भाद्रपद कृष्ण सप्तमी, रविवार 29 अगस्त 2021
पुष्टिमार्ग की प्रधानपीठ नाथद्वारा में पुष्टिमार्गीय सेवा प्रणालिका के अनुसार श्रीनाथजी के आज के राग, भोग व श्रृंगार सहित दर्शन इस प्रकार है.
आज की विशेषता :
- आज तीन समां की आरती थाली में की जाती है.
- आज सभी समय झारीजी में यमुनाजल आता है.
- आज ऊष्णकाल की सेवा का अंतिम दिन होने से गुलाबदानी एवं माटी का कुंजा अंतिम बार धरे जाएंगे.
- कल से गुलाबदानी, कुंजा, चन्दन की बरनी, अंकुरित मूंग, चने की दाल, मूंग की दाल, शीतल आदि (जो अक्षय तृतीया से प्रभु को प्रतिदिन संध्या-आरती में अरोगाये जा रहे थे) भोग में नहीं आयेंगे.
- आज श्रीजी में पिछवाई, पलंगपोश, सूजनी, खिलौने, चौपाट, आरसी आदि बदल के उत्सव का नया साज लिया जाता है.
- एक छाब में जन्माष्टमी के दिवस धराये जाने वाले नये वस्त्र, इत्र की शीशी, गुंजा माला, कुल्हे जोड़, श्रीफल, भेंट-न्यौछावर के सिक्के आदि तैयार कर के रखे जाते हैं.
प्रतिवर्ष जन्माष्टमी के दिवस केसरी वस्त्र, गुंजा की माला एवं कुल्हे जोड़ नयी धरने की रीत है. - जन्माष्टमी के दिवस पंचामृत के लिए दूध, दही, घी, शहद एवं बूरा आदि भी साज के रखना जाता है. कुंकुम, अक्षत और हल्दी आदि भी तैयार कर लिए जाते है.
- भोग में आज श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरिया घेवर अरोगाया जाता है.
श्रीजी की आज की साज सेवा के दर्शन : - साज सेवा के तहत श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. खण्डपाट सहित सभी साज भी पीले रंग के आते हैं.
- गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी हरी मखमल वाली आती है. आज तकिया के खोल जड़ाऊ स्वर्ण काम के आते हैं.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- चांदी के पडघा के ऊपर माटी के कुंजे में शीतल सुगन्धित जल भरा जाता है.
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- खेल के साज में पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.
श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्रों के दर्शन : - वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल रंग का डोरिया का रूपहरी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं.
श्रीजी को धराये जाने वाले श्रृंगार आभरण के दर्शन : - श्रीजी को आज छेड़ान का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्तसांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरे के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
- नीचे चार पान घाट की जुगावली एवं ऊपर मोतियों की माला धरायी जाती हैं.
- त्रवल नहीं धरावें परन्तु हीरा की बघ्घी धरायी जाती है.
- गुलाब के पुष्पों की एक मालाजी एवं दूसरी श्वेत पुष्पों की कमल के आकार की मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशजी वाले वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- आरसी श्रृंगार में लाल मख़मल की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : झगरन ते हो बहुत खिजाई
राजभोग : ब्रज भयो महर के पूत
ऐ री ऐ आज नन्दराय के
आरती : जन्म दिन लाल को
शयन भोग : आज छटी जसुमत के सुत
मंगल द्योस छटी
पोढवे : गृह आवत गोपीजन - श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
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जय श्री कृष्ण।
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छठी उत्सव
भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को श्रीजी में प्रभु की छठी का उत्सव मनाया जाता है.
प्रभु श्रीकृष्ण के प्राकट्य का उत्सव एक वर्ष तक चला और प्राकट्य के छठे दिन पूतना राक्षसी आयी (जिसका प्रभु ने उद्धार किया था).
इस आपाधापी में सभी व्रजवासी, यशोदाजी नंदबाबा, लाला कन्हैया की छठी पूजन का उत्सव भूल गयीं.
अगले वर्ष जब लाला का जन्मोत्सव मनाने का समय आया तब उनको याद आया कि लाला की छठ्ठी तो पूजी ही नहीं गयी. तब भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को जन्माष्टमी के एक दिन पहले श्री कृष्ण का छठ्ठी पूजन किया गया.
इसी कारण पुष्टिमार्ग के सेवा प्रकार में आज का दिवस छठ्ठी उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
श्रीजी के मंदिर में मणिकोठा के बायीं ओर के कक्ष छठ्ठीकोठा में छठ्ठी मांडी जाती है. यह इस प्रकार मांडी जाती है कि छठ्ठी का मुख पश्चिम की ओर हो अर्थात सामने खड़े रहकर पूजन करने वाले का मुख पूर्वाभिमुख रहे एवं पूजन करने वाले को श्री ठाकुरजी के दर्शन होते रहें.
पहले उस दीवार को गाय के गोबर से लीपा जाता है. गोबर से लीपने का भाव यह है कि गाय में सर्व देवों का निवास है और गाय का गोबर पवित्र माना जाता है अतः दीवार को पवित्र करने के भाव से उसे गोबर से लीपा जाता है. फिर हरे सुगन्धित पत्तों का रस निकाल कर उससे भी लीपा जाता है. वनबिहारी प्रभु वन में विहार करेंगे अतः वनस्पतियों की स्नेह रुपी आर्द्रता और श्री यमुनाजी के श्याम श्रीअंग के भाव से पत्तों के रस से दीवार को लीपा जाता है.
इसके अलावा हल्दी मिला चांवल का आटा, कुंकुम, एवं सफ़ेद खड़ी से छठ्ठी की सज्जा की जाती है.
छठ्ठी में निम्नलिखित बारह वस्तुएं अवश्य चित्रांकित की जाती है –
चंद्र, सूर्य, पटका (वस्त्र), स्वस्तिक, मथनी (मटकी), रवी, वंशी, पलना, खिलौना, पाट, कमल, तलवार एवं इस उपरांत चार आयुध के साथ कुल 16 वस्तुओं और पुष्प लताओं से छठ्ठी की सज्जा की जाती है. श्री हरिराय जी ने बारह शक्तियों को मान्यता दी है अतः षोडश शक्तियुता सृष्टि देवी का पूजन किया जाता है.
यह छठ्ठी गौस्वामी परिवार की सौभाग्यवती बहूजी, बेटीजी व भीतर के सेवकों के परिवार की महिलाऐं मांडती हैं.
नंदबाबा अपने लाला की रक्षा हेतु कुलदेवी की पूजा करवाते हैं इस भाव से छठ्ठी पूजन किया जाता है.
शयनभोग में छठ्ठी की सामग्रियां आरोगायी जाती है और छठ्ठी के पद गये जाते हैं.
शयन भोग में छठ्ठी के उत्सव भोग में फीकी खाजली (खस्ता पूड़ी), मीठी खाजली (खस्ता केसरी खाजा), पतली पूड़ी, छठ्ठी का दूध (पतली बासोंदी), मीठा-कोला (कद्दू) का शाक, कच्ची कैरी का बिल्सारु (मुरब्बा), सोंठ का चूरा (powder), निम्बू और नामक लगे सोंठ के टुकड़े आदि अरोगाये जाते हैं.
शयन (छठ्ठी पूजन)
कीर्तन-(राग : कन्हरो)
आज छठ्ठी जसुमति के सुतकी चलौ वधावन माई ।
भूषण वसन साज मंगल लै सकल सिंगार बनाई ।।१।।
भली भांत विधि करी बैस बड सुत पायौ नंदराई ।
पुन्य पुंज फूले व्रजवासी घर घर होत वधाई ।।२।।
पूरन काम भये निजजनके जियेगें यश गाई ।
परमानंद बात भई मनकी मुद मरजाद नसाई ।।३।।