व्रज – फाल्गुन कृष्ण एकादशी, रविवार, 27 फरवरी 2022
विशेष : आज से श्रीजी में मुकुट काछनी का श्रृंगार प्रारंभ हो रहे है. गोपाष्टमी के बाद आज ही श्रीजी में मुकुट धराया जा रहा है. प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.
अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.
जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.
आज की विशेषता यह है कि आज श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. वस्त्रों के साथ श्रीजी के भोग हेतु सामग्री की एक छाब भी वहां से आती है.
श्रीजी दर्शन :
साज : आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग के आधार-वस्त्र पर कमल के फूलों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. यह पिछवाई केवल श्रृंगार दर्शन में ही धरायी जाती है क्योंकि उसके बाद सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल अबीर से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. दो मे से एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
वस्त्र : श्रीजी को आज चंपाई (पीले) रंग का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं चोवा की श्याम रंग की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.
श्रृंगार आभरण : श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण लाल, हरे, मेघश्याम एवं सफ़ेद मीना तथा जड़ाव सोने के के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर मीना की मुकुट टोपी, मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में जड़ाव मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
दो माला अक्काजी की धरायी जाती है.
श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ मिलवा धराई जाती है.
श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
खेल के साज में पट चीड़ का व गोटी फागुन की आती है.
आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : चोंक परी गोरी होरी में
राजभोग : अष्टपदी, माधो चांचर खेल ही,
श्री मुख मंडे तब : अब मुख मांडो री गह पाए हो सोहन
आरती : हों केसेक पनघट जाऊ री
शयन : होरी दे ख्याल विच यह क्या कित्ता
पोढवे : चले हो भावते रस एन
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
श्रीजी के कपोल पर गुलाल अबीर से सुन्दर चित्रांकन किया जाता है. साथ ही आज राजभोग में श्रीजी की दाड़ी रंगी जाती है.
राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर पोटली से गुलाल अबीर उडाये जाते है.
सायंकालिन भोग दर्शनों के भोग में खेल के साज के भोग अरोगाये जाते है जिसमे सूखे मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
सायंकालीन सेवा में आरती पश्चात श्री कंठ के श्रृंगार बड़े कर लिए जाते है. दोनों काछनी एवं मुकुट टोपी भी बड़े कर लिए जाते है, चौव्वा का घेरदार एवं गोल पाग धराई जाती है. छेडान के श्रृंगार तथा लूम तुर्रा सुनहरी.
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जय श्री कृष्ण
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