व्रज – कार्तिक शुक्ल द्वादशी (द्वितीय), मंगलवार, 16 नवम्बर 2021
विशेष :- लालाजी का अन्नकूट, सेहरा का श्रृंगार
- शीत वृद्धि के कारण कल से शयन पश्चात प्रतिदिन गद्दल धराई जाती है आज से मंगला में प्रभु के मुखारविंद के ही दर्शन होते हैं.
- आज सायंकाल श्री नवनीतप्रियाजी के प्रसादी भंडार के समीप विराजित प्रभु श्री लालाजी का अन्नकूट मनोरथ होता है.
श्रीजी का सेवाक्रम :- - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को हल्दी की मेढ़ से मांडा जाता हैं.
- आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- गादीजी, खंड आदि मखमल के आते हैं. सभी जगह से सफेदी उतर जाती है.
- गेंद, दिवाला चौगान सभी सोने के आते हैं.
- चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में की जाती है.
- प्रभु की झारीजी सारे दिन यमुना जल से भरी जाती हैं.
सेवाक्रम :- - अक्षय नवमी की भांति आज भी श्रीजी की दिन भर की सेवा द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर की होती है अर्थात यदि द्वितीय पीठ के गौस्वामी परिवार के सदस्य नाथद्वारा में हों तो आज मंगला से शयन तक श्रीजी की सेवा वे ही करते है, अतः मंगला से शयन तक सभी समां में सेवा हेतु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में खबर भेजी जाती है एवं द्वितीय गृहाधीश श्री कल्याणरायजी व उनके परिवारजन सभी समां में श्रृंगार धरने प्रभु को भोग धरने व आरती करने पधारते हैं.
- आज प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं.
- वस्त्र के साथ जलेबी घेरा की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहाँ से आती हैं.
- आज श्रीजी में विवाह के भाव से मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की पिछवाई एवं संकेत वन में विवाह के भाव से विवाह का श्रृंगार एवं सेहरा धराये जाते हैं.
- आज के श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज ही श्रीजी को घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया जाता है. इसका कारण यह है कि कल के उत्सवनायक श्री गिरधरजी जिस दिन अपने सेव्य स्वरुप श्री मथुराधीश जी के मुखारविंद में सदेह प्रवेश कर नित्यलीला में पधारे उस दिन श्री मथुराधीशजी ने घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया था.
- आज उन्हीं श्री गिरधरजी का उत्सव का श्रृंगार होने से वही श्रृंगार श्रीजी को धराया जाता है.
- कल के उत्सव के भोगक्रम के रूप में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त जलेबी के टूक पाटिया और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाएगी.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में मीठी सेव स्यामखटाई अरोगाये जायेंगे. चालनी भी अरोगाई जाती है.
- आज शयन तक विवाह के ही कीर्तन गाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन :- - साज सेवा में आज लाल रंग के आधारवस्त्र पर मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की ज़री के ज़रदोशी के काम से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर हरे रंग की बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज सुनहरी लाल ज़री की चोली, घेरदार वागा एवं सूथन धराये जाते हैं. – केसरी मलमल का रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित राजशाही पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
-सुनहरी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. - श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरा की प्रधानता वाले माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सुनहरी लाल ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर हीरा का सेहरा, दो तुर्री, मोती की लूम एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- सेहरा पर हीरा की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है.
- श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, माणक और मोती के हार, दुलड़ा आदि उत्सववत धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- खेल के साज में पट व गोटी उत्सव के आते हैं.
- श्रीजी को आज आरसी चार झाड़ की दिखाई जाती हैं.
संध्याकालिन सेवा परिवर्तन - संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर टिका-सिरपेच एवं लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : भोर भावतो गिरिधर देखो
राजभोग : सेवक की सुख रास सदा/ दिन दुल्हे मेरो कुंवर कन्हैया
आरती : राधा प्यारी को दुल्हे लाल
शयन : आवत है गठ जोरे जुगल
पोढवे : रंगमहल सुखदाई - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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कीर्तन (राग : सारंग)
दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll - विवाह के पश्चात श्री ठाकुरजी सपरिवार वृषभानजी के घर भोजन को पधारते हैं इस भाव से राजभोग आवे तब आसावरी राग में यह कीर्तन गाया जाता है.
श्रीवृषभानसदन भोजन को नंदादिक मिलि आये हो l
तिनके चरनकमल धरिवे को पट पावड़े बिछाये हो ll 1 ll
रामकृष्ण दोऊ वीर बिराजत गौर श्याम दोऊ चंदा हो l
तिनके रूप कहत नहीं आवे मुनिजन के मनफंदा हो ll 2 ll
चंदन घसि मृगमद मिलाय के भोजन भवन लिपाये है l
विविध सुगंध कपूर आदि दे रचना चौक पुराये हो ll 3 ll
मंडप छायो कमल कोमल दल सीतल छांहु सुहाई हो l
आसपास परदा फूलनके माला जाल गुहाई हो ll 4 ll….अपूर्ण
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