श्रीनाथजी ने आज देव प्रबोधिनी उत्सव (देव-दीवाली), बधाई
व्रज – कार्तिक शुक्ल द्वादशी(प्रथम) सोमवार, 15 नवम्बर 2021
“देव दिवारी शुभ एकादशी” की खूब खूब बधाई
देव दिवारी शुभ एकादशी,
हरी प्रबोध कीजे हो आज।।
निंद्रा तजो उठो हो गोविंद,
सकल विश्र्व हित काज।।१।।
घर घर मंगल होत सबनके,
ठौर ठौर गावत ब्रिजनारी।।
“परमानंद दास” को ठाकुर,
भक्त हेत लीला अवतारी।।२।।
विशेष –
- देवशयनी एकादशी के चार माह पश्चात आज देव प्रबोधिनी एकादशी है.
- आज से शीतकालीन सेवा प्रारंभ होगी जिससे सेवाक्रम में कई परिवर्तन होते हैं.
- आज से बाघम्बर, मुकुट वस्त्र व झारीजी के ढकना नियम से आते हैं.
- शीत के कारण अब से प्रभु को पुष्प छड़ी व पुष्प के छोगा नहीं धराये जाते.
- आज से प्रतिदिन प्रभु को वस्त्रों के भीतर रुई के आत्मसुख का वागा धराये जाते हैं.
- आत्मसुख के वागा विजयदशमी से विगत कल तक (मलमल के) व आज देवप्रबोधिनी एकादशी से माह शुक्ल चतुर्थी तक (शीत वृद्धि के अनुसार रुई के) धराये जायेंगे.
- आज से ही प्रभु के श्रीचरणों में मोजाजी धराने प्रारंभ हो जाते हैं जो कि श्रीजी के पाटोत्सव के दिन तक धराये जायेंगे.
- इसी प्रकार राजभोग सरे पश्चात उत्थापन तक प्रभु सुखार्थ सम्मुख में निज मंदिर की धरती पर लाल रंग की रुईवाली पतली रजाई बिछाई जाती है. इसे ‘तेह’ कहा जाता है.
- एक अंगीठी (सिगड़ी) निज मंदिर में प्रभु के सम्मुख मंगला से राजभोग तक व उत्थापन से शयन तक रखी जाती है.
श्रीजी का सेवाक्रम :- - पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी की मेढ़ से लीपी जाती हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- गादीजी, खंड आदि मखमल के आते हैं. गेंद, दिवाला चौगान सभी सोने के आते हैं.
- चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में की जाती है.
- प्रभु की झारीजी सारे दिन यमुना जल से भरी जाती हैं.
- शीत प्रारंभ हो गयी है अतः आज से डोलोत्सव तक मंगला में श्रीजी को प्रतिदिन दूधघर में सिद्ध बादाम का सीरा (हलवा) का डबरा अरोगाया जाता है.
- आज से प्रभु को प्रतिदिन गुड का कटोरा भी अरोगाया जाता है.
- प्रभु को मंगला दर्शन पश्चात चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- उत्सव होने के कारण आज प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी और दूधघर में सिद्ध केशरयुक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता आरोगाया जाता है.
- सखड़ी में मीठी सेव व श्याम-खटाई अरोगायी जाती है.
श्रीजी दर्शन :- - साज सेवा में आज श्याम मखमल के आधार वस्त्र पर विद्रुम के पुष्पों के जाल के सुन्दर भारी ज़रदोशी काम वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी के ऊपर लाल रंग की, तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की ज़री के कामवाली एवं चरणचौकी के ऊपर हरे मखमल की बिछावट की जाती है.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज सुनहरी ज़री का सुनहरी ज़री की किनारी से ही सुसज्जित सूथन, चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं.
- पटका रुपहली ज़री का धराया जाता है.
- श्रीमस्तक पर कुल्हे व चरणारविन्द में लाल रंग के जड़ाऊ मोजाजी (गोकुलनाथजी के) धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का उत्सव वत भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- हीरा की प्रधानता के स्वर्ण आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की जडाऊ कुल्हे (गोकुलनाथजी के) के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) बायीं ओर धरायी जाती है.
- स्वर्ण का जड़ाव का चौखटा पीठिका पर धराया जाता है.
- श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, माणक व नीलम के हार, माला आदि धराये जाते हैं.
- कस्तूरी, कली की माला धरायी जाती है.
- श्वेत पुष्पों की लाल एवं हरे पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- खेल के साज में पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ की आती हैं.
- श्रीजी को उत्थापन समय फलफूल के साथ अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर तले हुए बीज-चालनी के सूखे मेवा अरोगाये जाते हैं.
- आज से डोलोत्सव तक प्रतिदिन संध्या-आरती समय श्रीजी को रतालू की नींबू, नमक व काली मिर्च युक्त चटनी व पिण्डखजूर (बीज निकाल कर उसके स्थान पर घी भरकर) की डबरिया अरोगायी जाती है.
सायंकालीन सेवा परिवर्तन
आरती दर्शन के उपरांत श्रृंगार बड़े किये जाते हैं. जडाव की कुल्हे व मोजाजी बड़े कर श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की कुल्हे व मोजाजी धराये जाते हैं. श्रीकंठ के श्रृंगार छेड़ान के (छोटे) धराये जाते हैं और श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते.
…………………… - श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : गोविन्द तिहारो सरूप निगम नेति नेति
मंडप में : देव दिवारी शुभ एकादशी
पंचामृत : जागे जग जीवन जग नायक
तुलसी पूजा : धन धन माता तुलसी बड़ी
राजभोग : छाक वीरी के अचवन के, अरी जाको वेद रटत ब्रहम्मा रटत
आरती : मोहन नन्द राज कुमार
शयन : बन्दो चरण सरोज तिहारे
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कीर्तन (राग : सारंग)
जाको वेद रटत ब्रह्मा रटत शम्भु रटत शेष रटत,
नारद शुक व्यास रटत पावत नहीं पाररी l
ध्रुवजन प्रह्लाद रटत कुंती के कुंवर रटत,
द्रुपद सुता रटत नाथ अनाथन प्रति पालरी ll 1 ll
गणिका गज गीध रटत गौतम की नार रटत,
राजन की रमणी रटत सुतन दे दे प्याररी l
‘नंददास’ श्रीगोपाल गिरिवरधर रूपजाल,
यशोदा को कुंवर प्यारी राधा उर हार री ll 2 ll
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जय श्री कृष्ण
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