उदयपुर, 25 जून। भारतवर्ष में गत 1450 वर्ष से मेवाड़ का सूर्यवंशी राजपरिवार हिन्दू धर्म, संस्कृति और सभ्यता का ध्वजवाहक बना हुआ है। 6 जून 1921 को जन्मे महाराणा भगवत सिंह जी इस गौरवशाली परम्परा के 75वें प्रतिनिधि थे। महाराणा भगवत सिंह जी मेवाड़ की 100वीं जयन्ती पर महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन उदयपुर की और से पूजा-अर्चना सम्पन्न की गई।
महाराणा की शिक्षा राजकुमारों की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध मेयो काॅलेज में हुई थी। वे मेधावी छात्र, ओजस्वी वक्ता और शास्त्रीय संगीत के जानकार तो थे ही साथ ही विभिन्न खेलों और घुड़सवारी में सदा आगे रहते थे। राजस्थान टीम के सदस्य के रूप में उन्होंने अनेक क्रिकेट मैच खेले। उन्होंने उस समय की प्रतिष्ठित आई.सी.एस. की प्राथमिक परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् वे उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त के डेरा इस्माइल खां में गाइड रेजिमेंट में भी रहे।
महाराणा भूपाल सिंह जी के निधन के बाद सन् 1955 में वे गद्दी पर बैठे। उनकी रूचि धार्मिक व सामाजिक कार्यों में बहुत थी। उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति से 11 लाख रुपये देकर महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन ट्रस्ट की स्थापना की, इसके अलावा भी उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति से लाखों रुपये का अनुदान देकर विद्यादान ट्रस्ट, महाराणा मेवाड़ हिस्टोरिकल पब्लिकेशन्स ट्रस्ट, महाराणा कुम्भा संगीत कला ट्रस्ट आदि के साथ ही अन्य कई छोटे-बड़े ट्रस्टों की स्थापना की। आपने विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट उपलब्धि अर्जित करने वाले लोगों के लिए पुरस्कारों की स्थापना की, जिनमें हल्दीघाटी, हारित राशि, महाराणा मेवाड़़, महाराणा कुम्भा, महाराणा सज्जन सिंह, डागर घराना पुरस्कार व मेधावी छात्रों के लिये भामाशाह, महाराणा राजसिंह व महाराणा फतह सिंह पुरस्कार की स्थापना के साथ ही छात्रवृत्तियों का भी प्रबन्ध किया। देश की स्वतन्त्रता के साथ ही राजतंत्र समाप्त हो गया था फिर भी जनता के मन में उनके प्रति राजा जैसा ही सम्मान था।
अपनी सम्पदा को सामाजिक कार्यों में लगाने के साथ ही महाराणा भगवत सिंह जी ने स्वयं को भी देश, धर्म और समाज की सेवा में समर्पित कर दिया। सन् 1964 में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना के बाद में इससे जुड़ गये और सन् 1969 में सर्वसम्मति से परिषद के द्वितीय अध्यक्ष बनाये गये। अगले 15 वर्ष तक इस पर रहते हुए उन्होंने अपनी सारी शक्ति हिन्दू धर्म के उत्थान में लगा दी। उन्होंने न केवल देश में, अपितु विदेशों में भी प्रवास कर विश्व हिन्दू परिषद के काम को सुदृढ़ किया।
सन् 1971 में सरकार द्वारा प्रिवीपर्स समाप्त कर देने के पश्चात् दूरदर्शी महाराणा नें आय के स्रोत सृजित करने के लिये जगनीवास महल को लेक पैलेस होटल में परिवर्तित कर दिया, इसी तरह शिवनिवास महल को भी होटल का रूप दिया गया। महाराणा ने उदयपुर के राजमहलों का जो भाग पहले सरकार को हस्तांतरित कर दिया गया था उसे अपनी सूझबूझ से पुनः प्राप्त किया और महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन का गठन कर इन महलों को संग्रहालय का रूप दिया। महाराणा के इन कदमों से न केवल आय का सृजन हुआ अपितु उदयपुर विश्व पर्यटन के नक्शे पर प्रमुखता से उभरा जिसका लाभ उदयपुर के पर्यटन व्यवसाय को भी हुआ।
महाराणा भगवत सिंह जी ने संस्कृत के उत्थान, मठ-मंदिरों की सुव्यवस्था, हिन्दू पर्वों को समाजोत्सव के रूप में मनाने, हिन्दुओं के सभी मत, पंथ एवं सम्प्रदायों के आचार्यों को एक मंच पर लाने आदि के लिए अथक प्रयत्न किये। ऐसे यशस्वी महाराणा का 3 नवम्बर, 1984 को आकस्मिक निधन हो जाने से हिन्दू समाज की अपार क्षति हुई।
वर्तमान में कोरोना महामारी के चलते महाराणा की जयंती पर किसी प्रकार का अयोजन नहीं रखा गया।