वर्तमान में देश के सबसे पुराने जीवंत सुरक्षा दस्ते में से एक है “श्री नाथ गार्ड”
नाथद्वारा (दिव्य शंखनाद)। सन 1672 में प्रभु श्री गोवर्धन धरण श्रीनाथजी के मेवाड़ धरा पर पधारने के पश्चात प्रभु की सुरक्षा की जिम्मेदारी महाराणा राज सिंह जी द्वारा देलवाड़ा रियासत के सामंत झाला जेत सिंह जी व कोठारिया के ठाकुर रुक्मांगद जी को सौंपी गई।
यवन सेना के आक्रमण की संभावना को देखते हुए प्रभु की सेवा में एक रेजीमेंट जो कि अश्वारोही, गजारोही, सशस्त्र पैदल सैनिक, सुखपाल, गोपाल निशान, बैंड पलटन एवं तोपों से सुसज्जित एक पलटन ऐसे एक रिसाला का निर्माण किया गया।
इस रेजीमेंट के संचालन का संपूर्ण दायित्व देलवाड़ा व कोठारिया के रियासतों के नेतृत्व में था वहीं इस रेजीमेंट पर होने वाले व्यय का भार आरंभ में उदयपुर दरबार द्वारा वहन किया जाता था। किंतु इस संपूर्ण सेना के सर्वोच्च प्रशासक के अधिकार तत्कालीन नि.लि.गो.ति. श्री दामोदर लाल जी को प्राप्त थे। जिनके द्वारा सर्वप्रथम नाथद्वारा शहर की नींव रखी गई। नि.लि.गो. ति. श्री दामोदर जी द्वारा बसाए गए इस सुंदर नाथद्वारा पर सर्वप्रथम पिंडारीयों की वक्र दृष्टि पड़ी व उनके द्वारा पहली बार नाथद्वारा में लूटपाट की गई।
पिंडारीयों के पश्चात दौलतराव सिंधिया ने नाथद्वारा मंदिर व शहर पर आक्रमण किए तात्कालिक विषम परिस्थितियों को देखते हुए तत्कालीन मेवाड़ महाराणा भीम सिंह जी द्वारा तत्कालीन नि.लि. गो.ति. श्री गिरधर जी महाराज श्री को प्रभु श्रीनाथजी, नवनीत प्रिया जी को उदयपुर पधारने की विनती की। महाराणा मेवाड़ द्वारा प्रभु के रक्षण हेतु कई ठिकानों के सामंतों को सेना सहित भेजा गया। प्रभु श्रीनाथजी के सुरक्षित निकासी व नाथद्वारा नगर की रक्षा में कोठारिया के रावत विजय सिंह जी शत्रु से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
सन 1802 में प्रभु का उदयपुर में प्रवास रहा व सन 1803 से 1808 तक प्रभु घसियार में विराजे सन 1808 में प्रभु पुनः अपनी प्रिय धरा नाथद्वारा पधारे। सिंधिया के आक्रमण से सबक लेते हुए प्रभु श्रीनाथजी की सुरक्षा हेतु महाराणा द्वारा और अधिक सशक्त बड़ी सेना प्रभु के संग भिजवाई गई जिसे बजरंग पलटन के नाम से जाना जाता था।
वर्तमान समय में प्रभु सेवा में समर्पित श्रीनाथ गार्ड्स रेजीमेंट इसी जड़ से उगे वृक्ष के फल स्वरुप है। बजरंग पलटन के समकक्ष एक और पलटन प्रभु सेवा में संलग्न थी, जो गोविंद पलटन के नाम से जानी जाती थी। नाथद्वारा नगर के बढ़ते विकास में इन दोनों पलटनों का योगदान अतुलनीय था।
जहां श्रीजी मंदिर के रक्षण के अतिरिक्त इनके द्वारा नगर में अपराधों की रोकथाम व प्राकृतिक आपदाओं के समय में नगर वासियों की सहायता कर सामाजिक सरोकार व सेवा का परिचय समय-समय पर दिया गया।
जहां श्रीजी मंदिर के रक्षण के अतिरिक्त इनके द्वारा नगर में अपराधों की रोकथाम व प्राकृतिक आपदाओं के समय में नगर वासियों की सहायता कर सामाजिक सरोकार व सेवा का परिचय समय-समय पर दिया गया।
- रेलवे स्टेशन नाथद्वारा से यात्रियों हेतु आश्वारोही रिसाला गार्ड द्वारा रात्रि गश्त एवं यात्रियों की सुरक्षा
- संपूर्ण नाथद्वारा नगर के मुख्य द्वारों पर गोविंद पलटन की पहरेदारी एवं सुरक्षा
- मंदिर दर्शन व्यवस्था एवं सुरक्षा व्यवस्था के साथ नगर में सामाजिक एवं मांगलिक कार्यों में भाग लेना
- श्रीजी प्रभु की भारत भर में स्तिथ श्री सम्पदा की सुरक्षा करना भी इनका मुख्य दायित्व है
- नाथद्वारा के श्रीजी प्रभु के प्रमुख उत्सव एवं त्योहारों पर विशेष रूप से गणगौर की सवारी, प्रमुख तिलकायतों के जन्मोत्सव के अवसर पर, जन्माष्टमी आदि त्योहारों पर शोभायात्रा में संपूर्ण सुरक्षा दस्ते द्वारा गोपाल निशान को धारण कर मार्च पास्ट कर उस में भाग लेना
- देश के गणमान्य व्यक्तियों जिन में सर्वप्रथम गोस्वामी तिलकायत एवं उनके परिवार के सदस्यों के पधारने के अवसर पर “गार्ड ऑफ ऑनर” देना इनके अलावा राष्ट्रपति प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री व देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों को नाथद्वारा आने पर श्रीनाथ गार्ड द्वारा उन्हें “गार्ड ऑफ ऑनर” दिया जाता है इसके अलावा राष्ट्रीय पर्व पर भी इस पलटन का मार्च पास्ट एवं बैंड पलटन का विशेष योगदान है
- इस पलटन का तोपची दस्ता विशेष रूप से प्रसिद्ध है जो आज भी जन्माष्टमी के अवसर पर श्रीजी प्रभु को 21तोपों की सलामी देता है ये परम्परा श्री नाथ जी मंदिर के अलावा और कंही नहीं है श्रीजी सेवा में समर्पित इस रेजीमेंट के प्रशासनिक व्यवस्था के संचालन हेतु प्रशासनिक वरीयता पद नाम एवं रैंक बिल्कुल वैसी ही है जैसे भारतीय सैन्य रेजीमेंट्स में होती है जिसमें सर्वोच्च पद पर.. कमांडिंग ऑफिसर – सूबेदार – जमादार- हवलदार – नायक – लांस नायक- बुगलर- सिपाही
सेना के रूप में इस कंपनी में प्लाटून के रूप में बजरंग पलटन, गोविंद पलटन, रावतान बेड़ा, रिसाला आदि उपस्थित थी जो आजादी के पश्चात सन 1959 में श्रीनाथजी मंदिर मंडल के गठन के पश्चात ‘श्रीनाथ गार्ड’ के नाम से पहचानी गई।
इस रेजीमेंट की संरचना कुछ इस प्रकार है- रेजीमेंट एक कंपनी के रूप में चार प्लाटून में गठित है जिसमें एक प्लाटून में 4 सेक्शन व हर सेक्शन में 37 जवानों की नियुक्ति इस प्रकार प्रत्येक प्लाटून में 151 जवानों की संख्या निर्धारित की गई। नाथद्वारा मंदिर में अपनी मधुर धुन से सभी को मोहित करने वाला श्रीनाथ बैंड इसी रेजीमेंट का हिस्सा है जो रियासत कालीन समय से अपनी सेवाएं दे रहा है। यह सुरक्षा दस्ता सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही प्रसिद्ध नहीं था, बल्कि भारत भर में भी प्रसिद्ध था।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार इसकी प्रसिद्धि वह पहचान देश में किस रूप में थी उसका एक घटना के माध्यम से उल्लेख कर अत्यंत हर्ष हो रहा है कि इसकी प्रसिद्धि उस समय देश की केंद्रीय सरकार को भी हमारे इस पलटन की जानकारी थी।
यह घटना 1962 के भारत-चीन युद्ध की है जब 1962 में भारत -चीन का युद्ध शुरू हुआ तो सैन्य शक्ति की दृष्टि से सभी रेजीमेंट्स एवं जितनी भी देश की आंतरिक सुरक्षा से संबंधित सभी सुरक्षा दस्तों एवं फोर्सेज थी सभी को हाई अलर्ट पर रखा गया था।
उस समय श्रीनाथ गार्ड की बजरंग पलटन एवं गोविंद पलटन की प्रसिद्धि के कारण भारत सरकार द्वारा हमारी पलटन का संपूर्ण विवरण मांगा था व अपनी सेवाएं देने का आग्रह भी किया था। लेकिन युद्ध की समाप्ति व बदलती परिस्थितियों के कारण सेवा का अवसर नहीं आया। आज भी श्रीनाथ गार्ड द्वारा पूर्ण रूप से श्रीजी सेवा की मर्यादा, आचार विचार, निष्ठा, वफादारी से अपने कर्तव्य का पालन किया जा रहा है जो इसकी अपनी एक विशेषता है।
पुष्टिमार्गीय सिद्धांतों जिसमें किसी भी व्यक्ति के साथ किसी भी जाति समुदाय व संप्रदाय के आधार पर कभी भी श्रीजी सेवा में कोई भी भेद नहीं किया जाता उसी सिद्धांत के आधार पर ही इस सुरक्षा दस्ते का गठन किया गया।
इसमें अपनी सेवाएं प्रदान करने वाले हर जाति संप्रदाय के जवान आज भी अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। वर्तमान में श्रीनाथ गार्ड के रूप में गठित सुरक्षा दस्ते के भारत की स्वतंत्रता के पूर्व से वर्तमान तक इस सुरक्षा दस्ते के प्रमुख कमांडिंग ऑफिसर के नामों की सूची जिनमें प्रमुख रूप से — श्री फतेह नाथ चौहान, श्री भैरू लाल पालीवाल, श्री रतन गिरी गोस्वामी, श्री हेम सिंह मो जावत, श्री भंवर सिंह चुंडावत, श्री रतन सिंह चदा णा, देवी सिंह मादरेचा, श्री शिव सिंह बल्ला, श्री नंदलाल वारी, श्री राम सिंह चुंडावत, श्री फतेह सिंह गहलोत एवं श्री नरोत्तम गिरी गोस्वामी प्रमुख है।
वर्तमान समय में श्रीनाथ गार्ड के सैन्य कर्मियों का सेवाकाल पूर्ण होने से एवं उनके रिटायरमेंट के कारण इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। जिससे कि मंदिर सेवा एवं सुरक्षा में एवं इनके द्वारा की जा रही सेवा जो मर्यादा परंपरा निष्ठा के समर्पण भाव से सैकड़ों वर्षो से कर्तव्य निष्ठा के साथ श्रीजी सेवा में समर्पित रही है।
इनकी लगातार कमी से इनका महत्व और भी बढ़ जाता। गो.ति.108 श्री इंद्रदमन जी महाराज श्री एवं गो.चि.105 श्री विशाल बाबा श्री की हार्दिक इच्छा है कि ऐसे श्रीजी सेवा में समर्पित मर्यादा परंपरा एवं कर्तव्यनिष्ठ जो श्रीजी सुरक्षा को अक्षुण्ण बनाए रखे हुए हैं ऐसे श्रीनाथ गार्ड के जवानों की भर्ती कर श्रीनाथ गार्ड का पुनर्गठन कर इस सुरक्षा दस्ते की वही प्राचीन रियासत कालीन आन-बान- शान जो कि श्रीनाथ गार्ड द्वारा श्रीजी सेवा में समर्पित रही है वह पुनः जीवंत हो सके।
इसी परिप्रेक्ष्य में गो. ति.108 श्री इंद्रदमन जी महाराज श्री की आज्ञा से गो. चि.105 श्री विशाल बाबा ने श्रीजी सेवा में समर्पित रहे श्रीनाथ गार्ड के सैन्य कर्मियों की इच्छा एवं उनकी भावना को ध्यान में रखते हुए उनके परिवार के युवा सदस्यों को बुलाकर श्रीजी की सेवा में अपनी सेवा देने की उनकी मंशा एवं भावना की अभिव्यक्ति को सुनकर अपना आशीर्वाद प्रदान किया एवं श्रीनाथ गार्ड द्वारा प्रभु की सुरक्षा में कर्तव्यनिष्ठा से की गई श्रीनाथ गार्ड की सेवाओं को ध्यान में रखते हुए आश्वासन दिया कि श्रीनाथ गार्ड के पुनर्गठन के शीघ्र ही प्रयास किए जाएंगे।
(आलेख महर्षि व्यास)