व्रज – श्रावण कृष्ण चतुर्दशी, गुरुवार 28 जुलाई 2022
आज के दिवस की विशेषता:
- श्रीजी में आज वस्त्र के रंग से आज के दर्शन शीतकाल की हरी घटा जैसे प्रतीत होते हैं
- संध्या-आरती डोल तिवारी में श्री मदनमोहन जी लाल मोती के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं
- श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में पिस्ता के टूक व बूरे की चाशनी से सिद्ध लड्डू एवं संध्या-आरती में शाकघर की पिस्ता की सामग्री आरोगायी जाती है
- शाकघर में भी मनोरथियों द्वारा पिस्ता के सागर की सामग्री अरोगायी जाती हैं
- आज चौक में हरे पत्तों की बिछावट एवं मुख्य द्वारों पर हरे तोरणों की सजावट की जाती है
- संध्या-आरती में हिंडोलना भी हरे पत्तों के भारी खम्भों से कलात्मक रूप से सुसज्जित होता है
- श्री मदनमोहन जी हरे पत्तों के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं
- श्री नवनीतप्रियाजी में आज के दिन हांड़ी-उत्सव होता है
श्रीजी दर्शन:
- साज:
- साज सेवा में आज श्रीजी में हरे रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है
- साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है, खेल के साज पधराये जाते है
- गादी, तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है, स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल लगी हुई होती है
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, एक अन्य चांदी के पडघाजी पर माटी के कुंजा में शीतल सुगंधित जल भरा होता है
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में आज पट केसरी व गोटी बाघ-बकरी की पधरायी जाती है
- वस्त्र:
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज सुनहरी किनारी से सुसज्जित हरी मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र भी हरे रंग के ही होते हैं
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची आदि सभी आभरण पन्ना एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं
- कमल माला धरायी जाती है
- श्रीमस्तक पर हरी मलमल की सुनहरी बाहर की खिड़की वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, पन्ना की सीधी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं
- हरे रंग के पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (पन्ना व हरे मीना के) धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत:
- मंगला: गरज गरज रिमझिम रिमझिम, देखो निकी ऋतू आयी
- श्रृंगार: हरियारो सावन आयो
- राजभोग: देखो माई सुन्दरता को बाग़
- हिंडोरा:
- आयो री सावन हरियारो, जो तुम हरे-हरे झुलावो,
- माई री झुलत रंग हिंडोरे, झुलत श्याम पियारी संग
- शयन: मनमोहन रमग बोरे
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- सायंकाल में श्रीजी के सम्मुख डोलतिबारी में श्री मदनमोहन जी लाल मोती के हिंडोलने में झूलते हैं. श्री मदनमोहनजी के सभी वस्त्र एवं श्रृंगार श्रीजी को धराये आज के श्रृंगार जैसे ही होते हैं
- आज संध्या भोग के दर्शन में श्री नवनीत प्रियाजी भी मंदिर चौक में लाल मोती के हिंडोलने में झूलते हैं
एक और विशेषता: आज के दिन की यह है की उदयपुर में हरियाली अमावस्या के अगले दिन एक ऐसा अनूठा मेला लगता है, जिसमें केवल महिलाओं को ही प्रवेश मिलता है यह मेवाड़ का लोक मेला है। महिलाओं के हक और सम्मान के लिए अनूठी पहल करते हुए मेवाड़ के महाराणा फतहसिंह ने वर्ष 1898 में इस मेले की शुरुआत की थी। मेले के पहले दिन किसी के प्रवेश पर रोक नहीं होती। मेला यहां की प्रसिद्ध फतहसागर झील और सहेली मार्ग पर लगता है। इसमें हर साल करीब 50 हजार लोग आते हैं।
हरियाली अमावस्या मेला मेवाड़ ही नहीं, संभवत: देशभर का एकमात्र ऐसा मेला है, जिसमें एक दिन सिर्फ महिलाओं को ही प्रवेश मिलता है। इतिहासकारों के मुताबिक 1898 में हरियाली अमावस्या के दिन महाराणा फतहसिंह महारानी चावड़ी के साथ फतहसागर झील जिसे तब देवाली तालाब कहा जाता था पर पहुंचे तथा छलकते फतहसागर को देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने पूरे नगर में मुनादी कराते हुए मेले के रूप में यहां पहली बार जश्न मनाया। इसी दौरान चावड़ी रानी ने महाराणा से सिर्फ महिलाओं के मेले को लेकर सवाल किया।
इसके बाद महाराणा ने मेले का दूसरा दिन केवल महिलाओं के लिए आरक्षित करवाने की घोषणा करवा दी। तब से यह परंपरा चली आ रही है। देश की आजादी के बाद से इसका आयोजन स्थानीय प्रशासन करवाता रहा है। श्रावण मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहा जाता है। श्रावण में शिव आराधना के 15 दिन हो जाने पर मेले के रूप में उल्लास मनाया जाता है।
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नाथद्वारा के लालबाग़ पर भी मेला भरता है.
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जय श्री कृष्ण
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