व्रज – श्रावण कृष्ण नवमी, शुक्रवार, 22 जुलाई 2022
आज की विशेषता: लहरिया के वस्त्र आरम्भ
- आज श्रीजी को इस ऋतु के पहले लहरिया के वस्त्र धराये जाते हैं
- पंचरंगी लहरिया की पिछवाई, पंचरंगी लहरिया के वस्त्र (पाग एवं पिछोड़ा), श्रीमस्तक पर हीरा की तीन कलंगी, मोर वाला सिरपैंच के ऊपर जमाव (नागफणी) के कतरे का श्रृंगार वर्षभर में केवल आज के दिन ही धराया जाता है
- आज की सेवा चन्द्रावलीजी की ओर से होती है
- आज की विशेषता यह है कि श्रीजी को धराये जाने वाले आज के वस्त्र द्वितीय गृह प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर (मंदिर) से सिद्ध हो कर आते हैं
- वस्त्रों के साथ श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु जलेबी के घेरा की छाब भी वहीँ से आती है
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज पंचरंगी लहरिया की रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित पिछवाई सजाई जाती है
- गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है
- खेल के साज पधराये जाते है
- गादी, तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है, स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल लगी हुई होती है
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, एक अन्य चांदी के पडघाजी पर माटी के कुंजा में शीतल सुगंधित जल भरा होता है
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में आज पट लाल और गोटी हरे लहरिया की पधरायी जाती है
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज रुपहली ज़री से सुसज्जित पंचरंगी लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं
- कली, कस्तूरी व वैजयंती माला धरायी जाती है
- श्रीमस्तक पर पंचरंगी छज्जेदार पाग के ऊपर मोर वाला सिरपैंच, हीरा की तीन किलंगी, जमाव (नागफणी) का कतरा और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, भाभीजी वाले वेणुजी एवं कटि पर दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है
- आरसी श्रृंगार में आरसी चार झाड़ की और राजभोग में आरसी सोने की डांडी वाली दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत:
- मंगला: राधे रूप की घटा हो
- राजभोग: गहर गहर बाजे बदरा
- हिंडोरा: आलिरी झुलत नन्दकुमार, मचक मचक झूले लचक लचक,
- गोर श्याम धोरण को लहरिया, ललित कदम्ब तेरे हो
- शयन: झूलो झूलो हो मन भावन
- मान: कौन करे पटतर तेरी गुन
- पोढवे: चांपत चरण मोहन लाल
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी मोती के हिंडोलने में झूलते हैं, उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं
- आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं, श्री नवनीत प्रियाजी भी मोती के हिंडोलने में झूलते हैं
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जय श्री कृष्ण
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