व्रज – चैत्र शुक्ल छठ, 07 अप्रैल 2022
आज केसरी गणगौर
- आज काजली (श्याम) गणगौर है और श्री यमुनाजी के भाव की है अतः इसे घर की गणगौर भी कहा जाता
- नाथद्वारा में आज मेला गणगौर बाग़ के स्थान पर मोतीमहल में और उसके बाहर चौपाटी बाज़ार में आयोजित किया जाता है
- आज श्रीजी में श्री गुसांईजी के छठे लालजी श्री यदुनाथजी का उत्सव होता है अतः आज गणगौर काजली (श्याम) के स्थान पर केसरी रंग की मानी जाती है
- सेवाक्रम: उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को पूजन कर हल्दी से मांडा जाता हैं तथा आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं, दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है
- दो समय की आरती थाली में की जाती है, उत्सव के कारण गोपीवल्लभ अर्थात ग्वाल भोग में मेवा युक्त बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं, इसके अतिरिक्त प्रभु को हांडी में दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी का भोग भी अरोगाया जाता है
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है
श्रीजी दर्शन:
- आज श्रीजी में केसरी रंग की उत्सव की मलमल की, रुपहली किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर कमल का काम किया हुआ है
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है
- एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं
- वस्त्र:
- आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल का सूथन चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं
- श्रृंगार:
- प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे पर माणक का पान एवं सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते है
- उत्सव की मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में माणक के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ चैत्री गुलाब के पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना को) धराये जाते हैं. प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ मिलवा धराई जाती है
- खेल के साज में पट पीला व गोटी स्याम मीना की आती है
- आरसी श्रृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी दिखाई जाती है
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं, कुल्हे रहे लूम-तुर्रा नहीं धराया जाता है
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला: आजब देखियत बदन
- राजभोग: सेवककी सुखराशि सदा श्री वल्लभ
- आरती: कुसुम गुलाब महल में बैठे
- शयन: तेरे री बदन कमल
- पोढवे: छबीले तरुण मदमाते
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि- मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
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जय श्री कृष्ण
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