व्रज – फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी, गुरुवार, 17 मार्च 2022
आप सभी को अमर्यादा के अंगीकार के उत्सव होली व डोल उत्सव की खूब खूब बधाई.
विशेष : तिथियों तथा ग्रहों के संयोग के कारण होली उत्सव का श्रृंगार आज धराया जायेगा व सेवाक्रम भी श्रीनाथजी में आज ही किया जाएगा. कल फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 18 मार्च 2022 को श्रीजी में डोलोत्सव मनाया जाएगा. हालाँकि श्रीजी होली का दहन भी 18 मार्च 2022 को प्रातःकाल 6 बजकर 41 मिनट सूर्योदय के पूर्व किया जायगा. जानकारी के अनुसार बादशाह की सवारी का क्रम धूलिवंदन के दिन किया जाएगा.
श्रीनाथजी में सेवाक्रम : आज होली का उत्सव है. उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीजों को पूजन कर हल्दी मांडा जाता हैं. आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. गद्दल, रजाई हरी साटन की आती है. आरती सभी समां में (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) थाली में की जाती है.
आज के पर्व को बड़ा मानते हुए श्री स्वामिनीजी आज स्वयं प्रभु को अभ्यंग कराती हैं इस भाव से आज प्रभु को मंगला पश्चात चन्दन, आवंला, उबटन एवं फुलेल से दोहरा अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है एवं श्वेत नूतन वस्त्र धराये जाते हैं.
आज प्रभु को नियम से पाग-चन्द्रिका, सूथन व घेरदार वागा धराये जाते हैं
फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी.
इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मीठे कटपूवा अरोगाये जाते हैं.
इसके अतिरिक्त आज उत्सव के कारण प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग खेल में पिछवाई को गुलाल से पूरा रंगा जाता है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है. चंदवा पर चंदन छांटा जाता है.
श्रीजी की दाढ़ी पर तीन बिंदी लगायी जाती है. प्रभु के सम्मुख चार पान के बीड़ा सिकोरी (स्वर्ण के जालीदार पात्र) में रखे जाते हैं.
आज गुलाल, अबीर का खेल अन्य दिनों की तुलना में अत्यन्त भारी होता है. वैष्णवजनों पर भी गुलाल पोटली भर कर उड़ाई जाती है.
श्रीजी दर्शन :
साज : आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई सजाई जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से भारी खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. श्रीजी के सन्मुख रखे जाने वाले दो पडघा में से एक पडघा पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं. गुलाल खेल इतना अधिक होता है कि पिछवाई और साज का मूल रंग दिखायी ही नहीं पड़ता.
वस्त्र : आज श्रीजी को सफ़ेद लट्ठा का सूथन, चोली तथा घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मोठड़ा का धराया जाता है जिसके दोनों छोर आगे की ओर रहते हैं.
सभी वस्त्रों पर गुलाल अबीर, एवं चोवा आदि से भारी खेल किया जाता है. ठाडे वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं जिनपर गुलाल, अबीर आदि से खेल किया जाता है.
श्रृंगार : आज प्रभु को मध्य का (छेड़ान से दो आंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण लाल, हरे, सफ़ेद व मेघश्याम मीना एवं जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सफ़ेद छज्जेदार श्याम झाईं वाली पाग के ऊपर हरा पट्टीदार सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
विशेष में श्रीकंठ में सात पदक, नौ माला धरायी जाती है. दो माला अक्काजी की धरायी जाती है. गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (स्वर्ण के बटदार व एक नाहरमुखी) धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर भी गुलाब के पुष्पों की एक मोटी मालाजी धरायी जाती है. प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत मिलवा धराई जाती है. खेल के साज में पट चीड़ का व गोटी चांदी की आती है. आरसी दोनों समय बड़ी डांडी की आती है. भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है.
संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं. गठेली की हमेल धरायी जाती है.
विशेष : श्रीजी की एक अद्भुत परंपरा में होली के उत्सव के दिन शयन के दर्शन में परम्परागत रूप से श्री गोवर्धनधरण की दाढ़ी रंगी जाती है. अर्थात प्रेम से प्रभु की दाढ़ी पर गुलाल लगाकर डोलोत्सव की परंपरागत शुरुआत की जाती है.
आज के दिन शयन में भी गुलाल खेल होता है और खूब गुलाल उड़ायी जाती है. आज शयन दर्शन में प्रभु को एक वेत्र श्रीहस्त में धरायी जाती है.
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : हो हो होरी खेलन जैये
अभ्यंग : खेलिए सुन्दर लाल होरी
राजभोग : मदन गुपाल झुलत डोल, अद्भुत डोल बनी
हरी को डोल देख ब्रजवासी फूले
आरती : कछु दिन नियरे ही रहो हरि होरी है
शयन : ढोटा दोऊ राय के खेलत डोलत,
गुलाल उड़े कोऊ भलो बुरो न माने
पोढवे : गोकुल सकल गुवालिनी सब मिल
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
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होलिका दहन क्रम :
होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा, 18 मार्च 2022 को शुभ मुहुर्तानुसार होलिका दहन प्रातःकाल 6.41 बजे के पूर्व सूर्योदय से पहले होगा.
श्रीजी के मुख्य पंड्याजी, खर्च-भंडारीजी, घी-घरियाजी, मशाल-वाला, श्रीनाथ गार्ड्स, श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के किर्तनियाजी आदि कीर्तन गाते हुए श्रीजी मंदिर से होली-मगरा जाकर मंत्रोच्चार और कीर्तन की मधुर ध्वनि के बीच पूजन कर व भोग धरकर प्रदीपन करेंगे.
नाथद्वारा में सर्वप्रथम सबसे बड़ी श्रीजी की होली का दहन किया जाता है. तदुपरांत नाथद्वारा नगर की के विभिन्न स्थानों पर होली का दहन किया जाता है. प्राचीन परम्परानुसार नाथद्वारा नगर में जितने स्थानों पर होलिका दहन हो, सभी स्थानों के लिये होली डंडा (बांस) श्रीजी के खर्च भण्डार से ही वितरित किये जाते हैं.
सभी वैष्णवों को होली के त्यौहार की ख़ूबख़ूब बधाईयाँ.
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