व्रज – श्रावण शुक्ल एकादशी, सोमवार, 8 अगस्त 2022
आज की विशेषता: आज पवित्रा एकादशी है
इस वर्ष पवित्रा श्रृंगार के दर्शन में 10:30 बजे से पहले।
- 360 तार के सूत्र का पवित्रा, सादा रेशमी पवित्रा, फोंदना वाला रेशमी पवित्रा, रुपहली और सुनहरी तार वाला पवित्रा आदि अनेक प्रकार के पवित्रा श्री ठाकुरजी को धराये जाते हैं. पवित्रा धराये उपरान्त प्रभु को यथाशक्ति भेंट अवश्य धरी जाती है और उत्सव भोग अरोगाया जाता है.
- श्रीगोपीनाथ प्रभुचरण के अनुसार उक्त पवित्रा का भाव यह है कि यह पवित्रा वैष्णवों द्वारा की गयी वर्षभर की सेवा का प्रतीक है इसलिए यह 360 तारों का होता है. इस पवित्रा के 360 सूत के सूत्र एक वर्ष के अन्तर्गत 360 दिनों के प्रतीक है जो मानसी सेवा जैसे मूल फल को देने वाला है.
- अतः तीन सौ साठ तारों का पवित्रा उत्तम है, जिसमे 24 गांठे लगी हो.
- प्रभु को पवित्रा धराये पश्चात पिछवाई और पीठिका के ऊपर भी पवित्रा धराये जाते हैं. विक्रम संवत 2023 में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज ने सात स्वरूपों को पधराकर पवित्रा धराये थे आज उसका भी उत्सव श्रीजी में मनाया जाता है.
- सभी पुष्टि वैष्णव भी अपने घर के सेव्य ठाकुर जी को पवित्रा धराते है.
- पवित्रा एकादशी से रक्षाबंधन तक पांच दिन श्रृंगार पश्चात् पवित्रा धराये जाते हैं. किसी कारणवश इन पांच दिवस में पवित्रा नहीं धरे जाएँ तो जन्माष्टमी तक पवित्रा धराये जा सकते हैं और यदि जन्माष्टमी तक भी पवित्रा नहीं धराये जा सकें तो देव प्रबोधिनी तक भी धराये जाने का सदाचार है परन्तु सभी वैष्णवों को अपने ठाकुरजी को पवित्रा धरना अवश्य ही चाहिए अन्यथा सारे वर्ष की सेवा सफल नहीं मानी जाती है.
- पवित्रा धराये पश्चात् आज से जन्माष्टमी की नौबत (एक प्रकार का वाध्य) की बधाई बैठती है.
- इसका कारण यह है कि जगद्गुरु श्रीमद् वल्लभाचार्य जी ने दैवीजीवों के उद्धार हेतु आज के दिन ही डंका बजा कर घोषणा की थी
सेवाक्रम:
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को हल्दी से मांडा जाता हैं, आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज दिन भर सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है.
- मंगला, राजभोग, संध्या व शयन चारों समय आरती थाली में की जाती है.
- गेंद, चौगान, दीवला आदि सोने के आते हैं.
- मूढ़ढा, पेटी और दीवालगिरी आदि पर कशीदा का साज चढ़ता है
- मंगला के पश्चात ठाकुरजी को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल से अभ्यंग कराया जाता है
- आज से पूनम तक प्रतिदिन श्रृंगार समय मिश्री की गोल डली का भोग अरोगाया जाता है
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को मनमनोहर (केशर-इलायची बूंदी), मेवाबाटी (सूखे मेवे से भरा खस्ता ठोड़) एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा दोहरा अरोगाये जाते हैं.
- आज श्रृंगार के समय पवित्रा का अधिवासन होगा, धूप, दीप, शंखोदक किये जाएंगे – कुछ समय उपरांत पंखे का टेरा लेकर श्रीजी को पवित्रा धराये जायेंगे
- पवित्रा धराये उपरांत उत्सव भोग धरे जायेंगे जिसमें विशेष रूप से मिश्री की गोल डलियाँ सफ़ेद व केसरयुक्त, छुट्टी बूंदी, खस्ता शक्करपारा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, केशर-युक्त बासोंदी, जीरा-युक्त दही, घी में तला बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना, विविध प्रकार के फलफूल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं
- आज प्रभु को उत्सव भोग में सभी गृहों से पधारी मिश्री भी अरोगायी जाती है
- भोग समय फीका के स्थान पर घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा आरोगाया जाता है
- कल मंगलवार, 9 अगस्त 2022 को पवित्रा द्वादशी है
- श्रावण शुक्ल एकादशी की मध्यरात्रि को स्वयं ठाकुरजी ने प्रकट होकर श्री महाप्रभु जी को दैवीजीवों को ब्रह्म सम्बन्ध देने की आज्ञा दी.
- इस प्रकार श्रावण शुक्ल द्वादशी के दिन श्रीवल्लभ ने सब से प्रथम ब्रह्म-सम्बन्ध वैष्णव दामोदर दासजी हरसानी को दिया.
- तब से आज का दिन सभी वैष्णवों में पुष्टिमार्ग की स्थापना दिवस-समर्पण दिवस के रूप में मनाया जाता है.
- कल के दिन श्री ठाकुरजी को पवित्रा धराये पश्चात अपने ब्रह्म-सम्बन्ध देने वाले गुरु को पवित्रा, यथाशक्ति भेंट आदि धरें एवं दंडवत करें इसके पश्चात वैष्णवों को परस्पर पवित्रा धर के ‘जय श्री कृष्ण’ कहें. परस्पर प्रसादी मिश्री का प्रसाद लेवें.
- श्री महाप्रभुजी को स्वयं श्रीजी ने ब्रह्म सम्बन्ध देने की आज्ञा प्रदान की इस कारण सभी वैष्णवों को श्री वल्लभ कुल के बालकों से ही ब्रह्म सम्बन्ध लेना चाहिए.
- श्री वल्लभ कुल के बालक श्री महाप्रभुजी की ओर से ब्रह्म सम्बन्ध देते हैं. पुष्टिमार्ग के गुरु श्री महाप्रभुजी हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज सफेद डोरिया के वस्त्र पर थोड़े-थोड़े अंतर से सुनहरी ज़री के धोरा वाली, सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी हरी मखमल वाली होती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं
- चांदी के पडघा के ऊपर माटी के कुंजे में शीतल सुगन्धित जल भरा होता है
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं
- खेल के साज में पट उत्सव का, गोटी सोने की जाली की आती है.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज सफेद केसर की किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं
- श्रृंगार
- प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द से दो अंगुल ऊंचा उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता है
- मिलवा हीरे की प्रधानता के मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सफेद कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में हीरे के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- नीचे पाँच पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं
- कली की मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं.
श्रीजी की राग सेवा के तहत:
- मंगला: आज बड़ो दरबार देख्यो नंदराय तेरो
- राजभोग: हेरी हे आज नन्दराय के
- हिंडोरा: गोविन्द स्वामी के प्रथम दिवस के
- शयन: आछी नीकी सोहत
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी डोल तिवारी में चांदी के हिंडोलने(पवित्रा का हिंडोलना) में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं.
- श्री नवनीत प्रियाजी भी चांदी के ही हिंडोलने(पवित्रा का हिंडोलना) में विराजित होकर झूलते है.
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राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
हेरि है आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll
जय श्री कृष्ण
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