व्रज : चैत्र कृष्ण प्रतिपदा, शनिवार, 19 मार्च 2022
विशेष : व्रज से पधारने के पश्चात फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (पाटोत्सव) को प्रभु वर्तमान मंदिर के सिद्ध होने तक मंदिर के बाहर खर्च-भण्डार में विराजे थे. तत्पश्चात आज के दिन वर्तमान पाट पर विराजित हुए थे अतः आज के दिन को द्वितीया पाट कहा जाता है.
इस उत्सव का एक और भाव है कि वसंत-पंचमी से डोलोत्सव तक व्रजभक्त प्रभु के साथ परस्पर सख्यभाव से होली खेलते हैं. व्रजराजकुमार प्रभु को प्रभु ना मानते हुए अपने समान मान उनके साथ झकझोरी करते हैं, फगवा मांगते हैं, ओढ़नियाँ ओढाकर और विविध स्त्री वेश पहनाकर अपने साथ नचाते हैं.
उन दिनों में ईश्वर भाव नही रहता अतः नंदरायजी आज के दिन प्रभु को पुनः पाट पर बिठाकर पूर्ववत नंदकुमार-व्रजराजकुमार के रूप में स्थापित करते हैं, इस भाव से आज का यह उत्सव मनाया जाता है.
आज का उत्सव चन्द्रावलीजी की ओर का उत्सव है अतः उनकी ओर से राजभोग में चैत्री-गुलाब की फूल मंडली का मनोरथ होता है. आज से 10 दिन कुंजलीला यमुनाजी के भाव के, 10 निकुंजलीला ललिताजी के भाव के, 10 दिन निबिड़ निकुंजलीला चन्द्रावलीजी के भाव के एवं अंतिम 10 दिन निभृत निकुंजलीला के स्वामिनीजी के भाव के होते हैं.
इन चालीस दिनों की निकुंजलीला के पश्चात श्री वल्लभाधीश जी का प्राकट्य होता है. निकुंजलीला के सुन्दर पद इस दिनों में गाये जाते हैं.
सेवाक्रम : शीतकाल की सेवा पूर्ण हो चुकी है अतः आज से सेवाक्रम में काफी परिवर्तन आ जायेगा. प्रभु के सम्मुख धरी जाने वाली अंगीठी आज से नहीं रखी जाएगी.
गन्ने का रस, रतालू की चटनी, घी भरी पिण्ड-खजूर, फलों में गन्ना, सूरण, अरबी और रतालू की सब्जी (सखड़ी व अनसखड़ी), सभी प्रकार (गेहूं, मूँग-दाल, चना-दाल, बादाम, शकरकंद आदि) के सीरा आदि शीतकाल की सामग्रियां आज से नहीं अरोगायी जायेंगी.
सिंहासन एवं पंखा धरे जाते हैं. आज से अक्षय-तृतीया तक चांदी का कुंजा धराया जाता है (तत्पश्चात माटी का कुंजा प्रारंभ हो जायेगा). होली खेल के चालीस दिनों तक ज़री के वस्त्र, साज, हीरा, पन्ना, माणक, मोती एवं जड़ाव स्वर्ण के आभरण आदि नहीं धराये जाते जो कि आज से पुनः प्रारंभ हो जायेंगे. आज से रंगीन साज (गादी-तकिया) प्रारंभ हो जायेंगे जो कि रामनवमी तक चलेंगे. आज से गोपाष्टमी तक राजभोग धरे तब छाक के पद गाये जाते हैं.
श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आरती सभी समां में (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) थाली में की जाती है.
मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. आज विशेष रूप से प्रभु को दोहरा अभ्यंग कराया जाता है.
ग्वाल तक पिछवाई दर्शन होते है. तत्पश्चात चैत्री गुलाब की तिवारी, गुमट, छज्जा वाली मण्डली धरायी जाती है. सन्मुख में पाट आता है. जब जब भी चैत्री गुलाब की मण्डली आती है तब तब पाट भी आता है. चौकी, झारी, गेंदुवा आदि सभी पाट पर आवे.
आज प्रभु को नियम के सुनहरी ज़री के चाकदार वस्त्र और श्रीमस्तक पर हीरा की कुल्हे पर सुनहरी घेरा धराये जाते हैं. आज से 30 दिनों तक तारु के वस्त्र धराये जाते है.
उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चाशनी लगे पक्के गुंजा अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
श्रीजी दर्शन :
साज : आज श्रीजी में फूलक शाही ज़री की हरे हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर से सफेदी बड़ी कर (हटा) दी जाती है. गेंद, चौगान, दिवाला सभी सोने के आते है. तकिया लाल काम के पधराये जाते है. सभ जगह मखमल का साज आजाता है. जडाऊ स्वर्ण के एक पडघा पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. बीड़ा अलग से पधराये जाते है.
वस्त्र : आज श्रीजी को सुनहरी ज़री के बिना किनारी के सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका रूपहरी ज़री का धराया जाता हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. आज से प्रभु को दत्तु खोल धराया जाता है.
श्रृंगार : आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा की प्रधानता के मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की कुल्हे के ऊपर सुनहरी जड़ाव का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटीजी धरायी जाती है.
नीचे सात पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व माला धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि माला धरायी जाती हैं.
चैत्री गुलाब के पुष्प की सुन्दर थागवाली वनमाला धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ की आती है.
आरसी चार झाड़ की दिखाई जाती है.
संध्या आरती पश्चात आभरण बड़े कर दिए जाते है. छेडान के श्रृंगार धराये जाते है. हीरा की कुल्हे बड़े करके ला कुल्हे धराये जाते है.
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : प्यारी के महल ते उठ चले
राजभोग : आज की बानकी बल बल,
फूलन की चौखंडी बैठे लाल
आरती : राखी हो अलख बीच
शयन : कनक कुसुम अति श्रवण सोहे
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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