकार के संदाना एवं सूखे मेवे की बीज-चालनी आदि सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.
  • राजभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख चार बीड़ा सिकोरी (स्वर्ण के झालीदार पात्र) में रखे जाते हैं.
  • श्रीजी में राजभोग दर्शन पश्चात मणिकोठा और डोल-तिबारी में घुटनों तक जल भरा जाता है. जल में विविध शीतल इत्र भी पधराये जाते हैं.
  • चहुँ दिशाओं में कुंज के भाव से केले के स्तम्भ खड़े किये जाते हैं. प्रभु के सम्मुख रुई की बतखें रखी जाती है वहीँ लकड़ी के खिलौना (मगरमच्छ, कछुआ रुई की बतखें आदि) व एक छोटी नाव जल में तैराई जाती हैं. सुन्दर कमल और अन्य पुष्प भी जल में तैराये जाते हैं.
  • डोल-तिबारी में ध्रुव-बारी के नीचे की ओर चांदी का बड़ा सिंहासन और गंगाजी-यमुना जी के घाटों के भाव से चार सीढियाँ भी साजी जाती हैं.
  • पनघट और जल-विहार के पद गाये जाते हैं.
  • उत्थापन समय उत्सव भोग में प्रभु को उत्तमोत्तम आम की चांदी की डबरिया और शाककेरी (आम की छिलके बगैर की फांक) की डबरिया अरोगायी जाती है.
  • उत्थापन के दर्शन नहीं खोले जाते और भोग समय सर्व-सज्जा हटाकर डोल-तिबारी का जल छोड़ दिया जाता है.
  • वैष्णव जल में ही खड़े हो कर दर्शनों का आनंद लेते हैं. मणिकोठा का जल संध्या-आरती के पश्चात छोड़ा जाता है.
    पुष्टिमार्ग में प्रभु के सुख के लिए बहुत छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखा जाता है.
  • आज गंगादशमी के दिन राजभोग व संध्या-आरती में प्रभु की आरती मणिकोठा में खड़े होकर की जाती है. सामान्यतया प्रभु की आरती निज मंदिर में ही होती है. शीतकाल में आरती में जहाँ 16 तक बत्तियां होती हैं वहीँ ऋतु अनुसार उनमें परिवर्तन होकर इन दिनों प्रभु की आरती में केवल 4 बत्तियां ही होती है.
    – सायंकाल संध्या-आरती में श्री नवनीतप्रियाजी में गादी-उत्सव के निमित उत्सव भोग अरोगाये जाते हैं जिसमें आमरस की बूंदी के लड्डू, पतली पूड़ी-खीर, गुंजा-कचौरी, दहीवड़ा, चना-दाल, बूंदी का रायता, चालनी का सूखा मेवा, आमरस, बिलसारु (आम का मुरब्बा) आदि अरोगाये जाते हैं.

श्रीजी दर्शन:

  • साज
    • श्रीजी में आज चंदनिया (केसरी) रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम और रुपहली किनारी से सुशोभित पिछवाई सजाई जाती है.
    • गादी, तकिया तथा चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है
    • दो पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
    • चांदी के पडघा के ऊपर माटी के कुंजे में शीतल सुगन्धित जल भरा जाता है.
    • दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
    • सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
  • वस्त्र
    • वस्त्र सेवा में श्रीजी को केसरी मलमल का किनारी वाला पिछोड़ा धराया जाता है.
  • श्रृंगार
    • आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) छेडान का ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
    • कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण उत्सव के हीरा के धराये जाते हैं.
    • श्रीमस्तक पर केसरी मलमल की श्याम झाईं वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, रुपहली लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
    • श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल झुमका वाले धराये जाते हैं.
    • श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
    • इसी प्रकार श्वेत व गुलाबी पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
    • श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी धराये जाते हैं.
    • प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराये जाते हैं.
    • खेल के साज में आज पट उष्णकाल का और गोटी मोती की पधरायी जाती है.
    • आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
  • श्रीजी की राग सेवा:
  • मंगला : नमो देवी यमुने नमो
  • राजभोग : ऐरी जाको वेद रटत, ऐरी जाको नाम रटत
  • आरती : कृपा रस नैन कमल दल फूले
  • शयन : धीर समीरे यमुना तीरे
  • मान : उठ चल बेग राधिका प्यारी
  • पोढवे : नवल किशोर नवल नागरी
  • श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
  • नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.

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जय श्री कृष्ण
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