व्रज – श्रावण शुक्ल अष्टमी शुक्रवार, 5 अगस्त, 2022
आज की विशेषता: आज श्रीजी में नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. जैसा कि हम जानते है प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.
- दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर जिसे रास-पटका भी कहा जाता है, धराया जाता है जबकि गौ-चारण और वन-विहार के भाव में गाती का पटका धराया जाता है. आज श्रीजी में रास के भाव का पीताम्बर अर्थात रास-पटका धराया जाता है
बगीचा उत्सव श्री नवनीतप्रियाजी में:
विशेष – आज श्री नवनीतप्रियाजी में बगीचा उत्सव होगा. आज के दिन प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी श्रीजी मंदिर में स्थित श्री महाप्रभुजी की बैठक वाले बगीचे में विहार एवं झूलने को पधारते हैं
- व्रज में नन्दगाँव के पास नंदरायजी का बगीचा है जहाँ नंदकुमार खेलने एवं झूलने के लिए पधारते थे इस भाव से आज बैठक के बगीचे को नंदरायजी का बगीचा मानकर श्री नवनीतप्रियाजी वहां झूलने पधारते हैं.
- श्री नवनीतप्रियाजी वर्ष में दो बार (आज के दिन व फाल्गुन शुक्ल अष्टमी) के दिन महाप्रभुजी की बैठक स्थित इस बगीचे में पधारते हैं
- आज द्वितीय गृह पिठाधीश्वर श्री कृष्णरायजी (1857) का उत्सव होने से श्रीजी को धराये जाने वाले आज के वस्त्र द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. वस्त्रों के साथ श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु बूंदी के लड्डुओं की छाब भी वहीँ से आती है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- आज वर्षाऋतु में बादलों की घटा एवं बिजली की चमक के मध्य यमुनाजी के किनारे कुंज में एक ओर श्री ठाकुरजी एवं दूसरी ओर स्वामिनीजी को व्रजभक्त झूला-झुला रहे हैं. प्रभु की पीठिका के आसपास सोने के हिंडोलने का सुन्दर भावात्मक चित्रांकन किया है जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु स्वर्ण हिंडोलना में झूल रहे हों, ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है
- गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी हरी मखमल वाली होती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं
- चांदी के पडघा के ऊपर माटी के कुंजे में शीतल सुगन्धित जल भरा होता है
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में पट पीला एवं गोटी मोर वाली आती हैं
- वस्त्र
- श्रीजी को आज लाल एवं पीले रंग के धनक (मोठडाभात) के लहरिया की सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित, सूथन, काछनी एवं गाती का पटका धराया जाता है
- ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरीया के धराये जाते है
- श्रृंगार
- प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची आदि सभी आभरण फ़ीरोज़ा के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सिलमा सितारों का मुकुट व टोपी एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में फ़ीरोज़ा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- चोटीजी मीना की आती हैं
- श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला धराई जाती हैं
- पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थाग वाली दो सुन्दर मालाजी एवं कमल के फूल की मालाजी धरायी जाती है
- श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सवत धराई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा के तहत:
- मंगला: आज में देखे कुंवर कन्हाई
- राजभोग: माई री श्याम घन तन दामिनी
- हिंडोरा:
- झुलत गिरिधर लाल हिंडोरे, झुलत सांवरे संग गौरी
- रमक झमक झूलन में झमक मेह, सुखद वृन्दावन सुखद यमुना तट
- शयन: ओल्हर आई हो घन
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी डोल तिवारी में सोने के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं
- श्री नवनीत प्रियाजी बगीचे के हिंडोलने में विराजित होकर झूलते है
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : गोड मल्हार)
माईरी घन मृदंग रसभेदसो बाजत नाचत चपला चंचल गति l
कोकिला अलापत पपैया उरपलेत मोर सुघर सूर साजत ll 1 ll
दादुर तालधार ध्वनि सुनियत रुनझुन रुनझुन नुपूर बाजत l
‘तानसेन’ के प्रभु तुम बहु नायक कुंज महेल दोउ राजत ll 2 ll
…………………………
नित्यलीलास्थ श्री कृष्णरायजी से जुड़ा एक प्रसंग है जो उल्लेखनीय है
निधि स्वरुप विराजित हैं तो वैसे भी घर का वैभव बढ़ ही जाता है परन्तु तब प्रभु श्री विट्ठलनाथजी की कृपा से द्वितीय गृह अत्यन्त वैभवपूर्ण स्वरुप में था और तत्समय श्रीजी में अत्यधिक ऋण हो गया. जब आपको यह ज्ञात हुआ तब आपने अपना अहोभाग्य मान कर प्रभु सुखार्थ अपना द्रव्य समर्पित किया और प्रधान पीठ को ऋणमुक्त कराया. आप द्वारा की गयी इस अद्भुत सेवा के बदले में श्रीजी कृपा से आपको कार्तिक शुक्ल नवमी (अक्षय नवमी) की श्रीजी की की पूरे दिन की सेवा और श्रृंगार का अधिकार प्राप्त हुआ था. आज भी प्रभु श्री गोवर्धनधरण द्वितीय गृह के बालकों के हस्त से अक्षय नवमी के दिन की सेवा अंगीकार करते हैं.
……………………..
जय श्री कृष्ण
………………………
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
……………………….