व्रज – आषाढ़ शुक्ल छठ, मंगलवार, 05 जुलाई 2022
कसूंभा छठ विशेष– आज का दिन पुष्टिमार्ग में विशेषकर पुष्टिमार्ग की प्रधानपीठ नाथद्वारा में अतिविशिष्ट है
- सर्वप्रथम आज श्री वल्लभाचार्यजी के लौकिक पितृचरण श्री लक्ष्मणभट्टजी का प्राकट्योत्सव है
- प्रधान पीठ में आज के दिन ही नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दजी महाराज भी गादी बिराजे थे, Sri Govindaji was the successor to Sri Dauji – ll. He became Tilkayata on Ashadha Shukla 6; V.S.1884
- आज वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री 108 श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) महाराजश्री का गादी उत्सव हैं. आज के दिन विक्रम संवत 2057 में आप गादी बिराजे थे
- आज श्री गुसाईजी का छ्ह का चन्द्र सरोवर पर विप्र्योग सिद्ध हुआ था, और प्रभु श्रीनाथजी ने आपकी सेवा को पुनः अंगीकार किया था, अतः अनुराग स्वरुप लाल (कसुम्भल) रंग के वस्त्र धराये जाते हैं और ठाड़े वस्त्र श्वेत धराये जाते हैं
आज की विशेषता:
- आज धरायी जाने वाली पिछवाई के सन्दर्भ में एक सुंदर प्रसंग है
- श्रीजी में आज अपनी गर्दन ऊँची कर कूकते, वर्षाऋतु के आगमन की बधाई देते मयूरों के सुन्दर चित्रांकन वाली प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है. बहुत कम लोग जानते हैं कि यह दो भागों में बनी हुई है
- कई वर्षों पूर्व एक वैष्णव ने इस पिछवाई का आधा भाग जो कि जापान के एक काफी विशिष्ट कपड़े पर निर्मित था जिसमें गर्दन उठा कर कूकते मयूरों का सुन्दर चित्रांकन था
- तत्कालीन गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी को ये वस्त्र बहुत पसंद आया और वे इसे प्रभु की पिछवाई के रूप में प्रयोग करना चाहते थे पर प्रभु सेवा में आवश्यक माप से कम होने के कारण यह अनुपयोगी था
- तब आपने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति बिल्कुल ऐसा ही जापानी वस्त्र लायेगा उसे मुँहमाँगा पुरस्कार दिया जायेगा. तब एक गुजराती शिक्षक दम्पति बिलकुल ऐसा ही जापानी वस्त्र लाये और प्रभु में भेंट किया जिसे इस पिछवाई में जोड़कर नाथद्वारा के एक ख्यातनाम चित्रकार ने दुसरे भाग में भी ऐसा ही सुन्दर चित्रांकन किया
- तबसे यह पिछवाई प्रतिवर्ष इस दिन प्रभु में नियम से धरायी जाती है
- यद्यपि अत्यंत प्राचीन होने के कारण यह काफ़ी जर्जर हो चुकी है परन्तु इसकी अद्भुत चित्रकारी का आज भी कोई सानी नहीं है
सेवाक्रम:
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को लीप कर हल्दी से मांडा जाता हैं
- आशापाल के पत्तो की सूत की डोरी से बनी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं
- सभी समय झारीजी में यमुना जल भरा जाता है
- दिन में दो समय की आरती थाली में की जाती है
- मंगला में प्रभु को कसुम्भल (लाल) मलमल का उपरना धराया जाता है
- भोग सेवा में श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशर-युक्त जलेबी के टूक, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखडी में मीठी सेव, केसर युक्त पेठा अरोगाये जाते हैं
- श्रीनवनीत प्रियाजी में भी विशेष रूप से सायंकाल शयन भोग में वर्तमान तिलकायत के गादी बिराजने के अवसर पर मनोरथ भोग अरोगाया जाता है जिसमें जलेबी टूक, मनोर के लड्डू, पतली पूड़ी, खीर, गुंजा-कचौरी, चना-दाल, बीज-चालनी के सूखे मेवे, दहीवड़ा, बूंदी का रायता, आमरस, आम का बिलसारू (मुरब्बा) आदि आरोगाये जाते हैं
- आज श्री नवनीतप्रियाजी शयन समय बाहर चबूतरा पर बिराजित हो आनन्द वर्षा करते हैं
श्रीनाथजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा के तहत श्रीजी में आज अपनी गर्दन ऊँची कर कूकते, वर्षाऋतु के आगमन की बधाई देते मयूरों के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है, इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है
- ठाड़े वस्त्र सफेद भांतवार होते हैं
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है
- दो पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में पट श्वेत सुनहरी किनारी का, गोटी मोती की आती है
- वस्त्र:
- वहीँ वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज पठानी किनारी से सुसज्जित कसुम्भल सामान्य भाषा में लाल रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है
- श्रृंगार
- श्रृंगार एवं आभरण दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है
- सभी आभरण मोती के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर कसुम्भल रंग की मलमल की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, एक मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में मोती के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं
- कली, वल्लभी आदि सभी माला अंगीकार करवाई जाती हैं
- आज हांस, त्रवल आदि नहीं धराये जाते, वहीं जड़ाऊ थेगड़ा की बघ्घी धरायी जाती है
- श्वेत पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है
- पीठिका के ऊपर श्वेत पुष्पों की थागवाली मालाजी धरायी जाती है
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं
- श्रीजी को आरसी श्रृंगार में लाल मखमल की एवं राजभोग में सोना की दाँडी की दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला: आई जू श्याम जलद घटा
- राजभोग: ब्रज पर निकी आज घटा
- बधाई: श्री वल्लभ नंदन रूप अनूप
- आरती: लाल की शोभा कहत न आवे
- शयन: भवन मेरे कैसे नीके लागत
- मान: तू चल नन्द नन्दन बन बोली
- पोढवे: पोढीये लाल लाडली संग ले
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
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जय श्री कृष्ण
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राजभोग दर्शन: कीर्तन (राग : सारंग)
श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बरखत अधिकाई l
सुखमें सुखद एक रसना कहां लो वरनौ ‘गोविंद’ बलि जाई ll 2 ll
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देखो माई ये बड़भागी मोर ।
जिनके पंखको मुकुट बनत है सिर धरे नंदकिशोर।।१।।
ये बड़भागी नंद यशोदा पुण्य कीये भर झोर ।
वृंदावन हम क्यों न भई है लागत पग की ओर ।।२।।
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अष्टसखा कीर्तनकार कृष्णदासजी ने आज के दिन ही निम्नलिखित प्रसिद्द कीर्तन गाया एवं श्री गुंसाईजी ने कृष्णदासजी को प्रभु से साक्षात् कराया.
“परम कृपाल श्री वल्लभ नंदन करत कृपा निज हाथ दे माथे l
जे जन शरण आय अनुसरही गहे सोंपत श्री गोवर्धननाथ ll 1 ll
परम उदार चतुर चिंतामणि राखत भवधारा बह्यो जाते l
भजि ‘कृष्णदास’ काज सब सरही जो जाने श्री विट्ठलनाथे ll 2 ll”
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राग मल्हार
कसुंभा छठ्ठ के दिन संध्या आरती समय गवे
लाल की शोभा कहत न आवे।
संध्या समे खिरक में ठाड़े अपनी गाय दुहावै।।
लाल पाग सिर ऊपर शोभित मोरचंद छबि पावे।
मोसो कहत सुन जा तु बाते छतना बुंद बचावे।।
लटकत चलत जबे घर आपने युवतीन बोल सुनावे।
श्रीविठ्ठल गिरिधरनलाल छबि जसुमति के जिय भावे।।
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जय श्री कृष्ण
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