नाथद्वारा (दिव्य शंखनाद)। द्वितीय पीठ प्रभु श्री विट्ठलनाथजी तेरस बुधवार के दिन अपने निजी बगीचे में पधारे। तेरस के दिन विशेष रूप से प्रभु श्री विट्ठलनाथजी को तीन तरह के मुकुट धराये जाते हैं, श्रृंगार के दर्शन में मीना का मुकुट राजभोग के दर्शन में फूल का मुकुट एवं सायंकाल आरती में फूलों का मुकुट धराया जाता है।
श्रृंगार में बड़ी कॉचनी केसर की छोटी पतंगी सुनहरी किनार की बड़ों पटका केसरी झालर का श्री मस्तक पर मीना का मुकुट कुंडल किलंगी चोटी सोना की। श्री स्वामिनी जी को केसरी झालर की साड़ी चौआ की चादर आवरण जोड़ी सोने की मीना की मिलमा राजभोग में फूल का मुकुट।
प्रभु को बगीचा में पधारा कर नो चोकिया पर बंगली में विराजमान किए जाते हैं तेरस के दिन विशेष रूप से पॉच प्रकार की गुलाल का उपयोग किया जाता है गुलाल की पोटली भर कर भक्तों को सराबोर किया जाता है।
द्वितीय पीठाधीश्वर श्री कल्याण राय जी महाराज श्री ने सपरिवार प्रभु को विशेष रुप से लाड लड़ाए एवं थाली की आरती उतारी राई लोन न्योछावर होकर प्रभु पुनः निज मंदिर में पधारे। यहां भी विशेष रुप से होली के उत्सव की नियम अनुसार आरती की गई यहां भी भारी मात्रा में गुलाल अबीर उड़ाई गई श्री हरि राय बाबा साहब ने आरती उतारी तेरस के दिन विशेष रूप से श्रीनाथजी मंदिर से रसिया गांन वाले सभी जन वहां से रसिया गाते हुए श्री विट्ठलनाथजी मंदिर में आते हैं। इस अवसर का भी वैष्णव को बहुत आनंद प्राप्त हुआ।